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आपका मुस्कराना गजब ढा गया ...

बात सन 1973 की है .तब एक फिल्म बनी थी "अनौखी अदा".इस फिल्म की एक कव्वाली आज के अखबारों में छपी प्रधानमंत्री जी की तस्वीर देखकर अचानक याद आ गयी .हमारी पीढ़ी के तमाम लोगों को ये कव्वाली याद होगी .बोल थे-'हाल क्या है दिलों का,न पूछो सनम ? "बात मुस्कराने की थी लेकिन यहां तो हमारे प्र्धानमंत्री जी बुक्का फाड़ते नजर आ रहे हैं .वो भी 42 जवानों की शहादत के सातवें दिन .
हंसना,मुस्कराना ,बुक्का फाड़ना बुरी बात नहीं है लेकिन जब ये गजब ढाने लगे तो बात बनती है .हमारे यहां इन शहीदों के लिए राष्ट्रीय शोक घोषित नहीं किया जाता,हम केवल नेताओं के दिवंगत होने पर राष्ट्रीय शोक मनाते हैं और शायद इसीलिए हमारे यहां मुस्कराने और बुक्का फाड़कर हंसने पर भी कोई मुमानियत नहीं है ,लेकिन हमारा परम्परावादी समाज इसे पचा नहीं पाता.हमारे यहां तरह दिन शोक का चलन है .
बुक्का फाड़ने वाले प्रधानमंत्री के प्रति हमारी पूरी सहानुभूति है ,बेचारे क्या कटे?अब कोई विदेशी मेहमान देश में आ गया है तो उसके सामने मुंह लटका कर तो खड़ा नहीं रहा जा सकता ?गम छिपाकर हंसना,मुस्काराना और कभी-कभी ठठाकर हंसना भी पड़ता है ,अब ये करमजले प्रगतिशील इस पर भी मीन-मेख निकालते हैं तो निकालते रहें. .
भारतीय दर्शन में हर आपत्ति का समाधान भी है .इसीलिए कोई लिख गया-'छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए ,ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए".यानि जो होना था सो हो गया और जो आगे होगा सो हो जाएगा ,खामखां मुंह लकाने से क्या होगा?कोई मारे गए जवान वापस तो आ नहीं जायेंगे ?इसलिए प्रधान जी के मुस्कराने पर नाक-मुंह चिढ़ाने वाले जो जी में आएं करते रहें ,प्रधान जी का मुस्काराना रुकेगा और न रैलियां और सभाएं .उनके लिए तो कर्म ही पूजा है और वे ये पूजा करते रहेंगे .
हमारे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है इसलिए हम सब प्रधान जी के बारे में कुछ भी लिख-बोल लेते हैं,अगर ये ही सब सऊदी अरब में किया होता तो कम से हजार कोड़े पड़ते पीठ पर,खाल निकल कर बाहर आ जाती पर सबका अपना-अपना नसीब है.हम अरब में नहीं भारत में पैदा हुए हैं हम सहिष्णु लोग हैं.हम गांधीवादी मान्यताओं के पीछे चलते हैं .
हमने तो प्रधान जी की बुक्का फाड़कर मुस्कराते हुए सामने आयी तस्वीर मढ़वाकर रख ली है.हम इसे अपने अतिथि कक्ष में लगाएंगे ताकि हमें गम में भी मुस्कारने की प्रेरणा मिलती रहे.गम में मुस्कराने वाले लोग विरले ही होते हैं .हम तो प्रतिकार भी मुस्कराकर ही करते हैं ताकि हमारे शत्रु को बुरा न लगे .हमने अभी तक यही किया है,आगे भी ऐसा ही किया जाएगा.हमें यदि बाबा विश्वनाथ और माँ गंगा का आशीर्वाद मिला तो आप देखना की हम गम में मुस्कराने की कला सीखने के लिए बूथ स्टार तक प्रशिक्षण शिविर लगवा देंगे,जिससे हमारे देश का "हैप्पीनेस इंडेक्स"बढ़ सके .शेष सब कुचल है ,आशा है आपके यहां भी सब राजी खुशी से होंगे .
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