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आतंकी हमला जितनी लाशें छोड़ गया, उतने ही सवाल भी

कश्मीर में कल सुरक्षा बलों पर देश के इतिहास का सबसे बड़ा हमला हुआ, और सीआरपीएफ के करीब 40 जवान शहीद हुए हैं। जाहिर तौर पर यह हमला कश्मीर के ही एक स्थानीय नौजवान ने पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के कहे और उसकी ट्रेनिंग की मदद से किया है। इस संगठन ने हमले की जिम्मेदारी ली है, और आत्मघाती हमलावर हिन्दुस्तानी-कश्मीरी नौजवान का हमले के पहले रिकॉर्ड किया गया एक वीडियो भी जारी किया है। यह हमला कई मायनों में सबसे खतरनाक, और सबसे अलग किस्म का है। इसमें विस्फोटक से लदी हुई एक गाड़ी को चलाते हुए सीआरपीएफ गाडिय़ों के काफिले में घुसा दिया गया, और विस्फोट कर दिया गया। भारत के आतंकी हमलों में आत्मघाती हमला आम बात नहीं है, यह राजीव गांधी की हत्या में इस्तेमाल जरूर हुआ था, लेकिन इस पैमाने पर, सुरक्षा बलों के खिलाफ, विस्फोटक से लदी गाड़ी चलाकर यह बिल्कुल पहला ही ऐसा हमला था। जैसी कि उम्मीद की जा सकती है, हिन्दुस्तान के राजनेता और राजनीतिक दल अपने को काबू में रखकर चल रहे हैं, दूसरी तरफ हिन्दुस्तान के टीवी चैनलों में से कई पूरी ताकत लगा रहे हैं कि इस हमले की प्रतिक्रिया में पाकिस्तान पर हमला कर ही दिया जाए। लेकिन सोशल मीडिया पर कुछ अमन-पसंद और समझदार लोग जंग के खिलाफ भी बोल रहे हैं, और भारतीय प्रतिक्रिया को ठंडे दिल-दिमाग से तय करने की बात कह रहे हैं।
यह हमला पाकिस्तान की जमीन पर काम करने वाले आतंकी संगठनों की ओर से पिछले बरसों में किए गए बहुत से ऐसे और हमलों से महज एक मायने में अलग है कि यह बहुत अधिक विकराल था, और मौतों का ऐसा मंजर किसी ने देखा नहीं था। लेकिन बाकी तमाम बातें तो पिछले बरसों में लगातार चली आ रही हैं, और ऐसे कुछ हमलों के बाद भारत ने पाकिस्तान पर एक सर्जिकल स्ट्राईक करके कुछ आतंकी ठिकानों को खत्म करने की बात भी कही थी। हालांकि मोदी सरकार के सर्जिकल स्ट्राईक के दावे के बाद कुछ जानकार लोगों ने विनम्रता से यह याद दिलाया था कि यह सर्जिकल स्ट्राईक का कोई पहला मौका नहीं था, और मनमोहन सरकार के समय भी भारत की फौज बिना किसी ढिंढोरे के ऐसे हमले कर चुकी है। भारत आज तकलीफ से गुजर रहा है, और अपने इतने जवानों को इस तरह के हमले में खोने के बाद देश के बहुत से लोगों का खून खौल रहा है कि पाकिस्तान को सबक सिखाना चाहिए, और इसके पीछे जो आतंकी मसूद अजहर है, उसे हिन्दुस्तान लाकर उस पर मुकदमा चलना चाहिए। 
कुछ बातों को याद रखने की जरूरत होती है। यह वही मसूद अजहर है जो पाकिस्तान की जमीन से रात-दिन हिन्दुस्तान के खिलाफ हमले के फतवे देता है, और भारत के कब्जे वाले कश्मीर को आजाद करने की बात कहता है। यह वही मसूद अजहर है जिसे हिन्दुस्तानी-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन के दौरान गिरफ्तार किया गया था, और उसके बाद भारत के एक मुसाफिर विमान का अपहरण करके विदेश ले जाने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार ने फिरौती में मसूद अजहर और कुछ दूसरे आतंकियों को छोड़ा था, अटल सरकार का एक मंत्री ने विशेष विमान से उन्हें ले जाकर अफगानिस्तान के कंधार में आतंकियों के हवाले किया था, और हिन्दुस्तानी मुसाफिर छुड़ाकर लाए गए थे। आज भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल उस समय तालिबान आतंकियों से समझौता करने वाली टीम के मुखिया थे। आगे चलकर यही मसूद अजहर भारत के खिलाफ सबसे बड़ा आतंकी बना, और कई सुरक्षा विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि भारत को आतंकियों से समझौता नहीं करना था। लेकिन डेढ़ सौ मुसाफिरों वाले इस विमान को तालिबानियों के कब्जे में छोडऩे का फैसला भी नहीं लिया जा सकता था। अटल सरकार ने उस वक्त अपनी समझ से जो किया था उसे देश ने गलत भी नहीं माना, और आज इसी एक आतंकी की अगुवाई में भारत पर तमाम हमले हो रहे हैं। 
जैसी कि उम्मीद की जा सकती थी, भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस हमले के पीछे की ताकतों को, और पड़ोसी देश को इसके लिए बड़ी कीमत चुकाने की चेतावनी दी है, लेकिन ऐसी चेतावनी ऐसे हर हमले के बाद दी ही जाती रही है। आज जब प्रधानमंत्री ने सुबह-सुबह मीडिया के सामने सुरक्षा बलों को यह छूट दी है कि वे इसका जैसा जवाब मुनासिब समझें, वैसा दें, तो सवाल यह भी उठता है कि क्या किसी देश पर फौजी कार्रवाई का फैसला सुरक्षा बल लेंगे? दूसरी बात अब इसलिए उठती है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह से पाकिस्तान को न्यौता देना शुरू किया था, और बाद में वहां के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के परिवार के कार्यक्रम में वे बिना बुलाए, बिना तय कार्यक्रम के सीधे पाकिस्तान चले गए थे, और दोनों परिवारों के बीच माताओं के लिए तोहफों का आना-जाना शुरू हो गया था। भारत में जो लोग पाकिस्तान के साथ रिश्तों को निभाने के तरीके तय करते हैं, वे इससे एकदम से ही हक्का-बक्का रह गए थे क्योंकि इस रफ्तार से इस दर्जे के उतार-चढ़ाव के साथ उनकी कोई रीति-रणनीति नहीं चल सकती थी। उसी वक्त यह आशंका जाहिर की गई थी कि ऐसे एकतरफा दोस्ताना रूझान चल नहीं पाएंगे। अब मोदी सरकार का कार्यकाल खत्म हो रहा है, और इस पूरे दौर में यही आशंका सही निकली कि मिठाई, शॉल, आम, और घर चले जाना किसी काम का नहीं रहा, इसके बजाय बातचीत के रिश्ते बेहतर होते, जो कि पूरी तरह से टूट ही गए। 
आज मोदी सरकार के सामने ऐसे हमले के मुकाबले कोई फौजी कार्रवाई का विकल्प ही बचता है, फिर चाहे वह एक और सर्जिकल स्ट्राईक ही हो। मोदी चुनावी सभाओं के बीच में हैं, और ऐसे में वे किसी देश से बातचीत का कोई विश्वसनीय सिलसिला शुरू नहीं कर सकते। अभी आज सुबह भारत में पाकिस्तान के साथ रिश्तों के दर्जे घटाने की घोषणा की है, लेकिन इस सरकार के आखिरी दो महीने में उससे भी बहुत फर्क नहीं पड़ता। और यह सब उस वक्त है जब देश में जंग का फतवा देने वाले लोग पाकिस्तान के चार टुकड़े कर देने की मांग कर रहे हैं, और सबसे पहले ऐसा कहने वाले भाजपा के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी हैं। चुनाव के इतने करीब मोदी सरकार का फैसला चुनावी लोकप्रियता के दबाव से मुक्त होगा, ऐसा सोचना भी नासमझी होगी। भारत की बहुसंख्यक आबादी फिल्मी अंदाज में खून का बदला खून चाहेगी, और ऐसे लुभावने दबाव के बीच भारत सरकार कैसे एक संतुलन रख सकती है यह देखना होगा। केन्द्र सरकार जो भी करे, और हिन्दुस्तान की आम जनता कश्मीर में आतंकी हमलों के पीछे वहां की स्थानीय जनता के हाथ के बारे में जो भी सोचे, इन दोनों को ही कश्मीर के आज के राज्यपाल सतपाल मलिक का कल का यह बयान याद रखना चाहिए कि कश्मीर के लोगों को राक्षसों की तरह बुरा बताने का सिलसिला खत्म होना चाहिए। उन्होंने एक टीवी चैनल पर साफ-साफ कहा कि कश्मीरी जनता को बदनाम करना बंद करना चाहिए। 
दुनिया के इतिहास में अमरीका की खुफिया एजेंसी सीआईए के ऐसे बहुत से अभियान दर्ज हैं जिनमें उसने दुनिया के अलग-अलग देशों में अमरीका के खिलाफ काम करने वाले आतंकियों को घर घुसकर मारा है। इसकी ताजी मिसाल पाकिस्तान में रह रहे ओसामा-बिन-लादेन पर पाकिस्तानी जमीन पर हुई अमरीकी फौजी कार्रवाई है जिसकी कोई खबर भी पाकिस्तान को नहीं दी गई थी। हैरानी की बात यह है कि अजीत डोभाल जितने दिग्गज खुफिया रणनीतिकार माने जाते हैं, उनके रहते मसूद अजहर की कोई अघोषित सुपारी किसी पेशेवर हत्यारे को क्यों नहीं दी गई? 
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