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गंदी बातों का टीवी कारोबार, और भारतीय सोच का हाल...

भारतीय क्रिकेट टीम के दो खिलाड़ी, हार्दिक पंड्या और के.एल. राहुल को कॉफी विद करण नाम के एक कार्यक्रम में अपने सेक्स जीवन और महिलाओं के प्रति हिकारत की गंदी बातों की वजह से टीम से हटा दिया गया है। यह सजा वैसे तो दो मैचों के लिए दी गई है, लेकिन इससे परे भी उनका एक नुकसान यह हुआ है कि करोड़ों के मॉडलिंग के काम उनसे छीन लिए गए हैं। यह बवाल इस कार्यक्रम के प्रसारण के बाद हुआ, और अब तक खत्म होते दिख नहीं रहा है। 
दरअसल जिन लोगों ने इस कार्यक्रम को पहले भी देखा है वे जानते हैं कि करण जौहर मुम्बई की फिल्मी दुनिया में सबसे बड़े अफवाहबाज का तमगा अपने लिए कई लोगों के मुंह से सुनते हुए भारी खुश होते हैं, और एक फिल्म निर्माता-निर्देशक या टीवी-जज की हैसियत से वे पूरे फिल्म उद्योग के बीच रहते हैं, और लोगों की निजी जिंदगी, आपसी रिश्तों की हकीकत और अफवाह से अच्छी तरह वाकिफ रहते हैं। नतीजा यह होता है कि उनका कार्यक्रम फिल्मी सितारों की निजी जिंदगी की ऐसी परतें उधेडऩे की ताकत रखता है जिसे आम जनता सुनना चाहती है। अब अगर इन दो क्रिकेट खिलाडिय़ों पर कार्रवाई न हुई होती, तो उस कार्यक्रम को देखने वाले अधिकतर लोगों ने उसे भारी सनसनीखेज मजे वाला पाया होगा। फिर जब कुछ जागरूक लोगों ने उसके खिलाफ हल्ला किया, तो लोगों को लगा होगा कि अरे उसमें कुछ गलत भी था। सच तो यह है कि इंसानी मिजाज उन वर्जित चीजों के बारे में अधिक सुनना, अधिक देखना, और उन्हें अधिक करना चाहता है जिससे उसे सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से रोका गया है। हिन्दुस्तानी समाज में जिस तरह सेक्स की चर्चा को एक वर्जित विषय बना दिया गया है, उसका एक नतीजा यह भी निकला है कि लोग इस वर्जित विषय के बारे में रद्दी से रद्दी तरह से सोचते हैं, और बातें करते हैं। हिन्दुस्तान की आम सेक्स-चर्चा, सेक्स के जुर्म, उसकी विकृति, और उसके नकारात्मक पहलुओं तक सीमित रह जाती है। ऐसा सेक्स-कुंठित समाज जब करण जौहर जैसे शो में सितारों की निजी अफवाहों को सनसनीखेज तरीके से सुनता है, तो वह बंधा रह जाता है। 
यह तो ठीक है कि सार्वजनिक जीवन के जो घोषित पैमाने होते हैं, उन पर खोटा उतरने के बाद इन दो क्रिकेट खिलाडिय़ों को दो मैचों के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया, लेकिन लोगों को उनकी उत्तेजक सेक्स-चर्चा से जो मजा पाना था, वे पा चुके, और करण जौहर के इस शो को जो अतिरिक्त शोहरत हासिल होनी थी, वह भी हो चुकी। यह सजा गलत नहीं है, लेकिन समाज के बहुत ही कम लोगों को इस कार्यक्रम को देखते हुए यह अहसास रहा होगा कि यह सजा के लायक है। कुछ जागरूक लोगों ने सार्वजनिक रूप से जब ऐसी गंदी चर्चा पर आपत्ति की, तो फिर उसके बाद क्रिकेट बोर्ड के सामने सिवाय सजा देने के और कोई विकल्प बचा नहीं था। लेकिन इसके साथ-साथ यह भी सच है कि फिल्मी सितारे, संगीत या क्रिकेट सितारे अपने आसपास के मंत्रमुग्ध प्रशंसकों के साथ आए दिन शोषण का ऐसा बर्ताव करते हैं, और उनके आभा मंडल से बावले हो गए लोग उनके सामने अपने कपड़े भी खुद होकर ही शायद उतार देते हैं। ऐसे में भारत की सार्वजनिक चर्चा को लेकर यह सोचने की जरूरत है कि क्या वर्जित विषयों पर बातचीत इस हद तक खत्म हो जानी चाहिए कि उसे निजी स्तर तक उधेड़कर लोग टीवी पर दर्शकों को बांधने का कारोबार करें? क्या इस देश में वयस्क विषयों पर वयस्क लोगों के बीच गंभीर और परिपक्व चर्चा की गुंजाइश नहीं है? और तो और हिन्दुस्तान में वयस्क विषयों पर किसी पत्रिका की गुंजाइश भी कभी नहीं निकल पाई, और घटिया पोर्नोग्राफी को ही वयस्क सामग्री मान लिया गया। 
अंग्रेजों के वक्त चर्च के थोपे गए वर्जित विषयों के पैमानों से उसके पहले तक परिपक्व रहते आए भारत को अपनी वयस्क जरूरतों को बेहतर समझने की जरूरत क्या नहीं है? 
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