Slider

[TODAY छत्तीसगढ़ ] /  बिलासपुर जिला मुख्यालय से महज ३० किलोमीटर दूर कोटेश्वर महादेव [कोटा] की नगरी में सालों पुराना कोटसागर तालाब अपने सुरते हाल पर आंसू बहा रहा है। इतिहास के पन्नों की गर्द झाड़कर देखें तो कोटेश्वर महादेव जिनके नाम पर कोटा बसा वहां की सभ्यता-संस्कृति की अपनी अलग ही पहचान रही है लेकिन वक्त की धूप में वो तस्वीरें धुंधली होती चली गईं और इतिहास का पन्ना मटमैला हो गया। आज का नगर पंचायत कोटा अपनी विरासतों को सहेजने में अपाहिज सा नज़र आता है। कोटसागर तालाब के जीर्णोद्धार और साफ़-सफाई के नाम पर लाखों का फंड सरकारी कागजों की नियमावली का पालन करता हुआ हिस्सों में बाँट लिया जाता है । कोटा में रहने वाले वो लोग जिन्होंने इस तालाब के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को देखा समझा उनकी कोई सुनता नहीं क्यूंकि बदलते वक्त ने धर्म-संस्कृति पर स्वार्थ का चन्दन माथे पर लगाने वालों को समाज का अगुवा बना दिया। काफी जीर्ण-शीर्ण हो चुके इस तालाब के पास ही कइयों ईंट भठ्ठे अवैध तरीके से चल रहें है, किसी को परेशानी इसलिए नहीं क्यूंकि भठ्ठा मालिक किसी न किसी सियासी दल का पैरोकार है। इन तमाम परिदृश्यों में जो तस्वीर सामने है वो कहती है 'धर्म-संस्कृति की पहचान रहे तालाब अब मलबे से अटे पड़े हैं, प्रदूषित जल हमारी आस्था के चेहरे पर दुर्गन्ध फैला रहा है।' 





            इन तस्वीरों को देखिये फिर सोचिये- सैकड़ों, हजारों तालाब अचानक शून्य से प्रकट नहीं हुए थे। इनके पीछे एक इकाई थी बनवाने वालों की, तो दहाई थी बनाने वालों की। यह इकाई, दहाई मिलकर सैकड़ा, हजार बनती थी। लेकिन पिछले दो दशकों में नए किस्म की थोड़ी सी पढ़ाई पढ़ गए समाज ने इस इकाई, दहाई, सैकड़ा, हजार को शून्य बना दिया। नए समाज के मन में इतनी भी उत्सुकता नहीं बची कि उससे पहले के दौर में इतने सारे तालाब भला कौन बनाता था, ये जान लें ? तालाबों का अस्तित्व संकट में हैं, कंक्रीट की इमारतों के लिए शहरों में तालाब दफन कर दिए गए, जो बचे उनका भगवान भी मालिक नहीं। ग्रामीण इलाकों में कभी तालाब देवता का स्वरूप हुआ करते थे, बदलते वक्त के साथ गंदगी के ढेर से पटकर सड़ांध मारने लगे। सोचता हूँ जो सरकारें सैकड़ों-हजारों किलोमीटर लम्बी नदियों को निर्मल करने का संकल्प लिए बैठी हैं वे ईमानदारी से कभी तालाबों और प्राकृतिक जल स्त्रोतों के बारे में क्यों नहीं सोचती । सिर्फ स्वच्छता की बातें हो रहीं है ना नदियाँ साफ़ हैं, ना जलाशय निर्मल।
                                                                    ------------- 
© all rights reserved TODAY छत्तीसगढ़ 2018
todaychhattisgarhtcg@gmail.com