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[TODAY छत्तीसगढ़] / देश में गिद्धों की लगभग 90 फीसदी आबादी के मारे जाने के बाद अब इनके संरक्षण के लिए प्रयास किये जा रहे हैं. छत्तीसगढ़ समेत देश के दूसरे राज्यों में काले गिद्ध बचाने के लिए सरकारी प्रोजेक्ट चल रहें हैं लेकिन सफ़ेद गिद्धों की उड़ान आज भी भगवान भरोसे है। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले समेत दूसरे जिलों में दिखाई पड़ते इजिप्शन वल्चर यानी सफ़ेद गिद्ध अपनी वापसी की उड़ान भर चुका है, आसमान में उड़ते सफ़ेद गिद्ध आशा की नई किरण के साथ लौटे हैं उन्हें अब संरक्षण की दरकार है लेकिन सरकार-सरकारी तंत्र और पक्षियों की वकालत करने वाला एक बड़ा वर्ग अब भी खामोश है जबकि बिलासपुर जिले के कोपरा से लेकर कोटा और अन्य क्षेत्रों तक दिखाई पड़ते सफ़ेद गिद्धों की संख्या बताती है पर्यावरण के प्राकृतिक सफाई कर्मी लौट आएं हैं बस उन्हें संरक्षण-संवर्धन का इंतज़ार है।  
  एक अनुमान के मुताबिक 40 साल पहले जहां देश में लगभग चार करोड़ गिद्ध थे तो अब चार लाख भी नहीं बचे हैं. गिद्धों की संख्या में आयी इस तेज़ गिरावट के बाद सरकार की नींद टूटी है और वह इनकी संख्या बढ़ाने के विभिन्न उपायों पर काम कर रही है. गिद्ध पर्यावरण के प्राकृतिक सफाईकर्मी पक्षी होते हैं जो विशाल जीवों के शवों का भक्षण कर पर्यावरण को साथ-सुथरा रखने का कार्य करते हैं. पर्यावरण के संतुलन में इनकी बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका है. गिद्धों की पर्याप्त मौजूदगी से मृत पशुओं से फैलने वाली बीमारी का उतना खतरा नहीं रहता था क्योंकि गिद्ध बड़ी ही सफाई से चट कर जाया करते थे लेकिन गिद्धों की विलुप्ति के बाद शव सड़कर बीमारियों के वाहक बनने लगे हैं. इन गिद्धों के कम होने से भोजन श्रृंखला की एक कड़ी समाप्ति के कगार पर पहुंच गयी है. 
गिद्धों की जनसंख्या को बढ़ाने के सरकारी प्रयासों को मिली नाकामी से भी इनकी संख्या में गिरावट आई है। इनकी प्रजनन क्षमता भी संवर्धन के प्रयासों में एक बड़ी बाधा है, गिद्ध जोड़े साल में औसतन एक ही बच्चे को जन्म देते हैं। । भारत मे कभी गिद्धों की नौ प्रजातियां पाई जाती थी, जिनमें  बियर्डेड, इजिप्शयन, स्बैंडर बिल्ड, सिनेरियस, किंग, यूरेजिन, लोंगबिल्ड, हिमालियन ग्रिफिम एवं व्हाइट बैक्ड। इनमें से चार प्रवासी किस्म की हैं। एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि यदि भारत में लगातार विलुप्त हो रहे गिद्धों को बचाना है तो जानवरों को दी जाने वाली दवा को बदलना होगा। इसमें कहा गया है कि इस दवा को खाने वाले जानवरों का मांस खाकर पिछले 15 सालों में गिद्ध की प्रजाति ख़त्म हुई है। 
 काले गिद्धों के संरक्षण के लिए अचानकमार टाइगर रिजर्व के औरापानी में सरकारी प्रयास जारी है लेकिन अच्छी-खासी संख्या में लौटकर आये सफ़ेद गिद्धों पर किसी की नज़र नहीं है। कोपरा से लेकर कोटा तक आसमान में उड़ते सफ़ेद गिद्ध फिलहाल तो भगवान भरोसे हैं, देखते हैं इन्हे बचाने के लिए कहीं से कोई गिद्ध नज़र सामने आती है या फिर ये इंसानी क्रूरता के एक बार फिर शिकार बन जायेंगे। 
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