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छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु 'श्यामू' की मौत, वन अमले को खबर नहीं

  [TODAY छत्तीसगढ़] /  छत्तीसगढ़ राज्य में वन और वन्य प्राणियों की दयनीय स्थिति किसी से छिपी नहीं है। राज्य के अधिकाँश जंगल उजड़ने की कगार पर हैं तो वहीं लगातार वन्य जीवों की अकाल मौत कइयों सवाल खड़े करती है। बिलासपुर जिले के कानन जू में सफ़ेद बाघ की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत के सही कारणों का पता चलता उससे पहले ही गरियाबंद जिले में उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व से राजकीय पशु वन भैंसे की मौत का सनसनीखेज मामला सामने आ गया है।
 छत्तीसगढ़ में राजकीय पशु को संरक्षित करने और उनके वंश वृद्धि को लेकर करोड़ों रूपये सरकार के खजाने से निकलकर जंगल तक पहुंचा लेकिन वन भैंसे की वंश वृद्धि तो दूर उन्हें ही बचा पाने में वन अमला नाकाम रहा जबकि जिस वन भैंसे की मौत का मामला सामने आया है उसे रेडियो कॉलर लगाया गया था ताकि विभागीय अमले को उसके लोकेशन की जानकारी रहे। अफ़सोस की श्यामू नाम का वो वन भैंसा तीन दिन पहले मर गया और विभाग को भनक तक नहीं लगी। आज एक ग्रामीण के जरिये श्यामू की मौत की जानकारी विभाग के मुस्तैद अफसरों को लगी। श्यामू वन भैंसे की लाश आज सुबह सड़ी-गली अवस्था में टाइगर रिजर्व के बरदुला वन क्षेत्र में मिली है।
  राज्य के उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व के उत्तर क्षेत्र  में विचरण करने वाले श्यामू वन भैंसे की लाश आज काफी बुरी अवस्था में मिली, ग्रामीणों के मुताबिक़ लाश 3 दिन या चार दिन पुरानी हो सकती है। इस पुरे मामले का सबसे दुखद पहलु ये रहा की जिस वन भैंसे की संदिग्ध मौत हुई है उसके गले में रेडियो कॉलर लगा हुआ है। बावजूद इसके वन महकमें को राजकीय पशु की लाश सड़ जाने तक भनक नहीं लगी। सूत्रों के मुताबिक़       उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व में वन भैसा श्यामू की लाश जिस जगह बरामद की गई है वहां से मैनपुर मुख्यालय की दुरी महज 5 किमी है। वन क्षेत्र में लाश सड़ने के बाद फैली बदबू के चलते आस-पास मवेशी चराने वालों को इस घटनाक्रम की भनक लगी। सुचना के बाद सक्रीय हुआ वन अमला फिलहाल अपनी खाल बचाता दिखाई दे रहा है, अफसर कुछ भी कहने से बच रहें हैं। 
देश में वन भैंसों की खत्म होती नस्ल को बचाने की दिशा में अलग-अलग राज्यों में परिस्थितियों के हिसाब से कार्य योजना बनाकर काम किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में भी संभावना तलाशी गई, करोड़ों की कार्य योजना बनी। गरियाबंद जिले के उदंती-सीतापुर टाइगर रिजर्व को वन भैंसों को संरक्षित करने के लिए उचित स्थान माना गया। यहां मौजूद वन भैंसों में दो को रेडियो कॉलर लगाया गया ताकि विभाग उनकी गतिविधियों पर नज़र रख सके। बताया जा रहा है की यहां श्यामू की मौत के बाद अब केवल 7 नर बचे हैं जबकि मादा की संख्या केवल दो है।   
छत्तीसगढ़ में राजकीय पशु वन भैंसे के संरक्षण-संवर्धन के लिए सरकार ने करोड़ों रूपये खर्च कर विधिवत कार्य योजना तैयार की, काम भी शुरू हुआ लेकिन नतीजे सकारात्मक नहीं निकले। आलम ये है की वन भैंसे के संरक्षण-संवर्धन को लेकर ठीक उसी तर्ज पर काम हो रहा है जिस ढंग से राज्य में हाथियों को लेकर सरकारी तंत्र अब तक गंभीर नज़र आता रहा है। मतलब साफ़ है कहीं टाइगर के नाम पर, तो कोई वन भैंसे की आड़ में तो किसी ने गजराज परियोजना के नाम पर अब तक वन मंत्री से लेकर संतरी तक को गुमराह किया है। 
राज्य में बदली परिस्थितियों में इस बात के कयास लगाए जा रहें है की पिछले एक दशक में वन महकमें में जिन महत्वपूर्ण योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के नाम पर सिर्फ सरकारी कागज पर स्याही चलती रही है उस तरफ नए वन मंत्री ध्यान देंगे और अगर मामलों की जांच की गई तो कई चौकाने वाले तथ्य भी सामने आ सकते हैं।
एक साल पहले ये पोस्ट लिखी गई और संभावना जताई गई थी, पढ़िए पूरा - 





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