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प्रियंका पर पत्थर चलाने का हक आखिर है किसे ?

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में औपचारिक रूप से आने, और संगठन में एक ओहदा लेने के खिलाफ एक बवाल सा मच गया है। और तो और लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को भी अपने पद की गरिमा के खिलाफ जाकर यह कहना पड़ा कि राहुल गांधी अकेले पार्टी नहीं सम्हाल पा रहे हैं इसलिए उनकी मदद को बहन आई है। उनके अलावा भाजपा के कई नेताओं के  ऐसे बयान आए हैं कि यह राहुल गांधी की नाकामयाबी का सुबूत है, और कुछ ने तो यह भी कहा कि वे महज एक खूबसूरत चेहरा हैं, उससे अधिक कुछ नहीं। 
भारतीय राजनीति में कुनबापरस्ती को लेकर हम पहले बहुत बार लिख चुके हैं, और अभी कुछ हफ्ते पहले इसी मुद्दे पर लिखते हुए हमने एक नजर भारत के अड़ोस-पड़ोस के देशों पर भी डाली थी कि किस तरह म्यांमार से लेकर पाकिस्तान तक, और बांग्लादेश से लेकर श्रीलंका तक कुछ कुनबे राजनीति में हावी रहे हैं। इसी सिलसिले में यह लिखना भी बार-बार होता है कि कुनबापरस्ती पर सबसे बड़ा हमला करने वाली भाजपा को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने वाले एनडीए के जो भागीदार दल हैं, उनमें से कितने ही कुनबापरस्ती पर चलते आ रहे हैं। कश्मीर की मेहबूबा, पंजाब के बादल से लेकर महाराष्ट्र के ठाकरे, कभी चन्द्राबाबू, तो कभी और कोई, एनडीए की लिस्ट देखें तो पासवान सरीखे बहुत से लोग हैं जो महज एक कुनबा, और एक प्रदेश की पार्टी हैं। इन पार्टियों में इन कुनबे से परे के कोई भी व्यक्ति कभी अध्यक्ष नहीं रहे। दूसरी तरफ कांग्रेस के इतिहास की लिस्ट बताती है कि उसके प्रधानमंत्री, और उसके पार्टी अध्यक्ष, दोनों ही कुर्सियों पर कई-कई बार कुनबे से परे के लोग रहे। और बात महज भाजपा के सहयोगी दलों की नहीं है, खुद भाजपा के भीतर कुनबापरस्ती कोई नई बात नहीं है। विजयाराजे सिंधिया की दो बेटियां दो राज्यों में राज कर चुकी हैं, मुख्यमंत्री और मंत्री रह चुकी हैं। कुनबापरस्ती की चर्चा के चलते ही कल ही सोशल मीडिया पर एक लंबी लिस्ट आई है जिसमें भाजपा के नेताओं और उनकी औलादों के नाम हैं जिनमें कांग्रेस के गांधी कुनबे से भाजपा ने ली गई मेनका गांधी का नाम भी है, और उनके सांसद बेटे वरूण गांधी का नाम भी है। भाजपा इस बात का क्या जवाब देगी कि मेनका और वरूण कांग्रेस के कुनबे के जवाब के अलावा और किस वजह से पार्टी में लाए और बढ़ाए गए हैं? भाजपा के सबसे बड़े नेता रहे अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करूणा शुक्ला भाजपा में सबसे ऊंचे ओहदों में से एक पर बिठाई गई थीं, और यह लिस्ट बहुत लंबी है। 
हमारा तो यह मानना है कि अघोषित रूप से बिना किसी ओहदे की जिम्मेदारी सम्हाले जब लोग पर्दे के पीछे से काम करते हैं, तो उनकी जवाबदेही जीरो होती है, और उनके हक अंधाधुंध होते हैं। आज भाजपा के एक सांसद मेनका के पति रहे, और दूसरे भाजपा सांसद वरूण के पिता रहे संजय गांधी का दर्जा एक वक्त कांग्रेस में बेताज तानाशाह का था। प्रियंका गांधी का घोषित रूप से राजनीति में आना एक बेहतर नौबत है बजाय इसके कि वे घर के भीतर से राजनीति करें। फिर आज देश भर में कौन सी पार्टी, सिवाय वामपंथियों के, ऐसी रह गई हैं जिनमें कुनबे के लोगों को आगे नहीं बढ़ाया जा रहा है। आज भाजपा तमिलनाडू में जिस पार्टी में डोरे डाल रही है, क्या वह पार्टी कुनबापरस्ती की तर्ज पर चलने वाली पार्टी नहीं रही है? इसलिए कुनबे की बात अब फिजूल है। लोगों ने कुनबों पर उसी तरह फैसला दे दिया है जिस तरह उन्होंने सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर फैसला दे दिया था। हां यह बात जरूर है कि हम चाहते हैं कि एक परिवार से एक ही व्यक्ति एक सदन में पहुंचे, या एक ही व्यक्ति संसद या विधानसभा में जाए ताकि पार्टी के बाकी लोगों को भी मौका मिले। लेकिन वामपंथियों, और शायद ममता बैनर्जी, के अलावा तमाम पार्टियां लगातार वंशवाद को बढ़ावा देते चल रही हैं, ऐसे में प्रियंका का राजनीति में आना कोई गुनाह नहीं है। प्रियंका पर हो रहे ओछे हमले जरूर गुनाह हैं, और कम से कम लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को तो ऐसे हमलों की जिम्मेदारी अपनी पार्टी के दूसरे लोगों को देनी चाहिए, क्योंकि अभी अगले कुछ महीने तक तो वे लोकसभा अध्यक्ष हैं ही। 
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