" अगर आप इस खबर के पाठक है तो आपको ज्ञात होगा कि पनामा पेपर में अभिषेक सिंह के पते-ठिकाने के तौर पर रमन मेडिकल स्टोर का उल्लेख हुआ है. यह वही मेडिकल स्टोर वही जिसे अब भी पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह के परिजन कवर्धा में संचालित करते हैं. यह तो एक दुकान की बात हुई. छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री की ऐसी और भी कई दुकानें थी जो घोषित-अघोषित तौर पर संचालित होती थी. मुख्यमंत्री चूंकि जनसंपर्क विभाग के मंत्री भी थे सो उनका यह विभाग भी एक दुकान में तब्दील हो गया था."
वैसे तो हर प्रदेश का जनसंपर्क विभाग सरकार की नीतियों को बढ़ा-चढ़ाकर बताने का काम ही करता है, लेकिन छत्तीसगढ़ में इस विभाग ने रमन सिंह की जय-जय और वाह-वाह करने में सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिए थे. देश-दुनिया के ज्यादातर मीडियाकर्मियों के बीच अब भी जनसंपर्क विभाग की पहचान वाह-वाह प्रोडक्शन के रुप में ही बनी हुई है. अब जबकि नई सरकार बन गई है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि विभाग की भ्रष्ट पहचान का खात्मा होगा.
वैसे तो हर प्रदेश का जनसंपर्क विभाग सरकार की नीतियों को बढ़ा-चढ़ाकर बताने का काम ही करता है, लेकिन छत्तीसगढ़ में इस विभाग ने रमन सिंह की जय-जय और वाह-वाह करने में सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिए थे. देश-दुनिया के ज्यादातर मीडियाकर्मियों के बीच अब भी जनसंपर्क विभाग की पहचान वाह-वाह प्रोडक्शन के रुप में ही बनी हुई है. अब जबकि नई सरकार बन गई है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि विभाग की भ्रष्ट पहचान का खात्मा होगा.
मूवी फिक्सल का कारनामा -
काफी अरसा पहले हास्य अभिनेता मेहमूद ने फिल्म प्यार किए जा में आत्मा नाम के किरदार को निभाते हुए वाह-वाह प्रोडक्शन की स्थापना की थी. अपने फिल्म प्रोडक्शन के लिए मेहमूद अपने पिता ओमप्रकाश को ही टोपी पहनाते हुए नजर आए थे. छत्तीसगढ़ में भी चुनाव से पहले कई वाह-वाह प्रोडक्शन खुले और उन्होंने जमकर चूना लगाया. एक प्रोडक्शन का नाम कंसोल इंडिया था तो दूसरे प्रोडक्शन का नाम मूवी फिक्सल. कंसोल इंडिया ने तो इस चुनाव में बकायदा छत्तीसगढ़ के मूर्धन्य संपादकों और पत्रकारों को निमंत्रण दे-देकर पैसा बांटा और उनका वीडियो भी बनाया. जबकि वाह-वाह प्रोडक्शन श्रेणी की दूसरी बड़ी कंपनी मूवी फिक्सल थी जो गुजरात से आई थी. उसी गुजरात से जहां के नरेंद्र मोदी है.
बताते हैं कि इस कंपनी के एक कर्ताधर्ता जिनका नाम मनीष हैं ने जैसे ही छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया वैसे ही एक स्थानीय निर्माता-निर्देशक को फोन पर धमकी दी कि वह रमन सिंह के सारे फुटेज उसे सौंप दें. जब स्थानीय निर्माता ने फुटेज देने से इंकार किया तो जनसंपर्क विभाग के आयुक्त राजेश टोप्पो ने स्थानीय निर्माता को यह कहते हुए चमकाया कि गुजरात का मतलब हवालात भी हो सकता है. कहने की जरूरत नहीं कि यह एक पैराशूट कंपनी थी जो जनसंपर्क विभाग के लिए बरसों से काम कर रहे स्थानीय निर्माता-निर्देशकों के कामकाज को चौपट करने आई थी. सरकार ने इस कंपनी को उपकृत करने के लिए विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एक टेंडर निकाला. टेंडर में ऐसी शर्तें रखी गई कि छत्तीसगढ़ का कोई भी स्थानीय व्यक्ति उसे पूरी नहीं कर सकता था.
कुछ ऐसे चला खेल -
जनसंपर्क विभाग के संवाद ने जो टेंडर निकाला उसमें सबसे बड़ी शर्त यही थी कि तीन से चार मिनट की वीडियो फिल्म का निर्माण करने वाली कंपनी के प्रत्येक वर्ष का टर्न ओवर 20 करोड़ से अधिक होना चाहिए. कैमरे का एचडी या 4 के होना अनिवार्य था, लेकिन इसके साथ यह भी जोड़ दिया गया कि कंपनी अपनी पूरी जानकारी केवल अंग्रेजी में देगी. टेंडर में स्टोरी बोर्ड में 10 नंबर, अनुभव के लिए 20 नंबर और प्रस्तुतिकरण के लिए सबसे ज्यादा 70 नंबर रखे गए थे. यहां यह बताना अनिवार्य है कि संवाद में देशभर की ( स्थानीय मिलाकर ) लगभग 30 संस्थाएं इम्पनैल यानि पंजीबद्ध है. इन संस्थाओं में कुछ ए श्रेणी की है तो कुछ बी श्रेणी की. पंजीबद्ध संस्थाओं को अब तक डीएवीपी की दर पर ही काम दिया जाता रहा है. इस निविदा में जिन कैमरों के उपयोग की बात कही गई थीं उसकी शर्त तो हर स्थानीय निर्माता पूरी करता था, लेकिन प्रत्येक साल 20 करोड़ से अधिक के टर्न ओवर पर मामला अटक गया. दूसरी बड़ी बात यह भी थी कि प्रस्तुतिकरण के 70 नंबर संवाद के अधिकारियों ने अपने हाथ में रखे थे. दांव-पेंच में फंसे इस टेंडर से कई लोग बाहर हो गए और गुजरात की कंपनी ने वीडियो और आडियों बनाने का ठेका हासिल कर लिया. जनसंपर्क विभाग के एक अधिकारी कुशराम का कहना है कि यह कंपनी अप्रैल 2018 से काम कर रही थी और इसे हर माह लगभग 70 लाख का भुगतान दिया जाता था. जबकि जनसंपर्क विभाग के एक अन्य अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर जानकारी दी कि एक नए काम का टेंडर सितम्बर 2018 में निकाला गया था जिसका करोड़ो रुपए का भुगतान समय से पहले ही कर दिया गया. अब केवल एक करोड़ 18 लाख रुपए का भुगतान बकाया है. खबर है कि कंपनी को अनधिकृत तौर-तरीकों से करोड़ों रुपए का भुगतान कर दिए जाने से स्थानीय निर्माता-निर्देशकों का भुगतान अटक गया है. पीड़ित निर्माता जल्द ही मुख्यमंत्री से मिलकर गुहार लगाने वाले हैं.
सच तो यह है कि छत्तीसगढ़ में विकास आधारित डाक्यूमेंट्री फिल्म निर्माण का गोरखधंधा रमन सिंह के कार्यकाल में जिस गंदे ढंग से पनपा है उस तरीके से कभी नहीं पनपा. जनसंपर्क विभाग मुंबई- दिल्ली की कंपनियों पर मेहरबान रहा तो कभी हरियाणा की कंपनी मिडिटेक पर. अगर आप जनसंपर्क विभाग और संवाद के द्वारा पिछले पन्द्रह सालों में निर्मित फिल्मों सच जानना चाहेंगे तो आश्चर्य होगा कि विभाग ने आम, केला, लीची और पपीते की खेती पर भी फिल्में बनवाई है और करोड़ों रुपए का भुगतान किया है. मीडिया का एक बड़ा वर्ग मानता है कि इस विभाग ने पिछले पंद्रह सालों में रमन के चेहरा चमकाऊ कार्यक्रम के नाम पर जो भी गड़बड़झाला किया है उसका खुलासा होना चाहिए.