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पत्रकारिता विश्वविद्यालय को प्रतिबद्धता विश्वविद्यालय बनाने के नुकसान बहुत रहे..

छत्तीसगढ़ में कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय में राजनीतिक बवाल के बाद कुलपति के इस्तीफे की खबर है जो कि पिछली भाजपा सरकार द्वारा राजभवन के मार्फत मनोनीत थे। यह विश्वविद्यालय भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे कुशाभाऊ ठाकरे के नाम पर पिछली भाजपा सरकार ने ही अपने पहले कार्यकाल में शुरू किया था, और तब से लेकर अब तक यह लगातार भाजपा की विचारधारा से सहमति रखने वाली विचारधारा के प्रशिक्षण का केन्द्र बने रहा, और करीब 15 बरस की अपनी जिंदगी में यह पांच सौ छात्र-छात्राओं तक ही पहुंच पाया। राज्य सरकार ने इसे 58 एकड़ जमीन दी, और हर बरस करोड़ों रूपए का अनुदान मिलता है, लेकिन समाज में इसका शैक्षणिक योगदान हिन्दुत्ववादी-राष्ट्रवादी विचारधारा के विस्तार से परे बहुत ही कम रहा है। लगातार इस विश्वविद्यालय ने हिन्दुत्ववादी सोच रखने वाले पत्रकारों या दूसरे विचारकों को बुलाया और उनकी सोच का प्रशिक्षण करवाया, पत्रकारिता की पढ़ाई धरी रही। नतीजा यह हुआ कि आज के एक चर्चित पेशे की इस पढ़ाई में भी छात्र नहीं जुटे, और किसी आम विश्वविद्यालय के एक विभाग में जितनी संख्या हो सकती है, उतने छात्र-छात्रा भी यहां नहीं आ पाए। इससे बेहतर तो इस प्रदेश के पहले विश्वविद्यालय के तहत चलने वाले कॉलेजों में पढ़ाई हो जाती थी, बिना इस विश्वविद्यालय का ढांचा खड़ा किए हुए।
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ में एक नमूना है कि इस तरह एक वैचारिक प्रतिबद्धता किसी पेशे की पढ़ाई को तबाह कर सकती है। चूंकि यह भाजपा सरकार का बनाया हुआ था, उसमें शुरू से लेकर अब तक भाजपा-समर्थक कुलपति ही रहते आए, भाजपा सरकार के तहत ही इसमें नियुक्तियां हुईं, और भाजपा सरकार के साथ मिलकर ही इस विश्वविद्यालय ने हर बरस ऐसे दर्जनों आयोजन किए जिनमें देश भर से राष्ट्रवादी-हिन्दुत्ववादी विचारधारा का ठप्पा लगे हुए लोगों को बुलाया गया। किसी विश्वविद्यालय को बर्बाद करने का इससे बेहतर और कोई तरीका नहीं हो सकता था। लेकिन इससे छात्र-छात्राओं की डेढ़ दशक की पूरी पीढ़ी तबाह हुई जो यहां बड़ी उम्मीदों के साथ आती थी, और विचारधारा लेकर चली जाती थी। इन 15 बरसों में एक भी पेशेवर पत्रकार को यहां कुलपति नहीं बनाया गया, बल्कि ऐसे कुलपति रहे जिन्होंने कभी पत्रकारिता पढ़ाई भी नहीं थी। 
राज्य सरकार या राजभवन, जिसे भी अधिकार हो, ऐसे कुलपति का इस्तीफा तुरंत मंजूर भी करना चाहिए, और एक धर्मनिरपेक्ष, पेशेवर माहिर पत्रकार को कुलपति बनाना चाहिए। इसके लिए देश में काबिल लोगों की कोई कमी नहीं है, और सरकार-राज्यपाल को छत्तीसगढ़ से परे भी इस बारे में देखना चाहिए। आज ही खबर है कि देश के एक प्रमुख संपादक रहे ओम थानवी को राजस्थान के पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कुलपति नियुक्त किया गया है। पत्रकारिता में उनका लंबा और महत्वपूर्ण काम अच्छी तरह दर्ज है, और वे आज भी सोशल मीडिया पर देश के उन तमाम मुद्दों पर लगातार लिखते और बोलते हैं जिनके बिना किसी पत्रकारिता विश्वविद्यालय की कोई पढ़ाई नहीं हो सकती। ऐसे जिंदा माहौल से आए हुए, उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण पत्रकारिता किए हुए व्यक्ति को छत्तीसगढ़ में इस विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया जाना चाहिए जिससे न सिर्फ इस राज्य के नौजवानों को इस पेशे में आने की काबिलीयत मिल सके, बल्कि यह केन्द्र देश के बाकी राज्यों के बीच भी लोकप्रिय हो सके, अपना योगदान दे सके। आज करोड़ों रूपए साल के खर्च के बाद पांच सौ से कम छात्र-छात्राओं को एक बदहाल पढ़ाई देना शर्मनाक नौबत है। न सिर्फ हिन्दुत्ववादी, बल्कि कोई भी विचारधारा ऐसी महत्वपूर्ण नहीं हो सकती कि वह किसी पेशे की पढ़ाई को बेदखल करके अपने आपको पढऩे लायक अकेला सामान बना सके। देश में जेएनयू शिक्षा का एक बड़ा केन्द्र है, और वहां पर वामपंथी विचारधारा नीचे से ऊपर तक लोकप्रिय है, और हावी है। लेकिन उस विचारधारा के चलते हुए भी पढ़ाई की उत्कृष्टता को पीछे की सीट पर नहीं बैठना पड़ता, और जेएनयू को अपने विषयों की पढ़ाई में देश का सबसे अच्छा केन्द्र होने का गौरव भी हासिल है। किसी उच्च शिक्षा केन्द्र को राजनीतिक जागरूकता से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि छात्र-छात्राएं मतदाता हो चुके रहते हैं। लेकिन उनकी राजनीतिक सक्रियता, विचारधारा उस शिक्षा केन्द्र की पढ़ाई को कुचलकर काबिज नहीं हो जानी चाहिए, जैसा कि पिछले 15 बरस में कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के साथ हुआ है। 
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