बांग्लादेश के चुनावों में एक बार फिर वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना अपनी पार्टी को तकरीबन पूरे ही देश में फतह दिलाकर फिर प्रधानमंत्री बनने जा रही हैं। वे बांग्लादेश के पहले प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी हैं और उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए अपने देश के इतिहास की सबसे लंबे समय तक रहने वाली प्रधानमंत्री हो गई हैं। लेकिन इस खबर से एक दूसरी बात जो सूझती है वह यह कि भारत में भी इंदिरा गांधी का लंबा राज रहा, और उनके बाद उनकी बहू सोनिया गांधी इस पार्टी की निर्विवाद और लंबे समय तक अध्यक्ष रहने वाली महिला रहीं। अब भारत के नीचे श्रीलंका को देखें, तो वहां भी महिला प्रधानमंत्री रह चुकी हैं, पड़ोस के पाकिस्तान में भी बेनजीर भुट्टो प्रधानमंत्री रही चुकी हैं, और अभी ताजा-ताजा चुनावों के बाद म्यांमार में आंग-सांग-सू-की प्रधानमंत्री के बराबर के दर्जे वाली स्टेट-काउंसलर बनी हैं। उधर नेपाल में बिद्यादेवी भंडारी राष्ट्रपति बनी हैं, और वे इसके पहले भी वहां की रक्षामंत्री थीं। अगल-बगल के इतने देशों में महिलाओं का इस तरह राज देखने लायक है, और दुनिया में शायद ही देशों का कोई ऐसा पड़ोसी-समूह होगा जिनमें महिलाएं राज भी करती रहीं, और आम महिलाओं की बदहाली भी चलती रही।
इन देशों में महिलाएं अपने परिवारों की राजनीतिक विरासत पाकर भी आगे बढ़ीं, और तमाम किस्म के विरोध को झेलते हुए, संघर्ष करते हुए भी उन्होंने कामयाबी पाई। दो बातें इन देशों के बारे में उभरकर दिखती हैं कि इनमें कुनबापरस्ती के पनपने की खूब गुंजाइश है, और लोग बार-बार इन कुनबों को आगे बढ़ाते हैं। और दूसरी बात यह कि इन तमाम पितृसत्तात्मक समाजों में भी नेताओं की विरासत को बेटियों ने या बहुओं ने आगे बढ़ाया, और समाज ने उसे मंजूर भी कर लिया। लेकिन एक अजीब बात यह है कि इन्हीं समाजों में, इन्हीं देशों में आम महिलाओं का हाल सुधर नहीं पाया, और तमाम जगहों पर उनकी बदहाली है। अब इन राजनीतिक और सामाजिक तथ्यों को देखकर यह सोचने-समझने की जरूरत है कि हिंद महासागर क्षेत्र के इन तमाम देशों में ऐसा क्या है कि महिला को लोग सिर पर भी बिठाते हैं, और पैरों तलों भी कुचलते हैं। इस मुद्दे पर खुलासे से सोचने की जरूरत है।