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लाल मुनिया : प्रजनन के समय लाल हो जाती है

[TODAY छत्तीसगढ़] / लाल मुनिया संपूर्ण भारत में पाई जाती है। इसे रेड अवाडवत, टाइगर फींच, स्टॉबरी फींच व वैक्सबील आदि नाम से भी जाना जाता है। पुराने समय में इस पक्षी को अहमदाबाद से दुनिया के दूसरे हिस्सों में निर्यात किया गया था। इस वजह से अहमदाबाद से इसका साधारण नाम अवाडवर पड़ा। नर व मादा दोनों के शरीर पर सफेद चित्ते होते है। इनकी चमकीली लाल चोंच, चमड़े के रंग के पंजे, आंखे काली व लाल भूरी होती है। इनका पिछला हिस्सा लाल रंग का होता है, लेकिन नर पक्षी प्रजनन के समय लगभग पूर्ण रूप से लाल रंग का हो जाता है, जिस पर सफेद चित्ते तथा आंख के पास काली पट्टी होती है।
ये पक्षी आमतौर पर पानी वाली जगहों, घास के मैदानों, गन्ने के खेतों के आस-पास व जलाशयों के किनारे उगी बड़ी घास के अंदर रहते है। जब ये बड़ी घास, सरकंडा आदि में बैठे रहते है और आस-पास किसी इंसानी आहट को देख ये तेजी से आसमान की तरफ हल्की चहचाहट के साथ उड़ान भर देते है। इन पक्षियों का मुख्य भोजन घास, बीज और अनाज है। वैसे जानकार बताते हैं ये कभी-कभी कीट व कीड़े खाते हुए भी देखे गए है।

" मुनिया एक पक्षी है जो भारत, श्रीलंका, इण्डोनेशिया, फिलिपीन्स तथा अफ्रीका 
का देशज है। इसका आकार गौरैया से कुछ छोटा होता है। यह छोटे छोटे झुंडों
 में घास के बीच खाने निकलती है। खेतों में भूमि पर गिरे बीजों को खाती है।
 मंद-मंद कलरव करती है। यह छोटी झाड़ियों या वृक्षों में 5-10 फुट
 की उँचाई पर घोसला बनाती है। इसकी चार पाँच उपजातियाँ
 हैं: श्वेतपृष्ठ मुनिया, श्वेतकंठ मुनिया, कृष्णसिर मुनिया, बिंदुकित (spotted)
 मुनिया तथा लाल मुनिया। "

                
नाचती है लाल मुनिया - 
इस पक्षी के प्रजनन का समय जून से अक्टूबर माह तक होता है। प्रजनन के समय मादा को आकर्षित करने के लिए नर पक्षी का रंग पूरा लाल हो जाता है। ये पक्षी हवा में उड़ते हुए तिनका लेकर नाचते है। प्रजनन समय के बाद नर पक्षी का रंग भी लगभग मादा पक्षी जैसा ही दिखता है। ये आमतौर पर एक बड़े समूह में रहते है, लेकिन प्रजनन के समय जोड़ा बनने पर यह समूह से अलग होकर घोंसला बनाता है। घोंसले जमीन से एक मीटर की ऊंचाई पर छोटी झाड़ियों, बड़ी घास, सरकंडा आदि में बनाते है। घोंसला घास से बनाया जाता है तथा इसके अंदर घास के मुलायम रेशे व पंखों को रखते है ताकि अंडों व चूजों को नुकसान न पहुंचे। मादा पक्षी चार से छह अंडे देती है। यह भी देखा जा सकता है कि मादा पक्षी के अंडे देने के बाद भी नर पक्षी घोंसले पर घास के तिनके लगाते रहते है। इस पक्षी की संख्या काफी कम हो रही है, जिसका मुख्य कारण इसके प्राकृतिक वास का घटना है। तालाब, बड़े जलाशयों के सिकुड़ने से इसके आस-पास आने वाली घास, सरकंडे व पटीरा आदि कम हो रहा है। इन पक्षियों को भी अब संरक्षण की दरकार है।


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