हिंदुस्तान में आज जिन लोगों के मुंह में जुबान है, उन्हें मोटे तौर पर दो तबकों में बांटा जा रहा है, एक तो वे जो देशभक्त हैं, और एक वे जो देश के गद्दार कहे जा रहे हैं। ऐसे बंटवारे के बीच देश में समझदारी कायम रहना और उसका अमल में आना खासा मुश्किल सा है। आज जब देश के सबसे बड़े हथियार सौदे को लेकर मोदी सरकार से कुछ सवाल किए जा रहे हैं, तो सरकार की ओर से उसके कानून मंत्री ने आज सुबह राहुल गांधी को प्रतिद्वंद्वी हथियार-कंपनी के हितों के लिए काम करता हुआ बता दिया है। खुद प्रधानमंत्री ने दो-चार दिन पहले यह कहा कि राहुल गांधी वायुसेना को कमजोर करना चाहते हैं। उनकी इस बात पर सोशल मीडिया पर लोगों ने उन्हें तुरंत घेर लिया कि जब भारतीय जनता पार्टी बोफोर्स तोप खरीदी में भ्रष्टाचार की बात उठा रही थी तो क्या वह देश की थलसेना को कमजोर करने का काम कर रही थी?
अभी देश के इतिहास के सबसे बड़े, और सबसे विवादास्पद भी दिख रहे, रफाल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर भ्रष्टाचार की तोहमतें हवा में तैर रही हैं, तो इसके बीच ही अभी से कुछ घंटे पहले उमेश चंदर नाम के एक बुजुर्ग ने ट्वीट किया है-मेरा बेटा मेजर निशीत डोगरा थलसेना में काम करते हुए आज सुबह चीन की सरहद पर गुजर गया। सिक्किम के जोंगरी में जहां वह तैनात था, वहां एक हफ्ते से बिजली नहीं थी, कोई जनरेटर काम नहीं कर रहा था, मेहरबानी करके वहां के हालात सुधारें।
जिस बुजुर्ग पिता ने जवान फौजी बेटा खोया है, वह कुछ घंटों के भीतर सरहद के हालात पर ट्वीट कर रहा है और सरकार को, फौज को, खामियां बता रहा है, ताकि और जवानों को ऐसी शहादत न झेलनी पड़े। अब हिंदुस्तान के जो लोग नोटबंदी के दौरान एटीएम की कतार में खड़े लोगों की मौत को सरहद पर जवानों की मौत से जोड़कर नोटबंदी को झेल रहे थे, वे सरहद पर जनरेटर की ऐसी कमी, बिजली न होने का मुजरिम किसे ठहराएंगे? क्या आज ही शहीद हुए मेजर के पिता को कहा जाएगा कि उसकी ट्वीट फौज के हौसले को तोडऩे की साजिश है, और वह चीन के हाथ मजबूत करने वाली है? सच तो यह है कि सच का सामना करने के बजाय उसे कहने वाले मुंह के टेढ़े होने का जवाब बहस को किसी किनारे नहीं पहुंचाता। अगर देश का एक भरोसेमंद अखबार लगातार सरकारी फाईलों के हवाले से यह साबित कर रहा है कि रफाल खरीदी में सब कुछ मासूमियत से नहीं हुआ है, पीएमओ ने दखल दी है, इस दखल की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को सुनवाई के दौरान नहीं दी है, इसमें अंबानी का दाखिला जायज या मासूम नहीं था, तो इसका जवाब मोदी सरकार को या सत्तारूढ़ पार्टी को तर्कों और तथ्यों से देना चाहिए बजाय इसके कि राहुल गांधी को किसी दूसरी कंपनी का एजेंट साबित करने की इशारे-इशारे की कोशिश करने के। बजाय इसके कि राहुल गांधी को वायुसेना को कमजोर करने का मुजरिम साबित किया जाए। देश का पूरे 365 दिन, चौबीसों घंटे, पांचों बरस चुनावी मोड में रहना ठीक नहीं है। विपक्ष का तो काम ही है सवाल उठाना, और लोकतंत्र में अगर वह ऐसा नहीं करता है, तो वह अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं करता है। सवालों के जवाब में तोहमतें ही तोहमतें लगाते चलने से कोई जवाब दर्ज नहीं होता। अगर राहुल गांधी वायुसेना को कमजोर कर रहे हैं, तो उनके खिलाफ मोदी सरकार देशद्रोह का मुकदमा क्यों नहीं चला रही है? अगर राहुल गांधी किसी दूसरी कंपनी के हितों के लिए काम कर रहे हैं, तो मोदी सरकार अपनी पसंद की कंपनी से जायज रेट पर खरीददारी क्यों नहीं कर रही है? यह पूरा सिलसिला बहुत खराब है। देश के शब्दकोश के दो शब्दों, देशभक्त, और देशद्रोही के नए पैमाने बनाने की जरूरत है।