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सादगी, कटौती, किफायत की जरूरत, उपलब्ध रहने की भी

त्तीसगढ़ के नए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पुलिस को निर्देश दिया है कि सड़क से उनके आते-जाते ट्रैफिक को अनावश्यक न रोका जाए, और किसी एम्बुलेंस को तो किसी भी हालत में नहीं रोका जाए। उन्होंने मुख्यमंत्री के काफिले की गाडिय़ों में कटौती के लिए भी कहा है। शासन के पहले दिन से ही कटौती, किफायत, और सादगी शुरू होना इसलिए ठीक है कि एक बार जब इनकी आदत हो जाती है, या अफसरों में ही मुख्यमंत्री को खुश करने के लिए उन्हें अतिमहत्वपूर्ण साबित करने की होड़ लग जाती है, तो धीरे-धीरे मुख्यमंत्री के अलावा मंत्री भी इसके आदी होने लगते हैं, और उन्हें यह सब सुहाने भी लगता है। लेकिन यह सब कुछ उस जनता के पैसों पर होता है जो कि रियायती अनाज के बिना पेट नहीं भर सकती, और जो इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों में रिश्वत देने की ताकत भी नहीं रखती। इसलिए मुख्यमंत्री को और भी मामलों में ऐसी सादगी शुरू करनी चाहिए जो उनके मंत्रियों तक पहुंचे। वरना इसी राजधानी में हमने ऐसे स्थानीय मंत्री का काफिला चलते देखा है जिसकी पूरी जिंदगी इसी शहर में गुजरी, लेकिन एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले जाते हुए भी सायरन बजाती गाडिय़ों का काफिला चलना जरूरी रहता था। यह पूरा तामझाम खत्म होना चाहिए।
इसके अलावा सरकार में जो सामंती परंपराएं चली आ रही हैं, वे भी खत्म होनी चाहिए। दर्जन भर पुलिस वाले सजावटी-सलामी वर्दी में मुख्यमंत्री को सलामी देने के लिए तैनात रखे जाते हैं, और ऐसी सलामी भला किस काम की कि जिसके पुलिस वालों को बेहतर काम में लगाया जा सकता है। आज जेलों से अदालतों तक विचाराधीन कैदियों को ले जाने के लिए भी पुलिस नहीं मिलती है, और न ही इलाज के लिए ले जाने को। ऐसे में सलामी के लिए, बंगलों में फोन उठाने के लिए, फाटक खोलने और बंद करने के लिए जब पुलिस सिपाहियों का बेजा इस्तेमाल होता है, तो वह जनता की जेब पर बोझ होता है, और ऐसे कर्मचारी पुलिस की बुनियादी ड्यूटी भूल भी जाते हैं। इसलिए नई सरकार को शुरुआत से ही एक ऐसी कटौती शुरू करनी चाहिए जो कि लोकतांत्रिक भावना के साथ मेल भी खाए। 
इसके अलावा राज्य सरकार को यह भी तय करना चाहिए कि हफ्ते का कम से कम एक दिन ऐसा रहे जो कि दौरों और बैठकों से मुक्त रहे, और मंत्रालय से लेकर पटवारी तक हर कोई उस दिन अपने दफ्तर में रहकर लोगों को उपलब्ध रहें। आज बहुत से दफ्तरों में लोग धक्के खाते रहते हैं, और वहां पर कुर्सियों पर लोगों के बैठने का ठिकाना नहीं रहता है। इसलिए मुख्यमंत्री से लेकर पटवारी तक अगर हफ्ते में किसी एक दिन अपने दफ्तर में लोगों से मिलने के लिए मौजूद रहें, तो वह आम लोगों के लिए बहुत बड़ी राहत रहेगी। इससे छोटे-छोटे से सरकारी कामकाज टलना भी रूकेगा जिसके सबसे बुरे शिकार सबसे कमजोर लोग होते हैं। राजनीति या पैसों की ताकत वाले लोग तो किसी तरह अपना काम करवा लेते हैं, लेकिन कमजोर जनता जरा-जरा सी बातों के लिए धक्के खाते रहती है। इस सिलसिले को खत्म करना चाहिए, क्योंकि ऐसी कमजोर जनता संख्या में अधिक रहती है, और वही सरकार के खिलाफ अगले चुनाव के वक्त वोट भी देती है। हफ्ते में किसी तय दिन हर किसी की अपने दफ्तर में मौजूदगी से सरकार के प्रति लोगों का भरोसा भी बढ़ेगा।
दो दिन पहले हमने इसी जगह सरकारी फिजूलखर्ची को रोकने के बारे में भी लिखा था, और राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ के पहले वित्तमंत्री रामचंद्र सिंहदेव ने उसकी एक मिसाल भी कायम की थी। हालांकि फिजूलखर्ची के शौकीन लोग उन्हें चुनावी हार के लिए जिम्मेदार भी ठहराते थे, लेकिन वे सादगी से खुद भी जीते थे, और दूसरे मंत्रियों, अफसरों की फिजूलखर्ची पर कड़ाई से रोक भी लगाते थे। एक बार फिर छत्तीसगढ़ को वैसी कड़ाई की जरूरत है, और इसकी मिसाल मुख्यमंत्री को खुद ही कायम करनी पड़ेगी, तभी जाकर बाकी लोग उस पर चलेंगे।  

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