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बाघों के संरक्षण और शिकार पर कोर्ट ट्रायल में साक्ष्य एव फोरंसिक विज्ञान के महत्व पर छत्तीसगढ़ में पहली बार हुई राष्ट्रीय वेबिनार


TODAY छत्तीसगढ़  / रायपुर  /  प्रतिवर्ष 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस बाघों के संरक्षण एंव महत्त्व के लिए मनाया जाता है. अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस की पूर्व संध्या पर आज रायपुर में वाइल्डलाइफ क्राईम कंट्रोल ब्यूरो के सेंट्रल रीजनल जबलपुर के डिप्टी डायरेक्टर अभिजीत राय चौधरी के मार्ग निर्देशन में सेंट्रल रीजन की वॉलिंटियर अधिवक्ता यशप्रदा जोगलेकर ने राही  ठाकुर के साथ  रायपुर की फॉरेंसिक साइंस एजुकेशन सोसाइटी के सहयोग से बाघों के संरक्षण, बाघों और अन्य वन्य प्राणियों के शिकार पर कोर्ट ट्रायल में साक्ष्य एंव फॉरेंसिक साइंस के अभियोजन में महत्व पर वेबीनार आयोजित किया जिसमे देश के जाने माने विषेशज्ञयों ने भाग लिया. अभिजीत राय चौधरी ने उद्घाटन उद्बोधन में बताया कि वाइल्डलाइफ क्राईम कंट्रोल ब्यूरो वाइल्डलाइफ के लिए प्रमुख जाँच एजेंसी है एंव वन्यप्राणी अपराध से सभी सम्बंधित क्षेत्रों में क्षमता निर्माण में कार्यरत है। 

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टाइगर सेल (राष्टीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण), वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून के सीनियर साइंटिस्ट अयन साधु ने टाइगर मानिटरिंग तथा बाघों की खाल को पहचानने पर प्रकाश डाल कर बताया कि जिस प्रकार ताजमहल देश की शान है, उसी प्रकार टाइगर भी देश की शान है. उन्होंने बताया कि जंगलों में बाघों के आने-जाने के रास्ते में दोनों तरफ कैमरा ट्रैप लगाए जाते हैं. जब भी बाघ वहां से निकलता है, कैमरा उसके दोनों तरफ की फोटो खींच लेता है, जिससे बाग की लंबाई, उसके कंधे, उसकी पूंछ, उसके हिप, एल्बो और धारियों की जानकारी मिल जाती है. जिसे विशेष प्रकार के सॉफ्टवेयर के माध्यम से कंप्यूटर में रखा जाता है. अभी तक के भारत, बांग्लादेश और नेपाल के चार हजार बाघों की एक लाख बीस हजार फोटो उपलब्ध है. जिससे वे बता सकते हैं कि कौन सा बाघ कब कहां था. इस तकनीकी के विकसित होने से  बाघ की  खाल या उसके बॉडी पार्ट जप्त होने पर पता लगाया जा सकता है कि वह बाघ कहां का था तथा तस्करों द्वारा अपनाए जाने वाले रास्ते का भी पता लगाया जा सकता है तथा शिकारी गतिविधियों पर नियंत्रण किया जा रहा है.

डायरेक्टर स्कूल ऑफ वाइल्डलाइफ एंड फॉरेंसिक एंड हेल्थ जबलपुर के डॉक्टर ए. बी. श्रीवास्तव ने बाघों एव अन्य वन्य प्राणियों के शिकार होने पर सैंपल इकठ्ठा करने एव गलत तरीके से साक्ष्य इकठा करने से अभियोजन पर पड़ने वाले प्रभाव पर प्रकाश डाल कर बताया कि बताया कि मानव फॉरेंसिक साइंस और वन्यजीव फॉरेंसिक साइंस मैं बहुत अंतर रहता है. मानव फॉरेंसिक साइंस में सिर्फ एक ही जीव से सम्बंधित है, जबकि वन्यजीव फॉरेंसिक साइंस का संबंध अलग-अलग प्रकार के कई वन्यजीवों से रहता है. उन्होंने शिकार की स्थिति में सैंपल कलेक्शन करने की प्रक्रिया बताइ. उन्होंने बताया कि सैंपल कलेक्शन अगर अच्छे से नहीं हो तो दुनिया मैं कहीं भी भेज दे रिजल्ट नहीं आ सकता.

फॉरेंसिक साइंस एजुकेशन सोसायटी रायपुर की उपाध्यक्ष डॉक्टर सुनंदा ढेंगे ने बताया शिकार के स्पॉट पर साक्ष्य की कड़ी, कोर्ट में किस प्रकार अपराधी से जुडी रहती है.  उन्होंने बताया कि सबसे पहले शिकार के स्थल को सुरक्षित करना अनिवार्य होता है क्योंकि वन्यजीवों का शिकार खुले में होता है इसलिए मौसम इत्यादि बहुत महत्वपूर्ण रहते हैं. साक्ष्य में टैग लगाकर उसकी फोटोग्राफी की जानी चाहिए. प्रत्येक फुटप्रिंट, खून के निशानों, टायर के मार्क की फोटो मोबाइल से भी ली जा सकती है. वन्य जीव का पोस्टमार्टम डेलाइट में किया जाना चाहिए, कई बार अंधेरे में करने से रिजल्ट नहीं आ पाते हैं. जानवर की खाल, दांत, हड्डी इत्यादि को सुरक्षित तरीके से रखना चाहिए. शिकारी गांव में रहता है और ट्रेडर शहर में रहता है, इसलिए आज के जमाने में मोबाइल लोकेशन का सहारा लेकर शिकारी तक पहुंचा जा सकता है. शिकार स्थल पर अगर ज्यादा लोग इकट्ठे हो तो वहां पर शराब की बोतल, सिगरेट इत्यादि भी देखनी चाहिए. उन्होंने बताया कि सबसे महत्वपूर्ण इनफॉर्मल की भूमिका रहती है  स्थानीय हाट बाजारों मैं इस प्रकार की सूचना चर्चा का विषय रहती है, जिस लोकल इनफॉर्मर के माध्यम से पता लगाया जा सकता है. जांच रिपोर्ट का अध्ययन भी महत्वपूर्ण हिस्सा रहता है. पूरी चयन में शिकार किए गए जानवर उसका स्थान और सस्पेक्ट की चैन महत्वपूर्ण है.

प्रोफेसर डा. प्रिया राव ने बताया कि वन्य प्राणियों के शिकार में दर्ज प्रकरणों में अपराधियों को सजा इसलिए नहीं मिल पाती क्योंकि अधिकारियों मैं ट्रेनिंग की कमी है जबकि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम मैं सभी चीजों को प्रभावित किया गया है. 

रायपुर के वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने बताया कि जनहित याचिका से भी वन्य जीवों का संरक्षण किया जा सकता है.  वर्ष 2010 और 2011 के मध्य छत्तीसगढ़ में तीन बाघों का शिकार हुआ था. जिसके बाद उन्होंने सूचना का अधिकार के तहत जानकारी निकाल कर के जनहित याचिका दायर की. इसके पश्चात वन विभाग ने रैपिड रेस्क्यू टीम का गठन किया, निश्चेतना की बंदूकें और दवाइयां खरीदी. याचिका के दौरान कोर्ट को बताया कि वन विभाग में 240 बीट गार्ड की कमी है, जिसके पश्चात कोर्ट में बीट गार्ड भर्ती के आदेश दिए और वन विभाग में भर्ती की. अचानकमार टाइगर रिजर्व में प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के तहत बनाए जा रहे मकानों के निर्माण में रोक लगा दी गई. तथा भोरमदेव अभ्यारण होते हुए चिल्पी से रिंगाखार जाने वाले 150 करोड की लागत वाले रास्ते के निर्माण में रोक लगा दी गई.

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