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छत्तीसगढ़ के वनों में हुये उन 4,55,000 अवैध कब्जों को भी बेदखल करें, जिनके दावे आवेदनों को निरस्त कर दिया गया है - सिंघवी

 [TODAY छत्तीसगढ़] / सुप्रीम कोर्ट ने एक एन.जी.ओ. “फारेस्ट फस्ट” एवं अन्य द्वारा दायर याचिका WP(C) 109/2008 में 13 फरवरी 2019 को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए आदेशित किया है कि वनों में हुये उन कब्जों को बेदखल किया जाना है जिनके दावा आवेदनों को वन अधिकार अधिनियम के तहत निरस्त कर हटाने का आदेश दिया गया है। इससे पहले छत्तीसगढ़ शासन ने शपथ पत्र देकर न्यायालय को बताया था कि अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत वन निवासियों के कुल 20,095 दावों को निरस्त किया गया है, जिनके कब्जे हटाया जाना है, जिनमें से 4830 कब्जों के विरूद्ध कार्यवाही की गई है। न्यायालय ने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को अगली सुनवाई 24 जुलाई 2019 तक नया शपथ पत्र पेश करने के लिये कहा है कि बताया जावे कि बेदखली पूरी हो गई है कि नहीं।
रायपुर निवासी नितिन सिंघवी ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को वनों की रक्षा करने वाला निर्णय बताते हुये आदेश का स्वागत किया है, लेकिन इसके साथ उन्होनें यह भी आरोप लगाया है कि छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र देकर कहा गया है कि मात्र 20,095 वन भूमि के दावा आवेदनों को निरस्त किया गया है जिन्हे हटाया जाना है, जबकि आयुक्त आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति विकास विभाग द्वारा प्रदाय किये गये आंकडों के अनुसार मार्च 2018 तक ही 4,55,131 दावा आवेदनों को निरस्त किया गया था। 
सिंघवी ने बताया कि वन अधिकार अधिनियम के तहत आदिवासियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों को 10 एकड़ तक, एैसी वन भूमि में पट्टे दिये जा सकते है जिन पर अदिवासियों का कब्जा 13 दिसम्बर 2005 के पहले का होना प्रमाणित होता हो या अन्य परंपरागत वन निवासियों के मामले में उनका 3 पीढ़ियों से वर्ष 1930 से वनों में रहना और वनों पर आश्रित रहना प्रमाणित होता हो। विभाग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार 13 दिसम्बर 2005 की स्थिति में कब्जा प्रमाणित नहीं होने के कारण, कब्जे के दो साक्ष्य उपलब्ध न कराने के कारण, तीन पीढ़ियों से निवास की जानकारी न होने के कारण 4,55,131 दावा आवेदनों को निरस्त किया गया है। उन्होंने प्रश्न किया कि जब कब्जे का पट्टा नहीं दिया गया तो कब्जे क्यों नहीं हटाए जा रहे ?
2012 में जब पट्टे बंटना शुरू हुए तब ही अवैध कब्जों का खेल चालू हो गया था जब अधिकारियों और राजनीतिज्ञों के संरक्षण तले अपात्रों ने वन भूमि पर कब्जा कर, पट्टे के लिये आवेदन करना चालू कर दिया। सिंघवी ने मांग की है कि जब वन भूमि पर कब्जा था तभी पट्टे की मांग की गई पर उन अवैध कब्जाधारियों के दावा आवेदनों को निरस्त कर दिया गया। वन भूमि पर हुऐ ऐसे 4,55,131 कब्जों को हटाने के लिये तत्काल आदेश निकाले जाने चाहिये, जिनके दावा आवेदनों को निरस्त कर दिया गया है, इस संबंध में मुख्य सचिव को पत्र भी लिखा गया है। सिंघवी ने मांग की बांटे गये सभी वैध पटटों का भी सत्यापन गूगल प्रो मैप से करवाना चाहिये जिससे पता चले कि 2005 में कब्जा था कि नहीं।
सिंघवी ने कहा कि वनों की रक्षा हमें राजनीति से परे रखकर करनी पडेंगी। अवैध बंटे वन अधिकार पट्टे से छत्तीसगढ़ के वन खंडित हो गये है, जिसके कारण मानव-हाथी द्वन्द बढ़ रहा है तथा द्वन्द के कारण दोनों की मौतों की दर बढ़ रही है, गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में मार्च 2018 तक लगभग चार लाख लोगों को 338520 हेक्टर हर्थात् 3385 वर्ग कि.मी. वन क्षेत्रों के पट्टे आबंटित किये जा चुके है।

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