[TODAY छत्तीसगढ़] / कांग्रेस का तीर्थ स्थल कही जाने वाली अमेठी इस बार विकास के नए आयाम गढ़ने को लेकर काफी पशोपेश में नज़र आई । एक तरफ बदलाव के बहाने विकास की नई किरण निकल आने की लालसा दिखाई पड़ी तो दूसरी तरफ इतिहास बदल जाने के भय से मन अशांत था । कांग्रेस की जिस अमेठी में बाहरी प्रांत के पार्टी नेताओं को घुसकर प्रचार-प्रसार की इजाज़त नही थी वहाँ इस बार देश के दूसरे हिस्सों के बड़े-छोटे नेताओं ने न सिर्फ राहुल गांधी के पक्ष में प्रचार किया बल्कि खुद को अमेठी में पाकर पुण्य लाभ मिल जाने का सौभाग्य हासिल किया । इन सबके बीच सबसे अहम और अफसोसजनक जो बात रही वो ये कि अमेठी अपना इतिहास दोहराना तो चाहती है मगर बतौर प्रधानमंत्री राहुल गांधी की बजाय उन्हें नरेंद्र मोदी से बेहतर विकल्प दिखाई नही पड़ता । हाँ, इस देश का ये पहला लोकसभा क्षेत्र होगा जिसके मतदाता खुलकर कहते है 'हम अमेठी का नाम बदनाम नही होने देंगे' ... अमेठी फिर अपना इतिहास दोहराएगी, इस भरोसे के साथ मतदाताओं ने कल ईवीएम में राहुल गाँधी और स्मृति ईरानी के भाग्य को ईवीएम में बंद कर दिया है ।
आपको बता दें साल 2014 का चुनाव भी राहुल गांधी ने मोदी लहर में यहीं से जीता था. हालांकि बीजेपी से लड़ने आईं स्मृति ईरानी ने ठीकठाक टक्कर दी थी . बड़े जोरशोर से लड़ने आए आम आदमी पार्टी के नेता डॉ. कुमार विश्वास यहां चौथे नंबर रहे जबकि बीएसपी प्रत्याशी धर्मेन्द्र तीसरे नंबर थे. इस चुनाव में राहुल गांधी को 408651 वोट मिले थे वहीं बीजेपी प्रत्याशी स्मृति ईरानी को 300748 वोट मिले थे. कुमार विश्वास को मात्र 25 हजार और बीएसपी को 57716 वोट मिले थे. मतगणना के दिन इस सीट पर एक मौका ऐसा भी आया जब स्मृति ईरानी ने सबको चौंकाते हुए राहुल गांधी को पीछे छोड़ दिया था. इस बार भी मुकाबला संघर्षपूर्ण है लेकिन जनता का मन टटोलने पर जो जवाब मिलता है उससे नतीजे राहुल गांधी के पक्ष में जाता दिखाई दे रहा है।
वैसे राहुल गांधी इस बार अमेठी के अलावा वायनाड से भी चुनाव मैदान में हैं, उनके दो जगह से चुनाव लड़ने को लेकर भी काफी चर्चा होती रही, सियासी जमात के लोग खासकर विपक्ष लगातार राहुल के वायनाड से चुनाव लड़ने को लेकर बयानबाजी करता रहा। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सोमवार को अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी में मतदान के दौरान मौजूद नहीं रहे. अमेठी से राहुल 2004, 2009 और 2014 में चुनाव जीत चुके हैं. राहुल के विरुद्ध चुनाव लड़ रहीं भाजपा नेता व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कांग्रेस अध्यक्ष को लापता सांसद करार दिया और कहा कि मौजूदा सांसद ने मतदान के दिन भी क्षेत्र का दौरा नहीं किया. उन्होंने पत्रकारों से कहा कि राहुल ने चुनाव के दिन अमेठी के लोगों को धोखा दिया है. स्मृति ने कहा, "मैं नहीं जानती थी कि वह इतने घमंडी हो सकते हैं कि अमेठी में मतदान के दिन भी नहीं आएंगे." जबकि राहुल गांधी ने मतदान से ठीक एक दिन पहले अपने संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं को एक पत्र लिखकर कहा, 'अमेठी मेरा परिवार है। मेरा अमेठी परिवार मुझे हिम्मत देता है कि मैं सच्चाई के साथ खड़ा रहूं, मैं गरीब-कमजोर लोगों की पीड़ा सुन सकूं और उनकी आवाज उठा सकूं और सबके लिए एक समान न्याय का संकल्प ले सकूं। आपने मुझे जो प्यार की सीख दी थी, उसके आधार पर मैंने पूरे देश को उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम तक जोड़ने की कोशिश की है।'
जनता की नाराजगी -
देश की वीवीआईपी सीटों में शुमार अमेठी की जनता अपने सांसद राहुल गांधी से खासी नाराज़ भी दिखाई देती है लेकिन उस नाराजगी के बावजूद वो गांधी परिवार का साथ नहीं छोड़ना चाहती। अमेठी लोकसभा क्षेत्र में आम जनमानस की राय का जिक्र करें तो वे अपने सांसद [राहुल गांधी] से नहीं मिल पाते। उनका मानना है की कड़ी सुरक्षा घेरे से घिरे सांसद क्षेत्र के कुछ लोगों की भीड़ से ही घिरे रहते हैं। जनता छोटी-बड़ी समस्याओं को लेकर अपने सांसद तक नहीं जा सकती जबकि अमेठी के कुछ पुराने लोग उनके पिता स्वर्गीय राजीव गांधी के कार्यकाल को याद करते हुए कहते हैं कि 'जब वे प्रधानमंत्री थे तब दिल्ली के दरबार में प्रत्येक सप्ताह अमेठी के लोगों के लिए मिलने का वक्त तय हुआ करता था, अपने क्षेत्र की जनता से मिलकर वे उनकी समस्याओं को सुनते और उसके निराकरण की दिशा में काम भी किया करते थे लेकिन राहुल गाँधी में वो बात नहीं है।' आमजनता के इस ख्यालात को सुनकर सांसद बदलने के सवाल पर जो जवाब है वो जाहिर तौर पर चौकाने वाला है। अमेठी की अधिकाँश जनता इस बात को सहजता से स्वीकारती है कि देश-विदेश में अमेठी को पहचान सिर्फ गांधी परिवार की वजह से मिली है। शायद तमाम नाराजगी इसी बात को सोचकर दूर हो जाती है। शायद जनता की इसी नाराज़गी को राहुल गांधी ने समझकर वायनाड जाने का फैसला लिया हो ? खैर इस बार राहुल गांधी की राह में दिखाई देते काँटों को उनकी बहन और कांग्रेस पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने दूर करने की काफी कोशिश की है। उनकी बहन और कांग्रेस पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने अमेठी लोकसभा क्षेत्र में ना सिर्फ सघन जनसम्पर्क किया बल्कि हर आम-ओ-ख़ास को बताया गया की अमेठी की जनता गांधी परिवार का हिस्सा है, गांधी परिवार को अमेठी की जनता ने ही बनाया है।
अमेठी लोकसभा सीट:
अमेठी लोकसभा सीट उत्तर प्रदेश (यूपी) की 80 लोकसभा सीटों में से एक हैं. ये अमेठी और रायबरेली जिले की पांच विधानसभा सीटों को मिलाकर बनी है. चार विधानसभा सीटें अमेठी जिले की हैं और एक सीट रायबरेली जिले की है. अमेठी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत 4 तहसील और 5 विधान सभा क्षेत्र आते हैं । इन 5 विधान सभा क्षेत्रों में तिलोई, सलोन, जगदीशपुर, गौरीगंज और अमेठी हैं जिसमें सलोन और जगदीशपुर अनुसूचित जाति के लिए अरक्षित है। देश में 1951-52 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए थे, तब अमेठी लोकसभा का कोई वजूद नहीं था तब ये इलाका सुल्तानपुर दक्षिण लोकसभा सीट में आता था। यहां से तब कांग्रेस के बालकृष्ण विश्वनाथ केशकर चुनाव जीते थे। इसके बाद 1957 में मुसाफिरखाना लोकसभा सीट अस्तित्व में आई, जो इस वक्त अमेठी जिले की एक तहसील है, तब कांग्रेस के बी वी केशकर यहां के सांसद बने थे। साल 1967 के आम चुनाव में अमेठी लोकसभा अस्तित्व में आई, नई सीट पर कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी को अमेठी का पहला सांसद बनने का गौरव मिला, वो 1971 में भी यहां से एमपी चुने गए। 1977 में इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस ने राजा रणंजय सिंह के बेटे संजय सिंह को प्रत्याशी बनाया लेकिन उस वक्त देश में जनता पार्टी लहर थी, संजय सिंह चुनाव हार गए और भारतीय लोकदल के रविन्द्र प्रताप सिंह सांसद चुने गए, तब पहली बार चुनावों में इस सीट पर कांग्रेस हारी थी।
अमेठी लोकसभा सीट का इतिहास
देश में 1951-52 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए. तब अमेठी लोकसभा का कोई वजूद नहीं था. तब ये इलाका सुल्तानपुर दक्षिण लोकसभा सीट में आता था. यहां से तब कांग्रेस के बालकृष्ण विश्वनाथ केशकर चुनाव जीते थे.
1957 में मुसाफिरखाना लोकसभा सीट अस्तित्व में आई. जो इस वक्त अमेठी जिले की एक तहसील है. कांग्रेस के बी वी केशकर फिर से यहां के सांसद बने.
1962 के लोकसभा चुनाव में राजा रणंजय सिंह मुसाफिरखाना लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने. राजा सिंह अमेठी राजघराने के 7वें राजा था. रणंजय सिंह वर्तमान राज्यसभा सांसद संजय सिंह के पिता थे.
1967 के आम चुनाव में अमेठी लोकसभा अस्तित्व में आई. नई सीट पर कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी को अमेठी का पहला सांसद बनने का गौरव मिला. लेकिन उनकी जीत को भारतीय जनसंघ के गोकुल प्रसाद पाठक ने काफी मुश्किल कर दिया था. उन्हें चुनाव में मात्र 3,665 वोटों के अन्तर से जीत मिली.
1971 में फिर से कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी अमेठी से सांसद चुने गए. लेकिन इस बार जीत का अन्तर 75,000 से ज्यादा था.
1977 में इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस ने राजा रणंजय सिंह के बेटे संजय सिंह को प्रत्याशी बनया. उस वक्त देश में जनता पार्टी लहर थी, संजय सिंह चुनाव हार गए और भारतीय लोकदल के रविन्द्र प्रताप सिंह सांसद चुने गए. पहली बार चुनावों में इस सीट पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था.
1980 के चुनाव से कांग्रेस ने सत्ता के साथ-साथ इस सीट पर भी वापसी की. इस सीट से पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने चुनाव लड़ा और जीतकर सांसद चुने गए. इस सीट पर पहली बार नेहरू-गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव लड़ा. 23 जून 1980 को संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मौत हो गई.
1981 में हुए उपचुनाव में इंदिरा गांधी के बड़े बेटे राजीव गांधी अमेठी से सांसद चुने गए.
अक्टूबर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिसंबर 1984 में लोकसभा के चुनाव हुए. राजीव गांधी एक बार फिर अमेठी से प्रत्याशी बने. संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी पति की विरासत पर दावा करने के निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरीं लेकिन मेनका को सिर्फ 50,000 वोट मिले. राजीव गांधी 3 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीते और साबित किया कि नेहरू-गांधी परिवार के असली वारिस वही हैं.
1989 और 1991 के लोकसभा चुनावों में राजीव गांधी फिर से अमेठी से कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने. 1989 में राजीव गांधी ने जनता दल के प्रत्याशी और महात्मा गांधी के पौत्र राजमोहन गांधी को हराया.
1991 में मई-जून के महीनों में लोकसभा चुनाव हुए थे. 20 मई को पहले चरण की वोटिंग हुई. 21 मई को राजीव गांधी प्रचार करने तमिलनाडु गए जहां उनकी हत्या कर दी गई. 1991 में अमेठी लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ जिसके बाद कांग्रेस के सतीश शर्मा सांसद चुने गए.
1996 में सतीश शर्मा फिर से सांसद चुने गए.
1998 में बीजेपी ने कांग्रेस से बीजेपी में आए अमेठी राजघराने के वारिस संजय सिंह को चुनाव लड़ाया. संजय सिंह चुनाव जीत गए और सतीश शर्मा चुनाव हार गए. ये दूसरा मौका था जब इस सीट पर कांग्रेस को हार मिली.
1999 में राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी चुनाव मैदान में ऊतरीं और अमेठी की सांसद बनीं. बीजेपी से चुनाव मैदान में ऊतरे संजय सिंह चुनाव हार गए.
2004 में अमेठी से राजीव गांधी के बेटे राहुल गांधी पहली बार सांसद चुने गए. राहुल 3 लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीते. समाजवादी पार्टी ने यहां अपना प्रत्याशी नहीं उतारा.
2009 में राहुल गांधी फिर से सांसद चुने गए. इस बार जीत का अन्तर 3,50,000 से भी ज्यादा का रहा. समाजवादी पार्टी ने फिर से अपना प्रत्याशी नहीं उतारा.
2014 में राहुल गांधी इस सीट से लगातार तीसरी बार सांसद चुने गए. लेकिन इस बार राहुल गांधी की जीत का अंतर 1,07,000 वोटों का ही रह गया. बीजेपी ने राज्यसभा सांसद स्मृति ईरानी को यहां से मैदान में उतारा था. वहीं, आम आदमी पार्टी (आप) के कुमार विश्वास भी यहां से चुनाव लड़े थे. ईरानी ने 3 लाख से ज्यादा वोट हासिल कर राहुल को कड़ी टक्कर दी जबकि कुमार विश्वास की जमानत जब्त हो गई थी. समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर अपना प्रत्याशी नहीं ऊतारा था.