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मजबूत विकल्प और विपक्ष की ओर देखता हिन्दुस्तान...

एनडीए के भीतर भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी रहते हुए भी शिवसेना एक घरेलू ऑडिटर की तरह काम करती थी, और भाजपा-मोदी के कई फैसलों पर लगातार सवाल भी उठाती थी। शिवसेना इस मायने में भी एक दिलचस्प पार्टी है कि उसके तौर-तरीके ढंके-छुपे नहीं रहते, और जो अपने बयानों के अलावा भी पार्टी के अखबार, सामना, के संपादकीय के रास्ते अपनी रीति-नीति की बात करती रहती हैं। हिन्दुस्तान के बड़े-बड़े अखबारनवीस इस बात पर मजाक भी करते हैं कि संपादकीय तो वे भी रोज लिखते हैं, लेकिन अपने अखबार से परे दूसरे अखबारों में संपादकीय सिर्फ सामना के ही छपते हैं। और दिलचस्प बात यह भी है कि सामना के संपादकीय दूसरे अखबारों में खबरें बनकर छपते हैं कि शिवसेना क्या सोच रही है। आज महाराष्ट्र में शिवसेना एक बिल्कुल ही अलग किरदार में है, और वह दो ऐसी पार्टियों की मदद से उनके साथ गठबंधन सरकार चला रही है जो कि धार्मिक भेदभाव नहीं करतीं। मतलब यह कि शिवसेना के निशान बाघ ने अपनी धारियां किनारे रखकर सत्ता को चलाना मंजूर किया है, अपने आपको उसके लिए तैयार किया है। 
आज सुबह की सामना की सोच यह है कि भारत में मोदी सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन विधेयक के रास्ते क्या धार्मिक युद्ध छेडऩे का काम नहीं किया जा रहा है, और हिन्दू-मुस्लिम के बीच अदृश्य विभाजन नहीं किया जा रहा है? लंबे समय से शिवसेना महज हिन्दूवादी पार्टी रही है, और मुस्लिमों के खुलकर खिलाफ भी रही है। लेकिन सत्ता पर आने के लिए, सत्ता को चलाने के लिए उसने अगर कुछ समझौते किए हैं, तो यह लोकतंत्र की कामयाबी ही है कि लोगों को वक्त-जरूरत एक-दूसरे के साथ चलने के लिए अपनी रीति-नीति बदलनी भी पड़ती है। आज शिवसेना मोदी के नागरिकता संशोधन विधेयक को वोट बैंक की राजनीति करार दे रही है, और देश हित के खिलाफ बता रही है। उसकी इस नई नीति को लेकर उसकी आलोचना भी की जा सकती है जो कि लोकतंत्र का एक अविभाज्य हिस्सा है, अपरिहार्य हिस्सा है, लेकिन यह भी समझने की जरूरत है कि हालात से अगर ख्यालात बदलते हैं, तो उसे लोकतांत्रिक ही मानना चाहिए उसे लेकर ताने कसना ठीक नहीं है, अगर यह फेरबदल देश के व्यापक हित में है। 
शिवसेना की आज भी पहचान एक हिन्दू पार्टी की ही है, और वह भाजपा से अलग, भाजपा के खिलाफ एक हिन्दू पार्टी है, लेकिन फिर भी उसने अपनी हिन्दू सोच को महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार बनने के बाद भी दुहराया है। महाराष्ट्र का यह प्रयोग लोकतांत्रिक गठबंधन का एक अटपटा सा लगता, लेकिन वहां की नौबत में अपरिहार्य हो गया गठबंधन है जिससे बाकी देश में भी जगह-जगह असहमत या परस्पर विरोधी पार्टियां एक सबक ले सकती हैं, उससे कुछ सीख सकती हैं। आज भारत में एनडीए-भाजपा की ताकत के मुकाबले बाकी पार्टियों और गठबंधनों की ताकत सीमित रह गई है। महाराष्ट्र से भाजपा गठबंधन सरकार जाने के बाद देश के नक्शे में एक बड़ा बदलाव जरूर आया है, और भाजपा देश की कम आबादी पर राज कर रही पार्टी या गठबंधन-भागीदार रह गई है। ऐसे में अलग-अलग कई प्रदेश हैं जहां क्षेत्रीय पार्टियां भाजपा की कई नीतियों से असहमत हैं, उनके खिलाफ हैं, और अपने इलाकों में केन्द्र सरकार की रीति-नीति के खिलाफ आंदोलन भी कर रही हैं। लेकिन इसके साथ-साथ ऐसी गैरएनडीए पार्टियां आपस में असहमत हैं, और आपस में काम करने को तैयार भी नहीं हैं। अभी जब अगले आम चुनाव को खासा वक्त है, और उसके पहले हर बरस कुछ राज्यों में विधानसभाओं के चुनाव भी होंगे, हमारी सलाह के बिना भी बहुत सी पार्टियां महाराष्ट्र के प्रयोग को बारीकी से देखेंगी, और उस प्रयोग में अपनी संभावना भी तलाशेंगी। शिवसेना आज अगर हिन्दू-मुस्लिम विभाजन के खिलाफ लिख और बोल रही है, तो बाकी पार्टियों के सामने भी एक संभावना बनती है कि वे प्रादेशिक तालमेल के लिए व्यक्तिगत परहेज को छोड़कर, अपनी तंगदिली और तंगनजरिए को छोड़कर सबसे ताकतवर एनडीए के खिलाफ गठबंधन की संभावनाएं तलाशें। और महाराष्ट्र ने यह साबित किया है कि ऐसी संभावना चुनाव के बाद भी तलाशी जा सकती हैं। आज नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर शिवसेना के उठाए गए सवालों से देश की बदली हुई हवा का एहसास हो रहा है, और इसीलिए लोकतंत्र के लचीलेपन के भीतर संभावनाओं की बात सूझ रही है। हम किसी पार्टी के गठबंधन में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं, बल्कि देश में एक मजबूत विपक्ष में हमारी दिलचस्पी है, देखें कौन-कौन सी पार्टियां, और कौन-कौन से नेता देश के मतदाताओं के सामने एक मजबूत विकल्प और विपक्ष पेश कर पाते हैं। TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें 
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