इस सिलसिले में छत्तीसगढ़ के एक आदिवासी मंत्री कवासी लखमा का खुद का सुनाया हुआ संस्मरण याद पड़ता है। पूरी तरह निरक्षर यह मंत्री कई बार का विधायक है, और अपने साफ दिल और साफगोई के लिए जाना भी जाता है। कवासी लखमा ने लोगों के बीच अपने उस दिन की कहानी बताई जब वे पहली बार विधायक बनकर अपने विधानसभा क्षेत्र लौटे, तो वे एक सरकारी जीप में थे जो कि कलेक्टर की तरफ से विधायकों को अपने क्षेत्र का दौरा करने के लिए दी जाती है। जब वे अपने गांव पहुंचे, तो उनके पिता ने उन्हें जीप से उतरते देखकर पीटना शुरू कर दिया। बाद में काफी मार खाने के बाद जब कवासी लखमा ने पिता से वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि विधायक बनने के बाद इतनी जल्दी इतनी रिश्वत खाने लगा कि जीप खरीद ली? उस मासूम आदिवासी बुजुर्ग का आदिवासी आत्मसम्मान बेटे के भ्रष्ट हो जाने की गलतफहमी से ही इतना घायल हो गया था कि जवान बेटा पिट गया। क्या आज पांच सितारा और सात सितारा मेहमाननवाजी से लौटे हुए विधायकों को जरा सी भी फिक्र सताती है कि वे अपने इलाके में क्या मुंह दिखाएंगे?
कर्नाटक में जब आयरन ओर माफिया के नाम से कुख्यात दो रेड्डी बंधु मंत्री रहते हुए सत्तारूढ़ भाजपा के विधायकों को लेकर हैदराबाद के सात सितारा होटलों में पड़े थे ताकि अपने मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को हटा सकें, तब कर्नाटक के इन विधायकों के इलाके बाढ़ के बाद कीचड़ में डूबे पड़े थे, और अपने वोटरों की तकलीफ में उनकी तरफ झांकने के बजाय ये लोग देश की सबसे महंगी खातिरदारी में मालिश करवा रहे थे। जितना महंगा राज्य होता है, जितना संपन्न होता है, उतनी ही महंगी खातिरदारी वहां के खरीदे जा चुके, या बिकने से रोके जा रहे विधायकों की की जाती है। यह सिलसिला बेशर्मी की तमाम हदों को पार कर गया है, और अपने विधायकों को दलबदल से बचाने के लिए, या दलबदल के लिए लाए गए विधायकों को रखने के लिए आम इंसानों जैसी किसी आम जगह का इस्तेमाल नहीं होता, विधायकों की ईमानदारी को बचाने के लिए, या उनको बेईमान बनाने के लिए हर बार हर कहीं इतना महंगा इंतजाम ही क्यों लगता है? क्या ईमानदारी सस्ते और किफायती इंतजाम में नहीं बच सकती? TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें
आज की राजनीति में भ्रष्टाचार के बोलबाले से वाकिफ लोगों को ये बातें निहायत फिजूल की लग सकती हैं कि जब हजारों करोड़ की कमाई की कोई सरकार बननी है, तो उसे बनाने या बचाने के लिए कुछ करोड़ खर्च करने में क्या दिक्कत है? लेकिन सवाल यह उठता है कि देश की आधी आबादी गरीबी की रेखा के नीचे है, कुपोषण की शिकार है, उसे इलाज नसीब नहीं है, पेट भर खाना और सिर छुपाना भी नसीब नहीं है, और ऐसे लोगों के वोट पाकर जो नेता विधायक बनते हैं, वे एकाएक इतनी बेशर्मी कैसे ले आते हैं? क्या उन्हें पल भर को भी यह नहीं लगता कि ऐसे अश्लील और हिंसक काले इंतजाम में रहने के बजाय एक किफायती इंतजाम में रहा जाए?
दैनिक 'छत्तीसगढ़' का संपादकीय, 25 नवंबर -