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मीडिया की साख पार्टियों से भी कम हो गई है ?

हाल के बरसों में बिहार के सबसे बड़े नेता रहे लालू यादव जो कि आज जेल में हैं, और वहां बैठे अपनी पार्टी की लोकसभा उम्मीदवारी तय कर रहे हैं, उनके बेटे तेजस्वी यादव ने विपक्षी पार्टियों से अपील की है कि वे एकमुश्त होकर उन समाचार चैनलों का बहिष्कार करें जो कि भाजपा के एजेंडे पर काम कर रहे हैं, और बाकी पार्टियों को नीचा दिखा रहे हैं। यह बात कुछ हद तक सही भी है कि हाल के बरसों में भारत के अधिकतर समाचार चैनलों का रूख मोदी समर्थक हो गया है, और उनकी बहसों का स्तर जमीन पर गिरकर मिट्टी में मिल गया है। लोग ऐसे मीडिया को सोशल मीडिया पर गोदी-मीडिया लिखने लग गए हैं। 
हिंदुस्तान से परे कई ऐसे लोकतांत्रिक देश हैं जहां पर चुनावों के दौरान मीडिया खुलकर अपनी पसंद उजागर करता है, और कोई अखबार किसी पार्टी के साथ रहता है, कोई दूसरा अखबार किसी दूसरी पार्टी के साथ रहता है। उनकी स्वघोषित पसंद के आधार पर उनके पाठक यह अंदाज लगा पाते हैं कि उस अखबार के लिखे हुए को वे उसके पूर्वाग्रह या उसकी सोच के मुताबिक समझकर ही उसे वजन दें, उस पर भरोसा करें। हिंदुस्तान में दिक्कत यह है कि कोई अखबार, कोई समाचार चैनल यह मंजूर करने को तैयार नहीं होते कि वे किसी राजनीतिक दल के साथ हैं, या किसी नेता के साथ हैं। वे निष्पक्ष और तटस्थ होने का दावा करते रहते हैं, और अपने चुनावी सर्वे, ओपिनियन पोल को लेकर अपनी पसंद को बढ़ावा देते रहते हैं। 
कांगे्रस पार्टी ने ऐसे कम से कम एक समाचार चैनल का बहिष्कार औपचारिक रूप से किया हुआ है जो कि लगातार कांगे्रस के खिलाफ अभियान चलाता है, और जो लगातार मोदी के लिए अंधभक्ति के तहत काम करता है। इस समाचार चैनल ने अभी कुछ हफ्ते पहले ही कांगे्रस के नाम एक खुली चिठ्ठी लिखी थी कि वह चैनल का बहिष्कार खत्म करे और उस पर अपने प्रवक्ताओं को आने की इजाजत दे। किसी समाचारपत्र या चैनल का बहिष्कार भी एक लोकतांत्रिक तरीका हो सकता है जिस तरह मतदान की मशीन में एक पसंद लोगों के सामने रहती है, इनमें से कोई नहीं, नोटा। इसी तरह पार्टियां या नेता भी किसी अखबार या किसी चैनल से बात न करना तय कर सकते हैं, और वे महज प्रेस कांफे्रंस तक उन्हें सीमित रख सकते हैं। जब सारे मीडिया से बात करनी हो, तो उनसे बात करें, और जब अकेले में किसी से बात करनी हो तो वे चाहें तो उस पेपर या चैनल से बात करें, या मना कर दें। इसी बात को अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप नफरत की हद तक ले गए हैं, और वे मीडिया पर खुला हमला भी करते हैं। ऐसे हमले के बिना अगर लोगों को लगता है कि वे किसी मीडिया से बात करना नहीं चाहते तो यह उनका विशेषाधिकार है। तेजस्वी यादव की यह अपील यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या आज मीडिया के एक बड़े तबके की साख राजनीतिक दलों से भी कम हो गई है? 
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