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खुद के अज्ञान की नुमाइश और अपनी बदनीयत का हलफनामा

छत्तीसगढ़ में सरकार बदली तो राजनीति और सरकार में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के बीच जरा-जरा सी बात को लेकर लोग तेजी से बड़े-बड़े नतीजे निकालने लगे हैं। किस नेता या पार्टी का भविष्य खत्म हो गया है, वहां से लेकर लोग ऐसे दावे भी करने लगे हैं कि कौन पन्द्रह बरस तक छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री रहेगा, या कौन पन्द्रह बरस तक विपक्ष में रहेगा। जब कांग्रेस पार्टी को मुख्यमंत्री चुनने में दो-तीन दिन लगे, तो लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखना चालू किया कि कांग्रेस की लीडरशिप इतनी कमजोर है कि एक राज्य का मुख्यमंत्री नहीं चुन पा रही है। मुख्यमंत्री बिना किसी विवाद के काम सम्हाल चुके, तो फिर लोगों ने यह लिखना और बोलना शुरू किया कि कई दिनों में मंत्रिमंडल तय नहीं हो पाया। अब कल जब पूरा मंत्रिमंडल बन गया तो लोगों ने लीडरशिप की कमजोरी साबित करने को एक नया तर्क ढूंढ लिया कि विभागों का बंटवारा तय नहीं हो पाया। आजकल में यह हो जाएगा तो लोगों को निगम-मंडलों में कांग्रेस नेताओं की नियुक्ति में देर होती लगेगी। और जब कांग्रेस सरकार का यह काम पूरा हो चुका रहेगा तब लोगों का ध्यान जाएगा कि भाजपा ने अब तक नेता प्रतिपक्ष क्यों नहीं चुना है। दरअसल लोगों की याददाश्त तकरीबन जीरो रहती है, उनकी जानकारी बहुत हद तक अधूरी रहती है, तर्क की उनकी क्षमता बड़ी सीमित रहती है, और न्याय की उनकी भावना बड़ी कमजोर रहती है। लेकिन किसी अटकल या नतीजे तक पहुंचने की उनकी हसरत बेपनाह रहती है, और वह सोशल मीडिया की मेहरबानी से सिर चढ़कर बोलती है। 
लोकतंत्र में हर किस्म की आजादी रहती है, और रहनी भी चाहिए। इसका भरपूर इस्तेमाल करते हुए लोग मनमानी बातों को लिखते हैं, और हसरतों को हकीकत की तरह पेश करते हैं। किसी एक अज्ञानी की बातों पर सिर हिलाने वाले लोग भी उतने ही उत्साह से मौजूद रहते हैं जितने उत्साह से किसी धार्मिक पाठ के दौरान सिर हिलाने वाले और हामी भरने वाले सामने मौजूद रहते हैं। सोशल मीडिया में एक तरफ जहां लोगों को अपनी सोच को सामने रखने का अभूतपूर्व और असीमित मौका दिया है, वहीं सोशल मीडिया ने सोच के नाम पर शौच को सजाकर पेश करने का मौका भी दिया है, और इसका भरपूर इस्तेमाल भी किया जा रहा है। लोग इस पर जितनी मोहब्बत की बातें करते हैं, उससे कई गुना अधिक नफरत की बातें करते हैं, और नफरत में लोगों को बांधकर रखने की अपार ताकत भी होती है। मोहब्बत की बातों की पालकी ढोने को चार लोग नसीब नहीं होते, और वहीं अगर मोहब्बत की अर्थी निकालकर उस पर नफरत को सजाकर ले जाएं, तो चालीस लोग पल भर में जुट जाएं। ऐसे ही लोग पुरानी मिसालों, पुरानी परंपराओं को याद रखे बिना, पुराने तजुर्बों के बारे में सोचे बिना मनमानी बातों को निष्कर्ष की तरह लिखते चलते हैं। छत्तीसगढ़ के मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण में तीन विधायक नहीं आए, और चार नाराज हैं, तो इससे सरकार डांवाडोल हो गई, ऐसा सोचने और लिखने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि जब यह राज्य बना तब महज नेता प्रतिपक्ष चुनने के लिए भाजपा दफ्तर के भीतर छत्तीसगढ़ के एक सबसे बड़े भाजपा नेता की कार को जला दिया गया था, और दिल्ली से भेजे गए पार्टी पर्यवेक्षक नरेन्द्र मोदी पर इतने पत्थर चलाए गए थे कि एक कमरे में छुपकर, टेबिल के नीचे बैठकर उन्हें बचना पड़ा था। लेकिन उसके बाद वही पार्टी सत्ता में आई और सभी खेमों के लोग मिलकर पन्द्रह बरस सरकार में रहे। इसलिए छोटी-छोटी राजनीतिक हलचलों पर बड़ी-बड़ी अटकलें लगाना, और बरसों बाद तक को लेकर भविष्यवाणियां करना लोगों की भड़ास तो निकालती है, लेकिन इसे अधिक वजन देकर लोगों को अपना वक्त बर्बाद नहीं करना चाहिए। 
सोशल मीडिया ने लोगों को अपने मन की बातें कहने का एक अभूतपूर्व मौका भी दिया है, और इसका इस्तेमाल करके लोगों को ऐसी वैचारिक बहस छेडऩी चाहिए जिससे कि उनकी अपनी विचारधारा की इज्जत बढ़ सके, उनकी पार्टी और उनकी खुद की इज्जत बढ़ सके। सोशल मीडिया पर झूठ, अफवाह, और घटिया बातों को लिखकर लोग अपनी खुद की साख चौपट करने का काम अधिक आसानी से कर सकते हैं, और अधिक लोग ऐसा ही कर भी रहे हैं। चूंकि जनता के एक हिस्से की जिंदगी में सोशल मीडिया अब बहुत मायने रख रहा है, और इससे गंभीर जनमत भी कुछ हद तक प्रभावित होता ही है, इसलिए यह छोटी सी नसीहत यहां लिखना जरूरी है कि जब लोग पुरानी मिसालों को याद किए बिना बड़ी-बड़ी तोहमतें लिखते हैं, तो वे दूसरों की गलतियों से अधिक अपने खुद के अज्ञान की नुमाइश करते हैं, और बहुत से मामलों में अपनी बदनीयत का हलफनामा भी देते हैं। 

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