[TODAY छत्तीसगढ़] / इन दिनों गर्मीं से ज़िंदगी बेहाल है, प्रचंड गर्मी और तपिश के ऊपर नौतपा का कहर लगातार जारी है। गर्मी शुरू होते ही जलसंकट की भयावह तस्वीरें अलग-अलग शक्लों में सामने आने लगती हैं। गर्मी शुरू होने के साथ ही एक तरफ इंसानी आबादी में पानी के लिए हाहाकर मचता है तो दूसरी तरफ जीव-जंतु व पशु-पक्षियों के हलक सूखने लगते हैं। गर्मी के मौसम में जंगल के प्राकृतिक स्रोतों के सूख जाने के कारण वन्य प्राणियों के जीवन पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। जो कुछ जल स्रोत बचे हुए हैं, वे भी जल्दी ही सूखने की कगार पर हैं। ऐसे में वन्य प्राणी अपनी प्यास बुझाने अब गांवों की ओर रुख कर रहे हैं। इसके कारण वन्य प्राणियों पर गांवों के आवारा कुत्तों एवं लोगों द्वारा हमले भी किये जा रहे हैं।
बिलासपुर जिले का हाल भी कुछ ऐसा ही है, लगातार गिरता जल स्तर साल दर साल पानी के संकट को बढ़ाता जा रहा है। जिले के अधिकाँश तालाब, पोखरा व अन्य प्राकृतिक जल स्रोतों में पानी की जगह अब धूल उड़ रही है। शहर से लगे वन क्षेत्रों में भी पानी के प्राकृतिक स्त्रोत सूख चुके हैं। ऐसे में पानी की तलाश में जंगली जीव जंतु बाहर निकल कर गांवों की तरफ जाने लगे हैं। वहीँ पक्षियों का पलायन जारी है। मूक वन्यप्राणी एक-एक बून्द की तलाश में जल स्त्रोत की तरफ भटकते देखे जा सकते हैं।
प्रकृति की अनमोल देन पानी को मनुष्य ने मनमाने तरीके से दोहन किया। आज चारों तरफ से जल संकट का हाहाकार सुनाई देने लगा है। इससे शहरी और ग्रामीण आबादी तो जूझ ही रही हैं, इसका खामियाजा अब जंगलों में रहने वाले बेजुबानों को भी भुगतना पड़ रहा है। हालात इतने बुरे हैं कि वन्यप्राणियों को अब अपने पीने के पानी की तलाश में लम्बी–लम्बी दूरियाँ तय करना पड़ रही है। इतना ही नहीं कई बार ये पानी की तलाश में जंगलों से सटी बस्तियों की तरफ निकल आते हैं। ऐसे में या तो जानवर गाँव वालों या उनके बच्चों पर हमला कर देते हैं या लोग इनसे डरकर इन पर हमला भी कर देते हैं। गर्मी के मौसम में वन्यप्राणियों के शिकार की घटनाये भी बढ़ जाती हैं। TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें
बिलासपुर से लगा कोपरा जलाशय हो या फिर सीपत क्षेत्र में खोंदरा का जंगल। अचानकमार अभ्यारण्य की तरफ देखें या फिर पेंड्रा-मरवाही का वन क्षेत्र। बलौदा बाज़ार का अर्जुनी महराजी, बारनवापारा सभी जगह जल संकट दिखाई पड़ता है । वन विभाग अभ्यारण्य के अलावा कुछ क्षेत्रों में टैंकर के माध्यम से पानी के संकट से वन्यप्राणियों को राहत देने की बात करता जरूर है लेकिन धरातल पर वन्यप्राणी और पक्षी सिर्फ पानी की तलाश में भटकते दिखाई पड़ते हैं। इस हालात के लिए काफी हद तक विभागीय अमला जिम्मेदार है, बारिश के पानी को प्राकृतिक जल स्त्रोतों में बचाने के कोई कारगर प्रयास नहीं होते। गर्मी की शुरुवात के पहले जल संकट से निपटने के प्रयास ना इंसानी आबादी में दिखाई देती है ना जंगल में, लिहाजा जिनका कंठ सूखा है वो चिल्ला रहें हैं और जो बोल नहीं सकते वो नम जमीन पर पानी की पूर्ति के इन्तजार में बैठे हैं।