पांच साल पहले केंद्र में जब भाजपा की सरकार बनी तो लगा कि शायद भारत गठबंधन सरकार से मुक्ति की राह पर लौट रहा है। न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन के वादे के साथ इस सरकार ने काम करना शुरू किया। इन गुजरे पांच सालों में सरकार ने ऐसे ऐसे वादों और योजनाओं से जनता के सामने एक ऐसी तस्वीर पेश की जिससे अधिकांश अवाम भ्रमित सा हो गया। उसे समझ नहीं आया कि देश में हो क्या रहा है। बेटी बचाओ से लेकर, गरीबों, आदिवासियों तक के लिए रोज नयी नयी योजनाएं सामने आने लगीं। लगने लगा कि अब देश में सब कुछ ठीक हो रहा है। सरकार का विरोध करते समय भी कई बार यह लगा कि सरकार इतना अच्छा काम कर रही है फिर क्यों विरोध किया जाए। लेकिन झूठ की इस खूबसूरत लेकिन भ्रामक तस्वीर को जांचने परखने के लिए अवाम के पास कोई पुख्ता जरिया नहीं था। बस आम आदमी सरकार की तरफ उम्मीद और आश्वस्ति से देखने के लिए अभिशप्त था। हालांकि सरकार के अनेक झूठ भी इस समय तक खुलकर सामने आने लगे थे और लोगों को लगने लगा था कि देश के प्रधानमंत्री किस हद तक झूठ बोल रहे हैं, लेकिन उसके पास ऐसी कोई कलम नहीं थी जो इन झूठों को रेखांकित कर सके। केंद्र सरकार लगातार यह दिखा रही थी मानो अब देश में सब कुछ ठीक हो गया है या हो रहा है। कभी नमामि गंगे, कभी सांसद आदर्श ग्राम योजना तो कभी महिला सशक्तिकरण और नये नये हवाई अड्डों के निर्माण की घोषणा। प्रचार पर खर्च किये जा रहे करोड़ों रुपयों ने सरकार की ऐसी छवि बनाई जिससे लगता था कि इससे पहले की सरकारों ने कभी कोई काम ही नहीं किया। दिलचस्प बात यह भी थी कि प्रधानमंत्री खुद यह कहते कि इन योजनाओं का प्रचार जरूरी है। मन में इन योजनाओं के प्रति तमाम तरह के संदेह होने के बावजूद इन योजनाओं की असलियत जानने समझने का कोई तरीका अवाम को दिखाई नहीं दे रहा था। लेकिन तीन पत्रकारों, आरटीआई कार्यकर्ताओं ने सरकार की इन योजनाओं का सारा मुलम्मा उतार दिया। संजॉय बासु, नीरज कुमार और शशि शेखर आरटीआई(सूचना का अधिकार) के जरिये अनेक महत्वपूर्ण योजनाओं की प्रगति की जानकारी हासिल की और एक किताब लिखी-वादा फ़रामोशी। यह किताब राजनीतिक बहस को जन्म नहीं देती, न ही आपको किसी तरह की बहस में उलझाती है। यह सीधे सीधे तथ्यों के साथ सिर्फ यह बताती है कि मोदी सरकार की किस योजना का क्या परिणाम हुआ। प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी श्री नरेंद्र मोदी 2014 में बनारस पहुंचते हैं और कहते हैं कि उन्हें मां गंगा ने बुलाया है। गंगा उनकी आवाज सुन लेती है और वह देश के प्रधानमंत्री बन जाते हैं। इसके बाद नमामि गंगे योजना के नाम पर करोड़ों रुपए प्रचार पर खर्च किए जाते हैं। यह सरकार का फ्लैगशिप कार्यक्रम है। इसका बजट 20हजार करोड़ रुपए है। नमामि गंगे के तहत 113 रियल टाइम बायो मॉनिटरिंग स्टेशन देश के चार राज्यों- बिहार, उत्तर प्रद्रेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में लगाए जाने थे। लेकिन 6नवंबर 2018 को आरटीआई से मिली सूचना से पता चलता है कि गंगा नदी पर अब तक एक भी रियल टाइम बायो-मॉनिटरिंग स्टेशन नहीं लगाया गया। गंगा कितनी साफ हुई कितनी मैली इसका लेखा जोखा एनजीटी से लेकर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास है, लेकिन इस योजना के बहाने मोदी जी अपना चेहरा लगातार चमकाते रहे। प्रचार पर ही सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च किये। बेटी बचाओ योजना भी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना थी। इस योजना का भी भरपूर प्रचार किया गया और ऐसा लगा कि यह देश अब बेटियों के लिए सुरक्षित होने जा रहा है। योजना के अनुसार जिन जिलों में लिंगानुपात बहुत खराब था उनमें दस अंकों का सुधार लाना था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बल्कि मंत्रालय ने मीडिया और एडवोकेसी पर 2014-15 से 2017-18 तक 208.95करोड़ रुपए खर्च कर दिये, वहीं सरकार ने राज्यों को इस योजना के लिए अब तक केवल 39.49करोड़ रुपए ही दिए हैं।
वादा फ़रामोशी प्रधानमंत्री मोदी के झूठ का भी पर्दाफाश करती है। बहुत पुरानी बात नहीं हुई। 24सितंबर 2018 को पाक्योंग में हवाई अड्डे का उद्घाटन करते हुए मोदी जी ने घोषणा की थी कि सिक्किम हवाई अड्डे के साथ देश में अब 100 हवाई अड्डों का परिचालन हो रहा है। लेकिन तीनों पत्रकारों द्वारा प्राप्त सूचनाएं बताती हैं कि देश में लाइसेंस प्राप्त हवाई अड्डों की कुल संख्या केवल 80 है, 100 नहीं। इसके अलवा अप्रैल 2014 के दौरान, मोदी सरकार में आने से पहले 68लाइसेंस प्राप्त हवाई अड्डे थे ना कि 65, जैसा की मोदी जी ने दावा किया था। सूचनाओं से यह भी पता चला कि साढ़े चार साल के दौरान केवल 4निजी हवाई अड्डे-दुर्गापुर, शिरडी, मुंद्रा और कन्नूर में हैं और डीजीसीए(डायरेक्टर जनरल सिविल एविएशन) लाइसेंस प्राप्त हवाई अड्डों की सूची में शामिल हैं। यानी मोदी सरकार की पहल पर केवल 8नए हवाई अड्डे इस दौरान बने।
वादा फ़रामोशी पढ़कर आप झूठ सच का फर्क आसानी से देख सकते हैं। पुस्तक में निर्भया कांड, महिला सशक्तिकरण केंद्र, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, भारतीय रेल, पीएम ग्राम परिवहन योजना, सांसद आदर्श ग्राम योजना, बेरोजगारी और मेक इन इंडिया के दौर में गांधी के नाम पर क्या हुआ इन सबकी असली तस्वीर है। इस किताब की सबसे अच्छी बात यह है कि भक्त भी इसे पढ़ने के बाद बहस नहीं कर सकते, तथ्यों पर आधारित यह आज के समय की एक जरूरी किताब है। हो सकता है इस किताब की सार्थकता लंबे समय तक न रहे लेकिन यह किताब सरकारों के कामकाज को एक्सपोज करने का रास्ता तो दिखाती ही है। साथ ही यह भी बताती है कि झूठ और आडंबरों के सहारे चलने वाली सरकारों से किस भाषा में बात की जानी चाहिए। यदि आप इस किताब को पढ़ते हैं तो यकीन जानिए पांच साल से आप जिसके प्रशस्तिगाण में डूबे हैं वह मुलम्मा एकदम उतर जाएगा और आप विवेक का इस्तेमाल करते हैं तो शायद ही उस पार्टी का मत देंगे जिसकी सरकार पांच साल से केंद्र में है। [साभार - सुधांशु गुप्त जी के फेसबुक वाल से]