लगभग 14 साल पुरानी घटना है, रात 10 बजे मैं प्रेस में बैठा काम कर रहा था, उसी समय फोन की घंटी बजी, फोन करने वाले ने बताया कि फलां जनपद पंचायत कार्यालय में इतनी रात बहुत से लोग जमा हैं, कार्यालय के बाहर भोजन बनाया जा रहा है, आसपास कई टैक्सियां खड़ी हैं, लगता है कुछ गड़बडी की जा रही है।
मैंने तत्कालीन जिला पंचायत सीईओ को इसकी जानकारी दी, सुनकर वे चौंक पड़े, उन्होंने कहा वहां कल शिक्षाकर्मी की भर्ती सूची जारी होने वाली है, लगता है वास्तव में कुछ गड़बड़ हो रही है, हम जाकर देखते हैं, फिर आपको सूचना देंगे।
दो घंटे बाद रात 12 बजे उन्होंने फोन किया, कहा आपने तो गजब कर दिया, जनपद पंचायत का सीईओ शिक्षाकर्मी भर्ती में गड़बड़ी कर रहा था, वह गलत सूची जारी कर रातोंरात फर्जी शिक्षाकर्मियों को ड्यूटी ज्वाइन कराना चाहता था, इसलिए सभी को जनपद पंचायत बुलाकर उनके लिए भोजन बनवा रहा था, उन्हें ड्यूटी ज्वाइन करने भेजने के लिए उसने टैक्सी की व्यवस्था कर रखी थी, हमने सारे दस्तावेज जब्त कर लिए हैं और भर्ती सूची रद्द कर दी है.....मैंने इस समाचार को प्रमुखता से बनाया।
अगले दिन जनपद पंचायत का सीईओ सस्पेंड हो गया, फिर मामले की जांच शुरू हुई, जांच अधिकारी घोर भ्रष्टाचार विरोधी एक मित्र थीं, इसलिए मुझे सारी जानकारियां मिलती रहीं। जांच में पाया गया कि उस जनपद सीईओ ने लाखों रुपए लेकर फर्जी भर्ती करने का प्रयास किया था, उसने कम अंक पाने वाले लोगों की ओरिजनल मार्कशीट में प्राप्तांक बढ़ाकर उन्हें मेरिट सूची में ऊपर कर दिया था, कई ऐसे लोगों जिन्हें 200 में 20 अंग मिले थे, एक जीरो बढ़ाकर उन्हें उसने 200 में 200 दिला दिया था, मार्कशीट में पेन और पेंसिल से नंबर बढ़ा दिए गए थे। बहुत से दस्तावेजों को जला दिया गया था।
जानकारी मिलती गई, मैं खबरें छापता रहा, जांच पूरी होने के बाद रिपोर्ट सबमिट की गई....और फिर पता नहीं चला कि क्या हुआ। बहुत दिनों के बाद वह निलंबित जनपद सीईओ मुझे जिला पंचायत के दरवाजे पर खड़ा दिखा, वह मेरी ओर देखकर मुस्कुरा रहा था, उस समय मैं उसकी मुस्कुराहट का राज नहीं जान सका। अंदर जाने पर पता चला कि वह बहाल हो गया है और उसकी पोस्टिंग दूसरे जिले में कर दी गई है.....
मैंने पता किया कि यह बहाल कैसे हो गया, मुझे बताया गया कि तुम इसके खिलाफ जितनी खबर छापते गए, इसका खर्च उतना ही अधिक बढ़ता गया, अंत में इसने सारे कर्जे चुकाकर अपनी कुर्सी वापस पा ली है.....
इसी तरह एक अन्य जनपद सीईओ लपेटे में आया, उसने सरपंचों के नाम से कम से कम तीन करोड़ रुपए उदरस्थ कर दिया था, मैंने गांव गांव घूमकर उसकी रिपोर्ट बनाई, अखबार में छापा, उस जनपद सीईओ के खिलाफ जांच हुई, वह सस्पेंड हुआ, परन्तु फिर कुछ दिनों के बाद बहाल होकर मुस्कुराता हुआ दिखाई दिया।
लाखों रुपए का चाक खा जाने वाले एक शिक्षा अधिकारी और करोड़ों की सरकारी जमीन बेचने वाले एक राजस्व अधिकारी के खिलाफ भी खबरों की सिरीज चलाया, इनके खिलाफ जांच हुई, ये सस्पेंड हुए, पर कुछ दिन आराम करने के बाद उच्च अधिकारियों और नेताओं की कृपा से बहाल हो गए, उनका राजपाठ फिर चलने लगा....
पिछले 15 साल में इस तरह के न जाने कितने अधिकारी सस्पेंड होकर बहाल होते रहे। अधिकारियों की बहाली देख हम पत्रकार इस तथ्य पर विचार करने लगे कि हमें भ्रष्टाचार संबंधी खबरें छापना चाहिए या नहीं, क्योंकि हम खबर छापते हैं, तो अधिकारी सस्पेंड होता है और सत्ता के दलालों को एक मुर्गा मिल जाता है, दलालों की कृपा से वह अधिकारी फिर बहाल होकर हमारे ही सामने मूंछें एैंठने लगता है।
गुस्से में कुछ दिन भ्रष्टाचार की ओर देखना, खबरें छापना बंद कर दिया, पर पत्रकार अपनी आदत से मजबूर होते हैं। कहीं से कोई मसालेदार खबर मिलती है, तो वे उसे छापे बिना नहीं रहते, सो फिर खबर खोजने और छापने का सिलसिला चलने लगा...
अब सरकार बदल गई है, भाजपा की जगह भारी बहुमत से कांग्रेस की सरकार अस्तित्व में आ गई है, देखना यही है कि अब हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे वाली नीति बदलती है या नहीं...इस नीति को बदलना, इस तरह के भ्रष्ट अफसरों पर लगाम कसना सरकार की बड़ी चुनौतियों में शामिल है, यदि ऐसा नहीं हुआ, तो समझा यही जाएगा कि सिर्फ चेहरे ही बदले हैं, चाल नहीं ... TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें -