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कांग्रेस के सबसे संघर्षशील नेता के माथे अभूतपूर्व मेहनत और जीत से बंधा सीएम का सेहरा..

                                                                                                                                                            फ़ाइल फोटो-
तीन-चार दिनों के कश्मकश के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल को पार्टी ने आज राज्य का मुख्यमंत्री चुना है। अठारह बरस के इतिहास में छत्तीसगढ़ के वे पहले निर्वाचित कांग्रेसी मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं, और राज्य में अपनी पार्टी को ऐतिहासिक, और अविश्वसनीय बहुमत दिलाने का सेहरा उनके सिर बंधा है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस में मुख्यमंत्री के लायक राजनीतिक कदकाठी के चार दिग्गज आखिरी पल तक कांग्रेस हाईकमान के सामने एक मुश्किल पसंद खड़ी कर चुके  थे,लेकिन बिना किसी बाहरी तनाव के, बंद कमरे में इन चारों ने राहुल गांधी, और शायद सोनिया गांधी,के साथ बैठकर प्रदेश की लीडरशिप का यह मुद्दा सुलझाया जो कि छोटी बात नहीं थी। इस राज्य में पन्द्रह बरस का विपक्षी बनवास झेलने के बाद भूपेश बघेल ने पिछले पांच बरस की अनथक लड़ाई से कांग्रेस को ऐसी फतह तक पहुंचाया, और संघर्ष की वजह से अगर किसी को यह कुर्सी मिलनी थी, तो इसी जगह हमने तीन-चार दिन पहले लिखा था कि भूपेश बघेल उसके एक सबसे बड़े हकदार हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी राज्य बनने से लेकर अब तक लगातार तरह-तरह की भीतरी साजिशों, और भीतरघातों को झेलते आ रही थी, और उसका जिस तरह का सामना भूपेश बघेल ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद किया था, वह अभूतपूर्व था, और उसी ने कांग्रेस को आज इस दर्जे की, इस कद की जीत तक पहुंचाया है। भूपेश बघेल प्रदेश की पहली कांग्रेस सरकार में जोगी के साथ मंत्री तो रहे, लेकिन जोगी ने कभी उन्हें उनका जायज हक नहीं दिया, सम्मान नहीं दिया, और वे सरकार के भीतर भी एक किस्म से विपक्ष जैसी तकलीफ झेलते रहे। और फिर बाद के पन्द्रह बरस तो सचमुच का विपक्ष तो था ही।
कांग्रेस में भूपेश बघेल अपने जिस आक्रामक तेवर के साथ विपक्ष की राजनीति करते रहे, एक हारी और थकी हुई पार्टी को खड़ा करते रहे, उसे जोगीमुक्त करते रहे, उसकी वजह से उनका एक दमदार व्यक्तित्व पार्टी और प्रदेश के सामने अच्छी तरह स्थापित हुआ। इसी कॉलम में हमने पिछले बरसों में आधा दर्जन से अधिक बार यह लिखा था कि प्रदेश में भूपेश बघेल कांग्रेस को जिस तरह से चला रहे हैं, उस तरह देश में भी कांग्रेस पार्टी नहीं चल रही है, और प्रदेश कांग्रेस की विपक्षी भूमिका कांग्रेस की राष्ट्रीय विपक्षी भूमिका के मुकाबले अधिक दमदार बनी हुई थी। उन्होंने इतने पूरे बरसों में बहुत ताकतवर मुख्यमंत्री रहे डॉ. रमन सिंह के साथ किसी तरह का कोई समझौता नहीं किया, और भाजपा सरकार के तमाम कामकाज पर एक बहुत तेज-तर्रार विपक्षी नेता का काम किया। सरकार की तरफ से भूपेश बघेल के पारिवारिक या निजी जमीन-जायदाद के मामलों पर उनको घेरने की कोशिशें लगातार हुईं, लेकिन पल भर को भी वे कमजोर पड़ते नहीं दिखे। अजीत जोगी से किसी भी तरह का तालमेल न रखने से लेकर बिना बसपा-गठबंधन चुनाव में जाने जैसे उनके तमाम फैसलों पर कांग्रेस के ही कई नेता संदेह रखते थे, और जीत के लिए इन बातों को जरूरी बताते थे। लेकिन भूपेश बघेल अकेले अड़े रहे, और उन्होंने पल भर के लिए भी जोगी की मदद के बारे में नहीं सोचा, और आज जब सारे नतीजे सामने हैं, तो भूपेश का अंदाज, उनकी रणनीति सब सही साबित होते हैं।
अब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के रूप में भूपेश बघेल के सामने चुनौतियां एकदम ही अलग होंगी। विपक्षी लड़ाकू तेवर की अब न जरूरत है, और न ही गुंजाइश। दूसरी तरफ उनका मंत्रिमंडल और कांग्रेस का पार्टी संगठन ऐसे बड़े-बड़े और दिग्गज नेताओं से भरा रहेगा जो कि उम्र और तजुर्बे में उनसे आगे हो सकते हैं, लेकिन कामयाबी में उनसे आगे कोई नहीं रहेगा। पुरानी कही हुई बात है कि सफलता से बहस नहीं होती, इसलिए वे सरकार और पार्टी में सबसे अधिक वजन रखेंगे, और न सिर्फ छत्तीसगढ़ में, न सिर्फ कांग्रेस में, बल्कि दूसरे प्रदेशों और दूसरी पार्टियों में भी मुख्यमंत्री ही सत्तारूढ़ पार्टी के अघोषित मुखिया रहते हैं, और इसलिए छत्तीसगढ़ में उन्हें अधिक दिक्कत नहीं होगी। कुछ महीनों के बाद आने वाले लोकसभा चुनावों में उनका पहला इम्तिहान होगा, और उन्हें आज रात से ही कॉपी-किताब और स्लेट-पट्टी लेकर इस इम्तिहान की तैयारी शुरू करनी पड़ेगी। इस तैयारी की ही एक कड़ी सरकार के ढांचे को अपने मकसद और अपनी मर्जी के मुताबिक बनाने से शुरू होगी। डेढ़ दशक के निरंतर भाजपा-रमन राज में अधिकारियों की जगह और उनका रूख सब कुछ एक तरीके से चले आ रहा था, अब एकदम से जो फेरबदल होगा, वह एक बड़ा जटिल फैसला रहेगा। लेकिन दिग्विजय सिंह के साथ मंत्री के रूप में काम कर चुके भूपेश बघेल को सरकार में विभाग चलाने का, और दिग्विजय के अंदाज में संगठन चलाने का काफी तजुर्बा रहा है जो कि इन आने वाले बरसों में उनके बहुत काम आएगा। उनके साथ मंत्रिमंडल में और संगठन में जो लोग रहेंगे, उनमें भी दिग्विजय के साथी रहे लोगों की बहुतायत रहेगी, इसलिए वे एक सरीखी संस्कृति के आदी लोग रहेंगे।
लोकसभा चुनाव में राज्य की ग्यारह सीटों पर कांग्रेस को खड़ा करने की एक पहाड़ सी जिम्मेदारी उनके सामने रहेगी क्योंकि आज इनमें से कुल एक सीट पर निर्वाचित कांग्रेस सांसद ताम्रध्वज साहू हैं, बाकी सारी सीटें भाजपा के कब्जे में हैं। इस नौबत को बदलना आसान नहीं रहेगा, लेकिन उससे जरा भी कम उम्मीद राहुल गांधी की नहीं रहेगी क्योंकि उनका भविष्य इन्हीं सीटों से तय होगा। भूपेश बघेल ने डेढ़ दशक की विपन्नता झेली हुई पार्टी को भी इस विधानसभा चुनाव में अभूतपूर्व संपन्नता से चुनाव लडऩे वाली भाजपा के मुकाबले जिस तरह कामयाब किया, उन्हें लोकसभा चुनाव लडऩे में तो दिक्कत नहीं होगी, लेकिन सरकारी मोर्चे पर खासी दिक्कत आने के आसार हैं। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में जितने वायदे किए हैं, उनको पूरा करने में पहले बरस में बीस हजार करोड़ रूपए अतिरिक्त लगने का एक अंदाज है। इसका खासा हिस्सा लोकसभा चुनाव के पहले कर्जमाफी में, बकाया धान बोनस में, और धान के बढ़े रेट में लगेगा।  यह दिक्कत छोटी नहीं रहेगी, लेकिन अगर सरकार मौजूदा भ्रष्टाचार को घटा सकेगी, तो प्रदेश के बजट में इतनी बचत हो भी सकती है। यह पूरा बोझ बजट का बीस फीसदी ही होगा, और अभी तक का भ्रष्टाचार इससे कम भी नहीं रहा होगा।
भूपेश बघेल और कांग्रेस पार्टी के सामने एक बड़ी चुनौती यह भी रहेगी कि पार्टी के अंधाधुंध जीतकर आए विधायकों को उनकी उम्मीदों, उनके महत्व, और उनकी क्षमता के मुताबिक ओहदों पर रखना, और फिर उनसे प्रदेश की उम्मीदें पूरी करवाना। प्रदेश कांग्रेस में बराबरी के वजन के इतने नेता हैं कि उनमें आपस में तनातनी भी हो सकती है, और बरसों बाद सत्ता में आने पर उनके बीच कई किस्म का मुकाबला भी हो सकता है। इसलिए मुख्यमंत्री के रूप में भूपेश बघेल का काम न आसान होगा, और न असंभव भी होगा। वे एक कामयाब मुख्यमंत्री बनने की तमाम संभावनाएं रखते हैं, और जो प्रदेश अध्यक्ष अपनी पार्टी को इस तरह आसमान पर ले जाकर बिठा सकता है, उसमें कोई तो बात है ही। यह राज्य नोटबंदी-जीएसटी से भी थका हुआ है, पिछली भाजपा सरकार के भारी भ्रष्टाचार से भी थका हुआ है, मंत्रियों और विधायकों की बददिमागी से भी थका हुआ है, अफसरों से लेकर निचली सरकारी मशीनरी के भ्रष्टाचार से भी थका हुआ है। भूपेश बघेल के सामने ये तमाम बातें एक ऐसी फेहरिस्त की तरह रहेंगी कि उनकी सरकार और उनकी पार्टी को क्या-क्या नहीं करना है। हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले बरस छत्तीसगढ़ की बेहतरी के होंगे, और जिन बातों की वजह से छत्तीसगढ़ से भाजपा मटियामेट हुई है, उन बातों को ध्यान में रखते हुए अगली सरकार अपनी अलग और नई कल्पनाशीलता से काम करेगी, और पांच महीनों में ही लोगों के सामने एक ऐसा चेहरा रख सकेगी जिसकी वजह से राहुल गांधी को इस राज्य से लोकसभा की सीटें मिलें।
   - सुनील कुमार 
  विशेष संपादकीय
दैनिक 'छत्तीसगढ़' 16 दिसंबर


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