Slider

जरूरी है, फिर ना हो किसान कर्जग्रस्त

ध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कर्जग्रस्त किसानों को राहत की घोषणा नई सरकार बनने के साथ की है। इस तरह चुनावी घोषणा पूरा करने की तरफ मजबूत कदम उठा है,पर इसमें दो लाख तक का अल्पकालीन कर्ज माफ किया जा रहा है जिसे आधा अधूरा वादा पूरा करने की बात निरूपित किया जा रहा है। वही छतीसगढ़ में क्रेडिट कार्ड से लिया गया सारा कर्ज मुक्ति के आदेश जारी हो गए हैं। सरकार के कर्ज माफी को चार माह बाद लोकसभा चुनाव में थोक मतों को एकत्र करने के लिए किया फैसला भी विपक्षी मान रहे हैं।
छतीसगढ़ में धान की दर में बढ़ोतरी कर 2500 क्विंटल कर किसानी को बढ़वा दिया गया है। यह स्वगतेय है। जितने भी उद्योग हैं इनमें कोई भी खाद्य पदार्थ का कण भर भी उत्पादन नहीं सकता, वह कृषि उत्पादन को रूपांतरित करते हैं। इसलिये कृषि को उद्योगों से अधिक रियायत मिलनी चाहिए। यह तय करना जरूरी है कि किसान कौन है,यह छूट उसी को मिले।आयकर बचाने के लिए जो खेती करते हैं, वह छूट का लाभ भविष्य में भी पाते रहे तो,आम वेतनभोगी की जेब कटेगी। इसी तरह जो बड़े किसान अपनी जमीन खेतिहरजनों को भाड़े पर देते हैं, चूंकि जमीन उनके नाम रहती है इसलिए सरकारी छूट वही पाता है और खेत में पसीना बहाने वाला आम तौर पर वंचित रहता है।
                                                                                                           तस्वीरें / प्राण चढ्ढा 
  किसान कर्ज में क्यों फंसता है,इसके कारण हैं, किसान कर्ज के पैसे से बेटी की शादी, मकान निर्माण कर लेता है अथवा फसल बेच अन्यत्र  खर्च कर देता है। इसके लिए बैंक वाले वो कर्मी भी कम जिम्मेदार नहीं जो कर्ज पर भी कमीशन चाहते हैं और वसूली में ढील देते हैं। कृषि विभाग का नेटवर्क है,पर खेतिहर किसान तक वह नहीं पहुंचता, वह फार्महाउस कल्चर के ईर्दगिर्द मंडराते हुए लक्ष्य पूरा करने की फिराक में रहता है। इस विभाग का काम जमीन पर दिखे, और प्रयोगशाला से किसानों के खेत तक यह नई खोज पहुंचाएं।


 सरकारी योजना का फेल हो जाना,हाल में नेट लगा कर बेमौसम सब्जी उत्पादन की योजना आई।जिसमें जमकर सब्सिडी रही,यह आयकर पटाने वाले किसानों के खेत में लगी और नेट, पाइप भी अब खेत में नहीं है। बहुत बड़ा घपला इसमें रहा। योजना मूल।किसानों के लिए हो और लाभकारी हो,यह जिम्मा कृषि विभाग का रहे।  सबसे जरूरी यह है- किसान को इस तरह बनाना बनाया जाए कि वह फिर कभी कर्जग्रस्त नहीं हो।इसके लिये कबीर धाम( कवर्धा) इसके लिए छतीसगढ़ में फिलहाल अच्छा उदाहरण है,जहां गावों के खेतों में सारे साल हरियाली रहती है और ग्रामीण जीवन स्तर बढ़ा है।  TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें -

© all rights reserved TODAY छत्तीसगढ़ 2018
todaychhattisgarhtcg@gmail.com