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   सियासत की कालिख से चेहरा बचाकर, कहीं सौम्यता न खराब हो जाये

                           ० सत्यप्रकाश पांडेय  

      [TODAY छत्तीसगढ़ ] /इन दिनों मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह से ज्यादा सुर्ख़ियों में ओपी चौधरी हैं, कुछ दिन पहले तक राजतंत्र के सेवक कहलाते थे, अब लोकतंत्र में ‘अपनी माटी के लोगों की सेवा’ करेंगे। रायपुर कलक्टर रहे पूर्व आईएएस अफसर ओपी चौधरी तेरह साल की अफसारशाही में ये समझ गए की ‘अपनी माटी के लोगों की सेवा’ के लिए सियासी रंग में रंगना होगा, ऐसे में उन्हें भगवा रंग कुछ ज्यादा चटकदार लगा। लोकसेवक से लोकतंत्र की सेवा करने का फैसला ओपी साहब का व्यक्तिगत है।  इस बात को सेवा छोड़ने के बाद वे कई बार कह चुके हैं, आगे भी कहते रहेंगे। हाँ वो इस बात को खुलकर कहते जरूर कहते हैं की भाजपा ही एकमात्र पार्टी है जो इस देश को नित नई उचाईयों तक ले जा सकती है, चौधरी जी के लिहाज से प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी जी ने भारत को विश्व के नक्शें में नई पहचान और ऊंचाइया दी हैं। जब उनसे पूछा जाता है की आपका लक्ष्य क्या होगा ? जवाब मिलता है, कुछ नहीं। मतलब उन्होंने बिना किसी लक्ष्य के भाजपा का दामन थामा है वो भी विकट परिस्थितियों में ? खैर बेहद सरल-सहज और मिलनसार व्यक्तित्व के धनी ओपी चौधरी कम वर्षों की सेवा काल में अपनी अलग पहचान अलग कार्यशैली की वजह से रखते थे, उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य के अलावा कई रचनात्मक कार्यों को अमलीजामा पहनाया। वे इस प्रदेश के सैकड़ों युवाओं के आइडियल हैं, ऐसे में शायद वो  अपने अतीत को भुला नहीं पाए, उन्होंने अपने संघर्षों की यात्रा, परिवार की स्थिति और गाँव के लोगों की बेबसी को हमेशा अपने जहन में रखा होगा तब तो आज राज्य के उस 'बायंग' [खरसिया विधानसभा का गाँव] को राज्य के नक़्शे में अलग से चमकते हुए देखा जा रहा है। आज ओपी साहब उस घुटन से दूर खुली हवा में खुलकर सांस लेते दिखाई पड़ते हैं जहां सिस्टम में रहकर सिस्टम को सुधारने की सिर्फ बाते हुआ करती थीं। उस लाचारी से निकलकर अब वो सच मायने में खुद को अपनों के बेहद करीब पाते हैं, इसे वो कई बार कह भी चुके हैं की प्रशासनिक ओहदे पर रहकर कई बातों की मर्यादा, अनुशासन का पालन करना पड़ता था। 
                                                            कुछ दिन पहले ही भाजपा की सदस्य्ता लेने वाले  भारतीय जनता पार्टी के सच्चा सिपाही ओपी चौधरी साहब इन दिनों रायगढ़ जिले की खरसिया विधानसभा सीट के हर हिस्से में केंद्र और राज्य सरकार की विकास गाथा गाते घूम रहें है, साथ में सैकड़ों लोगों का हुजूम नए सिपाही के स्वागत सत्कार में आगे-पीछे  होता है। फूल मालाओं से लदे ओपी चौधरी कल तक सर या फिर साहब थे, आज इलाके में सबके दुलरुआ भइया, बेटा हैं। जब वे आईएएस के रुतबे, सुविधाओं को छोड़कर राजनीति का चश्मा लगाकर पहली बार गाँव पहुंचें तो अपनी माँ और माटी दोनों को शीश नवकार प्रणाम किया। हालांकि इसके पहले वो पार्टी प्रवेश की प्रकिया के दौरान कई दिग्गजों के चरण छूने की प्रेक्टिस दिल्ली से रायपुर तक कर चुके थे, वैसे भी राजनीति में एक दूसरे के पैर सम्मान के लिए नहीं छुए जाते बल्कि उन्हें खींचकर आगे बढ़ने की कोशिश होती हैं। ओपी चौधरी ने सेवाकाल के दौरान शायद एक बात और महसूस की होगी की विधायिका आज भी सर्वोच्च है, भले ही उस विधायिका में लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से चुनकर आये लोकतंत्र का सेवक अनपढ़ ही क्यों ना हो ? ऐसे में चौधरी साहब के शैक्षणिक स्तर का लाभ पार्टी से जुड़े प्रत्येक अशिक्षित मंत्री,नेता, कार्यकर्ता के साथ साथ क्षेत्र की जनता को जरूर मिलेगा। 
                                                           अब बात करते हैं उनके खरसिया विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की, भाजपा में शामिल होने से पहले ही खरसिया विधानसभा क्षेत्र में इस बात की अफवाहों का बाजार गर्म था हालांकि उस समय वे लोकसेवक होने के नाते तमाम बातों को सिरे से ख़ारिज करते रहे। खारिज तो आज भी करते हैं जब उनसे ये पूछा जाता है की आप खरसिया से भाजपा के उम्मीदवार हैं ? बस इतना सुनते ही ओपी साहब खुद को भाजपा का कद्दावर नेता और सच्चा सिपाही बताकर पार्टी से आदेश मिलने के इन्तजार की बात कह जाते हैं। वो साफ़ कहते हैं पार्टी, संगठन जो जिम्मेवारी देगी उस आदेश का वो ईमानदारी से पालन करेंगे, उनका कहना है हर हाल में उनकी माटी के लोगों का विकास हो। शिक्षा, स्वास्थ्य, मुलभुत जरूरतें, सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं का लाभ हर जरुरत मंद को मिले। जब से साहब से नेता बने हैं तब से बोलचाल की शैली में भी बदलाव देखने को मिला है मसलन किस बात का जवाब देना है, किसे मुस्कुराकर टाल जाना है और किस तरह विपक्ष के बयानों पर निशाना साधना है। ये शायद पार्टी के पहले ऐसे कद्दावर नेता और सिपाही होंगे जो सदस्य्ता ग्रहण के बाद से लगातार खरसिया क्षेत्र में दौरे और सभाएं किये जा रहें हैं। चौधरी जी भले ही मत कहें पर कोई यूँ ही प्रशासनिक सेवा के सर्वोच्च पद को छोड़कर सियासत के अखाड़े में छलांग नहीं लगाता जबकि सामने 'खली' जैसा दुश्मन हो । वैसे भी इस देश की सियासत ने कई इतिहास लिखें हैं, आगे भी लिखे जायेंगे। 
          दरअसल खरसिया विधानसभा सीट आज से नहीं दशकों पहले से बड़ी ही चर्चित सीटों में शुमार रही है। अर्जुन सिंह, कुमार दिलीप सिंह जूदेव, पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी जैसे दिगज्जों ने यहां से भाग्य आजमाया है। यहां की माटी से स्वर्गीय लखीराम जी अग्रवाल जैसे भाजपा के पितृ पुरुष पैदा हुए हैं जिन्होंने छत्तीसगढ़ में भाजपा के बीज को अंकुरित कर विशाल और मजबूत वृक्ष बनाया है। वहीँ दूसरी तरफ कॉंग्रेस का गढ़ रही खरसिया सीट पर दशकों तक स्वर्गीय नन्द कुमार जी पटेल का कब्जा रहा अब उनकी विरासत छोटे बेटे उमेश पटेल संभाल रहें हैं हालांकि इस बार उमेश के लिए राह पहले ही आसान नहीं थी, हाँ जीत से इंकार नहीं किया जा रहा था मगर पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार जीत का अंतर कम होता। अब मैदान में उमेश जैसे सौम्य,सरल युवा चेहरे के सामने ताल ठोकते दूसरे युवा का चेहरा भी उतना ही सौम्य है। वैसे एक सर्वे के मुताबिक इस बार पटेल-अघरिया समाज में भी कुछ मनमुटाव की ख़बरें हैं, ऐसे में वोटों का ध्रुवीकरण तय है। खरसिया में बदलाव की सुगबुगाहटों के बीच विकास अहम् मुद्दा होगा। कॉंग्रेस विधायक उमेश पटेल की निष्क्रियता क्षेत्र के लोगों की जुबान पर है, आम मतदाता मानता है की जिस तरीके से उनके पिता [स्वर्गीय नंदकुमार पटेल ] से अपनापन मिलता था उसकी कमी उमेश में देखने को मिलती है, हालांकि उमेश जैसे युवा चेहरे को कांग्रेस संगठन ने काफी महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा था वो वहां भी असफल ही रहे। पिछले दिनों युवा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देकर वो अपने क्षेत्र में सक्रिय हो चुके हैं। ऐसा माना जा रहा है की इस बार बेहद दिलचस्प मुकाबला होगा, हार-जीत मतदाता तय करेंगे लेकिन इस चुनाव के परिणाम दोनों ही मायनो में ओपी चौधरी के भविष्य को तय करेंगे।
                इधर ओपी जी ना-ना करते हुए अपने चुनाव प्रचार में दिलों जान से जुटे हुए हैं फिर भला वो कितनी भी संजीदगी से ये क्यों ना कहते रहें की वो भाजपा के सिर्फ सच्चे सिपाही हैं, बिना लक्ष्य भाजपा के सदस्य बने हैं ! अरे ओपी साहब घर फूंककर तमाशा कम ही लोग देखते हैं।  आपकी बेताबी, आँखों की चमक और ऊंचाइयों को पा लेने की आदत भला कहाँ छूटने वाली है। बस सियासत की कालिख से चेहरे की सौम्यता को बिगड़ने मत दीजियेगा क्यूंकि सिर्फ 'बायंग' ही नहीं छत्तीसगढ़ की जनता बड़े उम्मीद से आपकी तरफ देख रही है।   
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         किसानों को सौगात, समर्थन मूल्य के साथ मिलेगा बोनस  

             [TODAY छत्तीसगढ़ ] /   आखिरकार सरकार ने चुनाव से पहले किसानों के हित में फैसला ले ही लिया। मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में आज तय किया गया कि धान खरीद के समय धान के समर्थन मूल्य के साथ-साथ बोनस का भुगतान भी किसानों को दिया जाएगा। इसके लिए दो दिन का विशेष सत्र विधानसभा का बुलाया गया है।
      मुख्यमंत्री डॉ सिंह की अध्यक्षता में मंगलवार को राज्य कैबिनेट की बैठक हुई। बैठक में तय किया गया कि इस साल भी किसानों को बोनस दिया जाएगा। धान ख़रीदी के साथ ही धान की कीमत के साथ बोनस की राशि दी जाएगी। इसके लिए अनुपूरक बजट पेश किया जाएगा और 11-12 सितंबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जाएगा। पहले दिने दिवंगत बलरामदास टंडन को श्रदांजलि दी जाएगी। धान बोनस के लिए 24 सौ करोड़ के बजट की आवश्यकता होगी। इसके अलावा पांच सितंबर से विकास यात्रा के संबंध में भी चर्चा ही। इसमें महाराष्ट्र, यूपी, झारखंड के मुख्यमंत्री आएंगे। केंद्रीय मंत्रियों को भी इसमें आमंत्रित किया गया।
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इंजीनियरिंग व पॉलीटेक्नीक कॉलेजों में रिक्त पदों पर नियुक्ति, 

हाको ने की याचिका ख़ारिज 

     [TODAY छत्तीसगढ़ ] / छत्तीसगढ़ पीएससी ने 2015 में प्रदेश के इंजीनियरिंग व पॉलीटेक्नीक कॉलेजों में रिक्त पदों पर नियुक्ति को लेकर हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के फैसले को सही ठहराते हुए मुख्य न्यायाधीश  की डिवीजन बेंच ने सभी अपीलें खारिज कर दी है।
               पीएससी ने 2015 में प्रदेश के इंजीनियरिंग व पॉलीटेक्नीक कॉलेजों में रिक्त पदों पर नियुक्ति के लिए प्रथम श्रेणी में बीई, बीटेक, एम टेक की डिग्री अनिवार्य की थी। इसके लिए आरती वर्मा, मुक्तेश्वरी साहू, गितेश कुमार, पूजा चंद्राकर, सौरभ सिंह समेत अन्य ने भी आवेदन किया था । इनके पास विज्ञापन की शर्तों के मुताबिक शैक्षणिक योग्यता नहीं थी। लिहाजा इनका आवेदन खारिज कर दिया गया था। इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में 27 से अधिक अभ्यर्थियों ने याचिका लगाई थी। हाईकोर्ट ने जुलाई 2017 में सभी याचिकाएं खारिज कर दी थी। जिसके खिलाफ दोबारा अपील की गई थी। मामले पर मुख्य न्यायाधीश अजय कुमार त्रिपाठी और न्यायाधीश संजय अग्रवाल की बेंच में सुनवाई हुई। जिसने हाईकोर्ट की  सिंगल बेंच के फैसले को सही ठहराते हुए सभी अपीलें खारिज कर दी है। लेकिन साथ ही कहा है कि राज्य सरकार तकनीकी कॉलेजों में तत्काल टीचिंग के सभी रिक्त पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू करे।
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      अवैध कब्जे में बने धार्मिक स्थलों की जानकारी दे सरकार -हाको  

                     
[TODAY छत्तीसगढ़ ] / छत्तीसगढ़  हाईकोर्ट ने प्रदेश के सभी शहरों में सड़क के किनारे, सार्वजनिक स्थान, उद्यान समेत किसी भी स्थानों पर अतिक्रमण कर बनाए गए धार्मिक स्थलों के संबंध में जानकारी मांगी है। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के न्यायधीश प्रशांत मिश्रा की बेंच ने इसके लिए राज्य सरकार को तीन सप्ताह का समय दिया है।
                        सुप्रीम कोर्ट की ओर से जनवरी 2018 में एक मामले पर दिए गए अंतरिम आदेश के बाद हाईकोर्ट ने मामले पर संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की है। सुप्रीम कोर्ट ने 31 जनवरी 2018 को एक मामले के साथ प्रस्तुत अंतरिम आवेदन पर सुनवाई करते हुए पूर्व में जारी किए गए आदेश का उल्लेख करते हुए कहा था कि सड़कों, सार्वजनिक स्थलों, उद्यानों व अन्य स्थानों पर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च या अन्य धार्मिक स्थलों का निर्माण करने पर रोक लगा दी थी। संबंधित राज्य सरकारों को आदेश जारी करने से पहले किए गए निर्माण की समीक्षा कर जल्द से जल्द उचित निर्णय लेने के निर्देश भी दिए गए थे। 16 फरवरी को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित राज्यों को 6 सप्ताह के भीतर अवैध रूप से बनाए गए धार्मिक स्थलों को हटाने, स्थानांतरित करने या उनके नियमितीकरण के लिए ठोस नीति बनाने के निर्देश भी दिए थे।
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