[TODAY छत्तीसगढ़] / कड़वा है, लेकिन सच है कि आज सड़कों पर आवारा घूमती व भूखी गाय कचरे से गंदगी व पॉलिथीन खाने को मजबूर हैं। सुख-समृद्धि की प्रतीक रही गाय आज कूड़े के ढेर में कचरा और प्लास्टिक की थैलियां खाती दिखती हैं। मां के दर्जे वाली गाय की दुर्दशा बढ़ती जा रही है। इन गायों को माँ कहकर एक-दूसरे का खून बहा देने वाले वो बेटे आखिर कौन और कहाँ हैं ? गाय के नाम पर देश की शान्ति में खलल डालने वालों की माँ कभी कचरे के ढेर में पेट की आग बुझाने की तलाश करती दिखाई पड़ती है तो कभी लावारिस हाल में सड़क पर बैठी हादसे का शिकार और दुर्घटना की वजह बनती है। गाय माता के नाम पर अक्सर देश और कई राज्यों की सियासते तवा गर्म करती रहीं हैं जिन पर कुछ स्वार्थी लोगों ने जमकर रोटियां सेंकी। कुछ लोग गाय की वकालत करते-करते आर्थिक रूप से सम्पन्न हो गए लेकिन माता जी आज भी भूखे पेट लावारिस हाल में कचरों में जिंदगी तलाश रही है। जिला मुख्यालय बिलासपुर से महज आठ किलोमीटर की दुरी पर सकरी-पेंड्रीडीह बाईपास पर बटालियन के पास और कानन पेंडारी के पीछे हिस्से में गंदगी के ढेर पर गायों के प्रति इंसानी आस्था का सच किसी भी वक्त देखा जा सकता है।
धर्म शास्त्रों के पन्नों को पलटकर देखें तो भारत भूमि में गाय की महिमा आदिकाल से रही है। हर हिन्दू घर में सबसे पहली रोटी गाय की और दूसरी रोटी कुत्ते की निकाली जाती थी। घर में बनने वाली पहली रोटी गायों को खिलाकर ही परिवार स्वयं कुछ खाता था।
सकरी नगर पंचायत का समेटा हुआ ये कचरा रोज जिस जगह फेंका जाता हैं वो तालाब का हिस्सा है। तालाब के जिस हिस्से में थोड़ा बहुत पानी बचा है वो इस कचरे की वजह से काफी प्रदूषित हो चुका है। बीमारियों का घर बन चूका तालाब कभी आस-पास रहने वालों के दैनिक उपयोग का साथी था, अब यहां पहुँचने वाले साथ बीमारियां लेकर लौटते हैं। इतना ही नहीं कचरा फेंकने के बाद उसे जलाने से आस-पास का वातावरण बेहद खराब हो चुका है लेकिन तालाबों, गायों और पर्यावरण की फिक्र करने वालों को निहित स्वार्थों से ऊपर कुछ नज़र नहीं आता लिहाजा ऐसे दृश्य बेहद आम हैं।
धर्म शास्त्रों के पन्नों को पलटकर देखें तो भारत भूमि में गाय की महिमा आदिकाल से रही है। हर हिन्दू घर में सबसे पहली रोटी गाय की और दूसरी रोटी कुत्ते की निकाली जाती थी। घर में बनने वाली पहली रोटी गायों को खिलाकर ही परिवार स्वयं कुछ खाता था।
सकरी नगर पंचायत का समेटा हुआ ये कचरा रोज जिस जगह फेंका जाता हैं वो तालाब का हिस्सा है। तालाब के जिस हिस्से में थोड़ा बहुत पानी बचा है वो इस कचरे की वजह से काफी प्रदूषित हो चुका है। बीमारियों का घर बन चूका तालाब कभी आस-पास रहने वालों के दैनिक उपयोग का साथी था, अब यहां पहुँचने वाले साथ बीमारियां लेकर लौटते हैं। इतना ही नहीं कचरा फेंकने के बाद उसे जलाने से आस-पास का वातावरण बेहद खराब हो चुका है लेकिन तालाबों, गायों और पर्यावरण की फिक्र करने वालों को निहित स्वार्थों से ऊपर कुछ नज़र नहीं आता लिहाजा ऐसे दृश्य बेहद आम हैं।
केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद जो शब्द सबसे ज्यादा चर्चा में रहे उनमें से एक गोरक्षक भी था। देश के हर कोने से गोरक्षकों की ख़बरें आईं। संसद और विधानसभाओं में चर्चा हुई तो सड़कों पर हंगामा शुुरू हुआ। सड़क से लेकर सोशल मीडिया में भक्तों का ऐसा सैलाब उमड़ा कि एक बारगी लगा कि गाय अब न भूखे मरेंगी और न ही सड़कों पर नजर आएंगी। लेकिन हालात इसके बिल्कुल उलट हैं।