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आत्मा किस रेट पर बेचने के लिए एक पैर पर खड़े हैं

देश में स्टिंग ऑपरेशनों के जरिए भांडाफोड़ पत्रकारिता के लिए विख्यात कोबरापोस्ट  ने बॉलीवुड के अभिनेताओं, गायकों, और हास्य कलाकारों के स्टिंग किए हैं जिनमें वे मोटे भुगतान के एवज में अपने सोशल मीडिया पेज से किसी भी राजनीतिक दल या नेता के समर्थन की पोस्ट करने के लिए एक बेताबी के साथ तैयार हो जाते हैं। कोबरापोस्ट की साख अब तक इस मामले में अच्छी है, और भुगतान लेकर साम्प्रदायिकता भड़काने, मुस्लिमों के खिलाफ जहर फैलाने के एक फर्जी प्रस्ताव पर कोबरापोस्ट ने देश के बड़े-बड़े मीडिया घरानों को भी कैमरों में कैद किया था, उस बात को कुछ ही महीने हुए हैं। स्टिंग ऑपरेशनों की इस बात को आज के छत्तीसगढ़ से जोड़कर देखा जाए तो यह समझ आता है कि इसकी चोट कितनी गंभीर हो सकती है, और पत्रकारिता का यह तरीका कितना जायज है, या कितना नाजायज है। 
छत्तीसगढ़ में अभी हुए विधानसभा चुनावों के ठीक पहले कुछ ऐसे स्टिंग ऑपरेशन सामने आए थे जिनमें सरकारी अफसर और नेता पत्रकारों और नेताओं के स्टिंग ऑपरेशन के लिए मोटा भुगतान करते दिख रहे थे, या उनकी बातें रिकॉर्ड थीं। छत्तीसगढ़ की नई सरकार ने जिन पुराने मामलों की जांच शुरू की है, उनमें अभी इस मामले की बारी नहीं आई है, लेकिन वह स्टिंग ऑपरेशन करने वाले पत्रकार का यह कहना है कि उन्होंने सरकार की नीयत का भांडाफोड़ करने के लिए पत्रकारों की सेक्स-सीडी बनाने का एक फर्जी प्रस्ताव सामने रखा था, और सरकार ने उसे लपक लिया था। यह तर्क इन दिनों खबरों में बने हुए एक दूसरे टेपकांड में भी दिया गया है जिसमें अंतागढ़ के कांग्रेस उम्मीदवार की खरीदी-बिक्री की टेलीफोन कॉल रिकॉर्डिंग करने वाले स्टिंग ऑपरेटर का कहना है कि वह लोकतंत्र में उम्मीदवार खरीदने का अपराध करने वाले लोगों का भांडाफोड़ करना चाहता था, इसलिए उसने फोन की ये तमाम बातें रिकॉर्ड की थीं। 
पत्रकारिता के पुराने तौर-तरीकों का इस्तेमाल करने वाले लोगों को यह लगता है कि खुफिया कैमरे और माइक्रोफोन से रिकॉर्ड करना, या टेलीफोन कॉल को रिकॉर्ड करना एक नाजायज बात है, और ऐसा नहीं करना चाहिए। लेकिन नए तौर-तरीके वाले लोगों का यह मानना है कि दुष्ट से निपटना हो, तो दुष्टता के कुछ औजारों का इस्तेमाल नाजायज नहीं रह जाता और अगर वैसा न किया जाए तो दुष्टों का कभी भांडाफोड़ ही न हो। यह बात कुछ हद तक सही इसलिए है कि इस देश में जब तक लोग कैमरे या माइक्रोफोन पर, टेलीफोन या वीडियो कैमरों पर सुबूत के दर्जे की रिकॉर्डिंग में नहीं फंस जाते, वे हर आरोप को झूठा बताते रहते हैं, और उनके चेहरों पर शिकन भी नहीं आती। इसलिए ऐसी तकनीक का इस्तेमाल तो जायज है। लेकिन इसके बावजूद एक बात यह रह जाती है कि क्या झूठा लालच देकर लोगों की टपकती लार को कैमरों पर दर्ज करना क्या किसी अपराध को दर्ज करने जैसा हो सकता है? इससे उनकी अनैतिक नीयत तो दर्ज हो जाती है, लेकिन कोई अपराध दर्ज नहीं होता। दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में जिस तरह अंतागढ़ टेप की रिकॉर्डिंग हुई है, उम्मीदवार खरीद-बिक्री की वह रिकॉर्डिंग किसी लालच में नहीं हुई है, वह एक असल सौदे की रिकॉर्डिंग है, जिसे करने के लिए कोई झांसा नहीं दिया गया, और वह असल सौदा उम्मीदवार की खरीद-बिक्री का असल सौदा था, किसी स्टिंग ऑपरेटर का दिया गया लालच नहीं। इसलिए आज के हालात देखते हुए ऐसा लगता है कि अगर किसी जुर्म को साबित करने के लिए, या किसी अनैतिक नीयत को साबित करने के लिए देश का कोई कानून तोड़े बिना स्टिंग ऑपरेशन किया जाता है, फोन रिकॉर्ड किया जाता है, तो वह मंजूर करने लायक अनैतिक काम है जो कि अखबारनवीसी के पुराने पैमानों पर तो खरा नहीं उतरता, लेकिन आज के पैमानों पर खरा उतरता है। लेकिन यह बात किसी को नहीं भूलनी चाहिए कि तकनीक एक दुधारी तलवार होती है, और कई ऐसे मौके सामने आए हैं जिनमें स्टिंग ऑपरेटर खुद भी स्टिंग का शिकार हो गए हैं। फिलहाल कोबरापोस्ट के ताजा स्टिंग को देखकर लोग मजे लें कि उनके लोकप्रिय फिल्मी सितारे अपनी आत्मा किस रेट पर बेचने के लिए एक पैर पर खड़े हैं। 
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