बलात्कार, और उसके बाद हत्या की खबरों से बुरी तरह गिरे हुए उत्तरप्रदेश की एक खबर है कि वहां अपनी नाबालिग बेटी से बलात्कार करने वाले पिता को एक फास्ट ट्रैक कोर्ट से पांच दिनों में उम्रकैद सुना दी गई। पुलिस ने इसे जांच और मुकदमे की कामयाबी माना है। दूसरी तरफ दिल्ली राज्य की महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल छह महीने में अदालत से बलात्कार-मामलों में फांसी की मांग करते हुए आमरण अनशन पर बैठीं, और तेरह दिन बाद उनकी खराब सेहत को देखते हुए उन्हें जबर्दस्ती अस्पताल में भर्ती किया गया। इन खबरों के बीच अभी सुप्रीम कोर्ट से यह खबर आ रही है कि सात बरस पहले के दिल्ली के सबसे चर्चित निर्भया बलात्कार कांड में मौत की सजा पाए एक आरोपी की सजा घटाने की अपील सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी।
अभी देश भर में बलात्कार की घटनाएं इतनी हो रही हैं, और उसके बाद शिकायत करने पर लड़की या महिला को जलाकर मार दिया जा रहा है, या गोलियां मार दी जा रही हैं, या शिकायत के पहले ही हत्या कर दी जा रही है, और पूरे देश में अलग-अलग पार्टियों के लोग उन्हें अधिक कड़ी सजा देने की मांग कर रही हैं। आमतौर पर समझदारी संतुलित बात करने वाले जया बच्चन ने भी संसद में कहा कि बलात्कारियों को भीड़ के हवाले कर दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश पर देश के उन तमाम जिलों में ऐसी विशेष अदालतें भी बनाई जा रही हैं जहां पर बच्चों के साथ बलात्कार या यौन शोषण के सौ से अधिक मामले दर्ज हैं। आज देश में माहौल बलात्कारी को बहुत तेजी से सजा दिलवाने, कड़ी से कड़ी सजा दिलवाने, फांसी दिलवाने या उसे बधिया बनाने का है। ऐसे माहौल के बीच जांच करने वाली पुलिस भी बहुत अधिक दबाव में है, और अपने जिम्मे के बाकी तमाम किस्म के मामलों को किनारे धरकर सिर्फ बलात्कार से संबंधित मामलों पर पूरी ताकत लगाने का काम भी किया जा रहा है। राजनीति के लोग कुछ समय पहले तक बलात्कार को लेकर जितने बेहूदे बयान देते थे, उस पर काबू हुआ है, और उत्तरप्रदेश के सबसे चर्चित बलात्कारी, भाजपा के विधायक कुलदीप सेंगर को बलात्कार के जुर्म में कुसूरवार ठहराया जा चुका है, और दो दिनों बाद उसे सजा सुनाई जाएगी।
लेकिन यह बात समझने की जरूरत है कि हिन्दुस्तान की पुलिस और यहां की न्यायपालिका के मौजूदा हाल के चलते अगर बलात्कार के मामलों में अंधाधुंध रफ्तार से काम करने का सिलसिला शुरू होगा, तो हो सकता है कि बहुत से बेकसूर भी उसमें सजा पा जाएं, और फिर उनकी अपीलों पर बड़ी अदालतों का बड़ा वक्त खर्च हो। भारत में पुलिस की जांच क्षमता और पुलिस के मौजूदा भ्रष्टाचार को अनदेखा करके सिर्फ कानून बनाकर कोई समय सीमा तय कर देना ठीक नहीं होगा। इसी तरह अदालती सुनवाई में भी ऐसा करना खतरनाक साबित हो सकता है। ये दोनों ही काम होने तो चाहिए, लेकिन इनके लिए एक ढांचा विकसित करना होगा जिससे कि जांच पुख्ता हो सके, मुकदमे की कार्रवाई बिना मक्कारी के तेज चल सके, और इंसाफ हो सके। वैसे भी आज बलात्कार के बाद हत्याओं का सिलसिला जितना बढ़ गया है, उसके पीछे भी बलात्कारियों की ऐसी सोच हो सकती है कि जब कड़ी सजा होनी ही है, तो फिर गवाह और सुबूत क्यों छोड़े जाएं। जब कोई चर्चित मामला खबरों में आता है, तो विचलित और मुखर भीड़ के नारे न तर्कसंगत हो सकते, न न्यायसंगत हो सकते, इसलिए संसद और विधानसभाओं को, पुलिस और अदालतों को इनके दबाव को बर्दाश्त करते हुए बेहतर रास्ते ही ढूंढने चाहिए जो कि टिकाऊ भी हों। देश के कानून और यहां की न्याय व्यवस्था में ऐसा नहीं हो सकता कि बलात्कार, या बच्चों से बलात्कार, या सामूहिक बलात्कार के मामलों को निचली अदालतों के बजाय सीधे सुप्रीम कोर्ट सुनने लगे, और आनन-फानन फैसला होकर फांसी हो जाए। लोकतंत्र लचीला, खर्चीला, और धीमा सिलसिला रहता है, और इसकी रफ्तार को एकदम से बढ़ाकर इसे पटरी से उतारने का खतरा ही लिया जा सकता है। पुलिस और अदालत के ढांचे को सुधारने के साथ-साथ देश में यह माहौल बनाने की जरूरत है कि जो राजनीतिक दल बलात्कारियों का स्वागत करते हैं, उन पर किसी किस्म की कानूनी रोक लग सके। पार्टियों पर भी लग सके, और बलात्कार जैसे आरोपों में गिरफ्तार लोगों पर भी लग सके। इसी सिलसिले में इस कानून को बनाने पर भी विचार करना चाहिए कि बलात्कारी की संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा उसकी गिरफ्तारी के साथ ही जब्त किया जाए, और उसके मामले के आखिरी फैसले के साथ उसे बलात्कार की शिकार महिला को दिया जाए, या राजसात करके निर्भया फंड जैसे किसी काम में लाया जाए। बलात्कारी को कैद या फांसी काफी मानना ठीक नहीं है, और अगर उसकी संपन्नता है, तो उसे भी जुर्माने के तौर पर तुरंत जब्त किया जाना चाहिए। देश की यह विकराल हो चुकी समस्या रातोंरात नहीं घट सकती, और इसके लिए ठंडे दिमाग से कई पहलुओं पर काम करना जरूरी है।