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               [TODAY छत्तीसगढ़ ] /  मैकल पर्वत श्रंखलाओं से घिरा अचानकमार टाइगर रिजर्व दशकों से प्रकृति और वन्य प्रेमियों के आकर्षण का बड़ा केंद्र रहा है। यहां के जंगल की खूबसूरती और विविधताओं ने अचानकमार को प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के अन्य वन क्षेत्रों से हमेशा अलग रखा है। ये बात दीगर है की कुछ कमियों और तत्कालीन वन अफसरों की लापरवाहियों के चलते अचानकमार क्षेत्र का जंगल उजड़ता चला गया। अचानकमार अभ्यरण्य, टाइगर रिजर्व बनने के बाद बाघों को लेकर हमेशा सुर्ख़ियों में रहा। साल-दर-साल बाघों की गणना, उसके आंकड़े और विभागीय आंकड़ों में  शुरूआती दौर से ही विरोधाभास रहा। पर्यटकों के बीच भी बाघों को लेकर सिर्फ उत्सुकता रही, आँखों से देख पाने का सुख प्रमाणिकता के तौर पर आज तलक सामने नहीं आ सका। 


    अचानकमार टाइगर रिजर्व में पर्यटकों को बेहतर तरीके से वन्य भ्रमण, उसके संबंध में प्रामाणिक जानकारी और पर्यटन बढ़ाने की दिशा में आज तक कोई ठोस कार्य योजना भी नहीं बनती दिखाई पडी। देश के दूसरे राज्यों के टाइगर रिजर्व या फिर नेशनल पार्क की तरह यहां पर्यटकों के मद्देनज़र सुविधाओं का हमेशा अभाव रहा, हाल ही में कुछ संसाधनों में वृद्धि जरूर हुई है। अचानकमार में आधे अधूरे अप्रशिक्षित गाइड, कुछ ऐसे वन कर्मी जिन्हे इस जंगल के भूगोल का पता नहीं उनसे वन्य जीवन के विषय में जानकारी हासिल करना मानिये टेढ़ी खीर। वन्य जीव प्रेमी और वाइल्ड लाइफ बोर्ड के पूर्व सदस्य प्राण चढ्ढा ने इस सम्बन्ध में कुछ तार्किक बातें रखीं और पर्यटन को बढ़ाने के लिहाज से कुछ जानकारियां दी। अचानकमार टाइगर रिजर्व में ग्रास लैंड तैयार किया जाये ताकि वन्य जीवों को स्वच्छंद माहौल मिल सके। 
प्राण चढ्ढा ने बताया की सबसे पहले पार्क के भीतर बसे 19 गांव का कोई मवेशी और कुत्ता जंगल में नहीं दिखे। मवेशी और कुत्तों के संबंध में यहां विस्तार से बताना जरूरी है, इन दिनों मवेशियों में खुरहा और चपका रोग होता है जिसकी चपेट में बाइसन,चीतल, सांभर और कोटरी जैसे वन्य जीव तुरंत आते हैं। वनांचल में बसे लोग अपने पास कुत्ते रखते हैं जो मूलतः शिकारी प्रवित्ति के होते हैं। ये शिकारी कुत्ते कोटरी,चीतल को तुरंत अपना निशाना बनाते हैं। इनसे बचाव की दिशा में सख्त कदम उठाने की जरूरत है।  मनियारी नदी में कई जगह पानी रोका जाए। ये काम गर्मी तक चलता रहे ताकि वन्य जीवों को पानी की कमी से यहां-वहां भटकना ना पड़े। टाइगर रिजर्व के भीतर जो भी निर्माण काम हुए हैं उनका और नए भवन जो बने उनका रंग हरा रहे जिससे वन्य जीव फ्रेंडली हो सकेंगे। बीते सीज़न में सैलानियों के लिए सिर्फ तीन जिप्सी थीं, इस वजह से निजी कार को पार्क के भीतर प्रवेश दिया जाता था लेकिन जिप्सियों की संख्या बढ़ने के बाद ये उम्मीद की जाती है की वन प्रबंधन निजी वाहनों के प्रवेश पर रोक लगाएगा।  किया जाता। कम से कम लमनी गेट में चौकसी जरूरी है। वन्यजीवों के लिए सौर ऊर्जा चलित पंप उन सब जगह लगाए जाएं जहां मई में पानी सूख जाता है।  सैलानियों की जिप्सी धक्का परेड नहीं हो, और सर्विसिंग ठीक हो।
पार्क में जो पहले पहुँचे उनको म्यूजियम गाइड़ के माद्यम से दिखाया जाए ताकि सैलानियों का जुड़ाव जंगल और जीवों से हो सके। अचानकमार पार्क की जानकारी पुस्तक औऱ सोविनियर प्रवेश द्वार पर शाप में उपलब्ध कराया जाए ताकि अधिक से अधिक जानकारी लोगों तक पहुँच सके।  कान्हा जैसे पार्क में कोई कैमरा शुल्क नहीं, पर यहां सौ रुपये प्रति कैमरा लिया जाता है,जबकि यहां की फॉटो से पार्क का प्रचार होता है, इस दिशा में प्रबंधन को विचार करना होगा।   कान्हा में पहले और अभी जनसम्पर्क अधिकारी है, यहां अधिकारी ही ये काम देखते हैं और उलझ जाते हैं। ऐसे में किसी जिम्मेदार व्यक्ति को जनसम्पर्क का काम दिया जाये जो पूरी तरह वन और वन्य जीवन के प्रति जवाबदेह हो।  पार्क में तीर कमान और भरमार बंदूकों की क्या अवश्यकता,बसे सभी गांव में इनको प्रतिबंधित किया जाए।  एक बात और अचानकमार वन प्रबंधन बाघ की वास्तविक संख्या को उजागर करे क्यूंकि सत्ताईस बाघ के आंकड़े फर्जी है ये सभी जानते हैं। यहां तक की हाईकोर्ट भी इस मामले पर सवाल पूछ चुका है। 
पर्यटन बढ़ाने की दिशा में विभाग एक नई शुरुवात ये भी कर सकता है,  सप्ताह में एक दिन अचानकमार टाइगर रिजर्व की बस [कैंटर] शहर तक आये और पर्यटकों को लेकर पार्क जाये। इसके लिए स्थान और शुल्क तय किया जाये। इससे पर्यटकों का रुझान अचानकमार के जंगल और जीवों के प्रति बढ़ेगा।   
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