[TODAY छत्तीसगढ़] / "कभी घर आंगन से लेकर चौपाल और चौबारे को अपनी चीं-चीं से गुलजार करने वाली गौरैया अब दुर्लभ हो गई है। अपनी चहचहाहट से सुबह का सन्नाटा तोड़ने और शाम को अंधियारे तक साथ रहने वाली नन्हीं गौरैया अब शहर से लेकर गांवों तक यदा-कदा ही दिखती है। छोटे आकार की इस खूबसूरत पक्षी का कभी इंसानों के घरों में बसेरा हुआ करता था परंतु आहार और आवासों की कमी, कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल एवं मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली सूक्ष्म तरंगें इसके अस्तित्व के लिए खतरा बन गईं। इसके चलते गौरैया आज संकटग्रस्त पक्षी की श्रेणी में आ गई है।"
दशकों पूर्व तक गांवों के कच्चे मकानों की धन्नियों, छप्परों और खाली पड़े गड्ढों में रहने वाली गौरैया (हाउस स्पैरो) लोगों के परिवार का एक हिस्सा थी। घर के आंगन से लेकर अहातों में चीं-चीं कर फुदकती हुई गौरैया को देखकर बच्चों का बचपन बीतता था। ज्यादातर मनुष्यों की बस्ती के आस-पास घोसले बनाने वाली नन्हीं गौरैया की संख्या आज काफी घट गई है। बढ़ते शहरीकरण और कंकरीट के जंगल ने गौरैया के रहने की जगह छीन ली है। आज लोगों के आंगन, घरों के आस-पास ऐसे घने पेड़ पौधे नहीं हैं। जिन पर यह चिड़िया अपना आशियाना बना सके। न ही हमारे घरों में रोशनदान या छतों पर ही कोई ऐसी सुरक्षित जगहें हैं, जहां यह रह सकें। पहले घरों के आंगन, बाहर दरवाजे के पास अनाज सूखने के लिए फैलाये जाते थे।
शहरी और ग्रामीण इलाकों में गौरैया की छह प्रजातियां पाई जाती हैं। हाउस स्पैरो, स्पैनिश स्पैरो, ¨सड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो इनमें हाउस स्पैरो को गौरैया कहा जाता है।
आज विश्व गौरैया दिवस है और यह हर साल 20 मार्च को मनाया जाता है. यह दिवस दुनिया में गौरैया पक्षी के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए मनाया जा रहा है, बेहद अफ़सोस जनक है की आज भी पक्षियों को संरक्षित करने के लिए जागरूकता जैसे औपचारिक कार्यक्रमों की जरूरत पड़ती है। हालांकि ये औपचारिकता साल में एक दिन यानी आज के दिन कुछ जगहों पर देखी जा सकती है। आम जनमानस, खासकर शहरी इलाकों में रहने वाले याद करें कि उन्होंने आखरी बार गौरैया को कब देखा था ? एक समय में यह प्रत्येक घर के आंगन में चहकती दिखाई दे जाती थी, लेकिन अब इसकी आवाज कानों तक नहीं पड़ती है. गौरैया की घटती संख्या को लेकर यह दिवस मनाए जाने लगा और साल 2010 में पहली बार पुरे विश्व में गौरैया दिवस मनाया गया .
दशकों पूर्व तक गांवों के कच्चे मकानों की धन्नियों, छप्परों और खाली पड़े गड्ढों में रहने वाली गौरैया (हाउस स्पैरो) लोगों के परिवार का एक हिस्सा थी। घर के आंगन से लेकर अहातों में चीं-चीं कर फुदकती हुई गौरैया को देखकर बच्चों का बचपन बीतता था। ज्यादातर मनुष्यों की बस्ती के आस-पास घोसले बनाने वाली नन्हीं गौरैया की संख्या आज काफी घट गई है। बढ़ते शहरीकरण और कंकरीट के जंगल ने गौरैया के रहने की जगह छीन ली है। आज लोगों के आंगन, घरों के आस-पास ऐसे घने पेड़ पौधे नहीं हैं। जिन पर यह चिड़िया अपना आशियाना बना सके। न ही हमारे घरों में रोशनदान या छतों पर ही कोई ऐसी सुरक्षित जगहें हैं, जहां यह रह सकें। पहले घरों के आंगन, बाहर दरवाजे के पास अनाज सूखने के लिए फैलाये जाते थे।
शहरी और ग्रामीण इलाकों में गौरैया की छह प्रजातियां पाई जाती हैं। हाउस स्पैरो, स्पैनिश स्पैरो, ¨सड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो इनमें हाउस स्पैरो को गौरैया कहा जाता है।
आज विश्व गौरैया दिवस है और यह हर साल 20 मार्च को मनाया जाता है. यह दिवस दुनिया में गौरैया पक्षी के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए मनाया जा रहा है, बेहद अफ़सोस जनक है की आज भी पक्षियों को संरक्षित करने के लिए जागरूकता जैसे औपचारिक कार्यक्रमों की जरूरत पड़ती है। हालांकि ये औपचारिकता साल में एक दिन यानी आज के दिन कुछ जगहों पर देखी जा सकती है। आम जनमानस, खासकर शहरी इलाकों में रहने वाले याद करें कि उन्होंने आखरी बार गौरैया को कब देखा था ? एक समय में यह प्रत्येक घर के आंगन में चहकती दिखाई दे जाती थी, लेकिन अब इसकी आवाज कानों तक नहीं पड़ती है. गौरैया की घटती संख्या को लेकर यह दिवस मनाए जाने लगा और साल 2010 में पहली बार पुरे विश्व में गौरैया दिवस मनाया गया .
एक रिपोर्ट्स के अनुसार गौरैया की संख्या में करीब 70 फीसदी तक कमी आ गई है. इस दिवस का उद्देश्य गौरैया चिड़िया का संरक्षण करना है. कुछ वर्षों पहले आसानी से दिख जाने वाली गौरैया तेजी से विलुप्त हो रही है. इनकी विलुप्ति के कारण कई हैं लेकिन उसके समुचित समाधान के कोई ठोस कदम सामने अब तक नहीं आ सके हैं। देश की राजधानी दिल्ली में तो गौरैया इस कदर दुर्लभ हो गई है कि उसे खोज पाना मुमकिन नहीं लगता, शायद इसलिए साल 2012 में दिल्ली सरकार ने गौरैया को राज्य-पक्षी घोषित कर दिया.
आपको बता दें कि ब्रिटेन की 'रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस' ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को 'रेड लिस्ट' में डाला है. खास बात यह है की यह कमी शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में लगातार देखी गई है. पश्चिमी देशों में हुए अध्ययनों के अनुसार गौरैया की आबादी घटकर खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है.
गौरतलब है कि गौरेया 'पासेराडेई' परिवार की सदस्य है, लेकिन कुछ लोग इसे 'वीवर फिंच' परिवार की सदस्य मानते हैं. इनकी लम्बाई 14 से 16 सेंटीमीटर होती है तथा इनका वजन 25 से 32 ग्राम तक होता है. एक समय में इसके कम से कम तीन बच्चे होते हैं. गौरेया अधिकतर झुंड में ही रहती है. भोजन तलाशने के लिए गौरेया का एक झुंड अधिकतम दो मील की दूरी तय करता है.
एक गुजारिश आपसे, गौरैयों को इस तरह बचा सकते हैं -
1. गर्मी के दिनों में अपने घर की छत पर एक बर्तन में पानी भरकर रखें।
2. गौरैया को खाने के लिए कुछ अनाज छतों और पार्कों में रखें।
3. कीटनाशक का प्रयोग कम करें।
4. अपने वाहन को प्रदूषण मुक्त रखें।
5. हरियाली बढ़ाएं, छतों पर घोंसला बनाने के लिए कुछ जगह छोड़ें और उनके घोंसलों को नष्ट न करें।