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जाली में जाला, रंगरोगन किसके लिए जब पौधे ही सूख गए

[TODAY छत्तीसगढ़] / न जाने ये विकास का कैसा संकल्प है जिसने जनता को नारकीय जीवन जीने और प्रकृति को दम तोड़ने पर मजबूर कर रखा है। सकरी-कोटा मार्ग पर हजारों पेड़ कट गए, सड़क चौड़ी हो गई और अब लोग उस चमचमाती विकास की सड़क पर बेलगाम रफ्तार से मंजिल तक पहुंचने की रेस में एक दूसरे को पीछे छोड़ते जा रहे हैं। इन सबके बीच किसी की नज़र उन पौधों पर नहीं पड़ती जिन्हे पेड़ काटने की क्षतिपूर्ति के रूप में सड़क किनारे कोरी औपचारिकता के लिए लगाकर लाखों के वारे-न्यारे कर दिए गए। इतना ही नहीं पौधों को बचाने के लिए ट्री गार्ड भी लगाया गया है जिन पर इन दिनों रंगरोगन का काम चल रहा है। पौधे लगाने, उसकी सुरक्षा के इंतजाम और जर्जर ट्री गार्ड के रंगरोगन में मिला भ्र्ष्टाचार का तारपीन तेल अब बू फैला रहा है। जर्जर ट्री गार्ड के भीतर पौधे नहीं हैं, हाँ कुछ जगहों में सूखे पौधे वृक्षारोपण की गवाही के तौर पर जरूर दिखाई देते हैं। सवाल ये है कि जर्जर ट्री गार्ड की बिना ब्रश रंगाई किसके लिए, जब पौधे नहीं तो किसकी सुरक्षा ? इस मामले में दुर्भाग्य की बात ये भी है की जिन लोगों ने कोटा-सकरी मार्ग पर पेड़ों की कटाई को लेकर तमाम कोशिशें की, जिस शैलेष पांडेय ने सीवी रमन विश्वविद्यालय के कुलसचिव रहते हुए पेड़ों की कटाई के विरोध में आवाज बुलंद कर सियासत की पहली पायदान पर कदम रखा वो भी शायद भूले भटके इस तरफ अब नज़रे इनायत नहीं करते।  
सकरी-कोटा मार्ग पर पौधारोपण और उसके संरक्षण के उपाय की ये 8 तस्वीरें
सकरी-कोटा मार्ग पर हजारों पेड़ों की बलि लेने के बाद नए पौधों को लगाकर उनको सुरक्षित रखने के लिए बकायदा ट्री गार्ड लगाया गया है, ट्री गार्ड की हालत या तो तस्वीरों में देखकर समझ लीजिये या फिर कभी इस मार्ग से कोटा, अमरकंटक का सफर करने का मौक़ा मिले तो हालात की हकीकत को एक बार अपनी आँखों से जरूर देखिये। सरकारी काम है, गुणवत्ता और मजबूती पर बिना ध्यान दिए सिर्फ ट्री गार्ड के भीतर पौधों की तलाश कीजियेगा। ग्राम चोरभठ्ठी से गनियारी के बीच लगाए गए पौधों की जर्जर जालियों पर इन दिनों रंग चढ़ाया जा रहा है। जालों से घिरी जालियों के भीतर पौधे नहीं है लेकिन सरकारी काम की रफ्तार बे-रोकटोक औंधें मुंह पड़ी जालियों पर रंग चढ़ा रही है।  इस तरह की खूबसूरती के दीदार अमूमन हर तरफ होंगे।  
कहते हैं सच को आईने की जरूरत नहीं होती, सालों से हो रहे वृक्षारोपण और विकास के नाम पर पेड़ कटाई के बाद लगाए जाने वाले पौधों की हकीकत से सब वाकिफ है। पर्यावरण के हिमायती तभी तक शोर मचाते हैं जब तक सालों पुराना पेड़ कटकर विकास की भेंट नहीं चढ़ता। पेड़ बचाओं, पर्यावरण बचाओं के नारे लगाने वालों का हुजूम उन पौधों की हिफाजत या उनकी वस्तुस्थिति पर कभी गौर करने नहीं पहुंचता। हर साल सरकारी कागजों में होते वृक्षारोपण की हरियाली विभागीय अफसरों की चौखट पर नज़र आती है। वृक्षारोपण, उनकी सुरक्षा इंतजाम के ठेके लेने वालों की चमक उन पौधों की जालियों पर नहीं पड़ती जो जालों से घिर चुकी हैं।     
फलेश बैक -     
बात मई 2017 की है, सकरी-कोटा मार्ग के पेड़ों की कटाई के विरोध में विभिन्न संगठनों और समाज के लोगों ने मुहिम शुरू की थी । एकजुटता के साथ हर वर्ग कटाई के विरोध में सामने आ रहा था । कोटा अंचल के लोग और अधिवक्ता संघ के सदस्यों ने पेड़ काटे जाने के विरोध में दिल्ली तक लड़ाई लड़ने की बात कही भी कही थी । सकरी-कोटा मार्ग चौड़ीकरण के लिए पेड़ों की कटाई के निर्णय का विरोध कई दिन तक जारी रहा। अंचल के प्रकृति प्रेमियों ने कटाई के विरोध में मानव श्रृंखला भी बनाई थी। पेड़ों की कटाई नहीं रोके जाने पर प्रशासन को आंदोलन की चेतावनी देकर कोटा क्षेत्र में जन जागरूकता रैली निकाली गई। नतीजा, हजारों पेड़ कटे। सड़क चौड़ीकरण का काम शुरू हुआ और देखते ही देखते पूरा हो गया।  विकास की भेंट चढ़े वृक्षों की पूर्ति के लिए कुछ समय पहले पौधे लगाए गए, अब कहाँ है पता नहीं। 
मनुष्य के साथ पशु पक्षियों के लिए नुकसानदायक - पांडेय 
डॉ.सीवी रामन विवि के कुलसचिव रहे, अब बिलासपुर विधायक शैलेष पांडेय ने कहा था कि शासन-प्रशासन के अधिकारी खुद कहते हैं कि सरकारी निर्भरता से पर्यावरण को बचाए रखना संभव नहीं है। इसके लिए सभी को एकजुट होकर मदद करना चाहिए। इसलिए पेड़ों को काटना अंतिम विकल्प होना चाहिए। पेड़ों को काटने के लिए पर्यावरण विभाग से अनापत्ति लेना शायद टेंडर की प्रक्रिया में नहीं है। उन्होंने शहर और जिले के लोगों से पेड़ों को बचाने अधिक से अधिक संख्या में पत्र व मोबाइल के माध्यम से संदेश शासन, प्रशासन, दिल्ली के अधिकारियों और नेताओं को भेजने कहा की बात कही थी । सियासत के मैदान में कूदने की कोशिश में जुटे शैलेश ने उस वक्त चिंता जाहिर की थी कि बिलासपुर का तापमान अब 49 डिग्री से अधिक पहुंचता है जो कि मनुष्य के साथ पशु पक्षियों के लिए नुकसानदायक है। 
शायद उन्हें अपनी कही हुई ये बातें ना याद हो लेकिन आने वाले महीनों में एक बार फिर पारे का तेवर आसमान छुएगा। जब उन्होंने पेड़ों की कटाई का शोर मचाने के लिए गला साफ़ किया तब वे कुलसचिव थे, आज विधायक है। बतौर जनप्रतिनिधि अब इस दिशा में उनकी जिम्मेवारी ज्यादा बनती है। हालांकि वृक्षारोपण को लेकर की जा रही लीपापोती का इलाका तखतपुर विधानसभा का हिस्सा है लेकिन जिम्मेदार आम नागरिक, जनप्रतिनिधि और पर्यावरण प्रेमियों के लिए इस तरह के क्रियाकलापों के खिलाफ आवाज मुखर करने में सीमाएं बाधा नहीं बनती, बशर्ते इस तरह  भ्रस्टचार को पर्यावरण संरक्षण और आने वाली पीढ़ी के भविष्य को ध्यान में रखकर देखा जाये। 


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