छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए जिस ऐतिहासिक और अभूतपूर्व बहुमत से पार्टी को सत्ता तक पहुंचाया, वही ताकत और वही रफ्तार पिछले कुछ हफ्तों की इस सरकार के फैसलों में दिख रही है। कुछ बहुत पुराने मामलों में जिस तरह जांच के आदेश हुए हैं, और अफसरों को जिस तरह हटाया गया है, कुछ अफसरों को बिना काम बिठाया गया है, कुछ को जैसी जांच का जैसा जिम्मा दिया गया है, उससे पूरी सरकार में एक हड़कम्प है। डेढ़ दशक से सत्ता से बाहर रही कांग्रेस, और जोगी-कार्यकाल में भी उपेक्षित रहे भूपेश बघेल अभी जिस रफ्तार से फैसले ले रहे हैं, उनके पीछे उनका आत्मविश्वास भी झलक रहा है, और ऐसा लग रहा है कि मतदान के बाद और शपथ ग्रहण के पहले का वक्त भी उन्होंने बहुत से सरकारी कामों की तैयारी में लगाया था।
राज्य में जितने विवादित और बड़े-बड़े अफसरों से लेकर मामलों तक की जांच शुरू हुई है, उनमें से किसी बात की उम्मीद जनता भाजपा सरकार बनने पर सोच भी नहीं सकती थी। और अभी तो मामलों का निकलना शुरू ही हुआ है, ऐसा लगता है कि अलग-अलग बहुत से विभागों में कई किस्म के भ्रष्टाचार सामने आएंगे, और उनसे जिन अफसरों-नेताओं की सेहत पर असर पड़ेगा, वे मौजूदा नई सरकार से लेकर आने वाली सरकारों तक के लिए एक सबक भी साबित होंगे। यह देखकर यह भी लगता है कि किसी भी सरकार को आने के बाद पिछली सरकार के खिलाफ चले आ रहे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए एक कमेटी बिठानी चाहिए। यह बात हम पिछले बरसों में कई बार लिख चुके हैं, और राजनीति में कई लोग इसे विच हंटिंग कहते हुए इससे परहेज की सलाह देते हैं, लेकिन हम इसे एक अनिवार्य जिम्मेदारी मानते हैं। लोकतंत्र में संविधान की शपथ लेने के बाद किसी को किसी दूसरे को माफ करने का हक नहीं मिलता है, बल्कि सही या गलत कामों पर कार्रवाई करने का जिम्मा मिलता है।
सरकारें कुछ-कुछ समय बाद बदलती रहें, और जांच होती रहे, कार्रवाई होती रहे, तो काई इतनी मोटी नहीं जम सकती। दस-बीस बरस पहले से चले आ रहे गंभीर आरोपों को लेकर जिस तरह की जांच अभी शुरू हो रही है, उससे आज सरकार में बैठे हुए छोटे-बड़े सभी लोग सहम भी गए हैं, और संभल भी गए हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जिस विशाल बहुमत के साथ जीतकर आए हैं, और पार्टी के भीतर कड़े मुकाबले में वे जिस तरह मुख्यमंत्री बने हैं, उनसे इन दो कामयाबियों के बाद कोई अधिक बहस नहीं कर सकते। फिर उनके तकरीबन सभी फैसले अब तक ठीक दिख रहे हैं, इसलिए वे सवालों के घेरे में भी नहीं हैं। लेकिन इतनी ताकत से मिली सत्ता से जब बहुत रफ्तार से काम होता है, तो किसी चूक का खतरा भी रहता है। प्रदेश की कांग्रेस सरकार को यह सावधानी बरतनी चाहिए कि उसके कार्यकाल में ऐसे काम न हों जिनसे पांच बरस बाद जाकर वह खुद घिरे।