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सिपाही बुलबुल, कुर्बानी या बलिदान भावना का प्रतीक

[TODAY छत्तीसगढ़] / बुलबुल, शाखाशायी गण के पिकनोनॉटिडी कुल का पक्षी है और प्रसिद्ध गायक पक्षी "बुलबुल हजारदास्ताँ" से एकदम भिन्न है। ये कीड़े-मकोड़े और फल फूल खानेवाले पक्षी होते हैं। ये पक्षी अपनी मीठी बोली के लिए नहीं, बल्कि लड़ने की आदत के कारण शौकीनों द्वारा कभी पाले जाते रहे हैं। यह उल्लेखनीय है कि केवल नर बुलबुल ही गाता है, मादा बुलबुल नहीं गा पाती है। बुलबुल कलछौंह भूरे मटमैले या गंदे पीले और हरे रंग के होते हैं और अपने पतले शरीर, लंबी दुम और उठी हुई चोटी के कारण बड़ी सरलता से पहचान लिए जाते हैं। विश्व भर में बुलबुल की कुल 9700 प्रजातियां पायी जाती हैं। इनकी कई जातियाँ भारत में पायी जाती हैं, जिनमें "गुलदुम (red vented) बुलबुल" सबसे प्रसिद्ध है।

  • गुलदुम (red vented) बुलबुल,
  • सिपाही (red whiskered) बुलबुल,
  • मछरिया (white browed) बुलबुल,
  • पीला (yellow browed) बुलबुल तथा
  • काँगड़ा (whit checked) बुलबुल।
ऊपर तस्वीरों में जो बुलबुल दिखाई पड़ रही है वो (red whiskered) यानी सिपाही बुलबुल है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी क्रान्तिकारी व उर्दू शायर पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल ने भारत में बहुतायत में पायी जाने वाली प्रजाति सिपाही बुलबुल को प्रतीक के रूप में प्रयोग करते हुए अनेकों गज़लें लिखी थीं। उन्हीं में से एक गज़ल वतन के वास्ते का यह मक्ता बहुत लोकप्रिय हुआ था:
क्या हुआ गर मिट गये अपने वतन के वास्ते।
बुलबुलें कुर्बान होती हैं चमन के वास्ते॥
जैसा कि चित्र दीर्घा में दिये गये फोटो से स्पष्ठ है सिपाही बुलबुल ( Red whiskered Bulbul) की गर्दन में दोनों ओर कान के नीचे लाल निशान होते हैं जो कुर्बानी या बलिदान भावना का प्रतीक है। इसीलिये गज़ल में बुलबुल शब्द प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुआ है।

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