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[TODAY छत्तीसगढ़] / देश-विदेश के पक्षियों समेत 50 से अधिक प्रजातियों के पक्षियों को पनाह देने वाला "कोपरा' गांव और उसके आसपास का हिस्सा छत्तीसगढ़ के नक़्शे में भले ही पक्षी विहार के रूप में अपनी अलग पहचान ना बना सका हो लेकिन कोपरा सैकड़ों पक्षी प्रेमियों और छायाकारों की उम्मीद है। बिलासपुर और आस-पास के पक्षी प्रेमी और छायाकारों को कोपरा ने किसी भी मौसम में निराश नहीं किया है। कइयों बार हालात ऐसे भी हुए की जलाशय पूरी तरह सूख गया लेकिन वहां पहुँचने  वालों की उम्मीद कभी टूटी नहीं। मौसम की मिज़ाजी बदल गई है, शीतकाल के प्रवासी-अप्रवासी पक्षी एक बार फिर कैमरे से सहज होने की कोशिश में लगे हैं। 
बिलासपुर जिला मुख्यालय से करीब 13 किलोमीटर दूर सकरी-पेंड्रीडीह बाईपास पर स्थित 'कोपरा' जलाशय एक बार फिर देश-विदेश के पक्षियों की अस्थाई शरणस्थली बन चुका है। मौसम के बदलते ही जलाशय में प्रवासी-अप्रवासी पक्षी जुटने लगे हैं जबकि सिंचाई के लिए छोड़े गए पानी के बाद जलाशय में अब केवल 40 फीसदी ही पानी बचा है। शीतकालीन पक्षियों के पहुँचने का सिलसिला वैसे तो नवम्बर प्रारम्भ होते ही शुरू हो गया था लेकिन अभी बड़ी संख्या और विभिन्न प्रजाति के पक्षियों का कोपरा में आना बाकी है। उम्मीद है कोपरा जल्द ही एक बार फिर असंख्य और विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों के कलरव से आबाद होगा। कोपरा में फिलहाल प्रवासी पक्षियों में नार्दन पिनटेल जो अपने आप में बेहद खूबसूरत, खासकर नर पक्षी है वो सैकड़ों की संख्या में आ चुके हैं। वहीँ हिंदी साहित्य में वर्णित सुरखाब जिसे पक्षी प्रेमी रूडी सेल्ङ्ग के नाम से जानते हैं वो भी अच्छी-खासी तादात में पहुँच चुकी है। पक्षी प्रेमियों के आकर्षण का केंद्र बने सुरख़ाब के बारे में किवदंती है की वे जोड़े में रहते हैं और किसी एक की मृत्यु के बाद अकेले ही रहना पसंद करते हैं। इसके अलावा रेड क्रस्टेड पोचर्ड, ओस्प्रे, गढ़वाल, यूरेशियन कूट, ग्रे और परपल हेरॉन, ब्लेक हेडेड आइबिस, ग्रेट कारमोरेंट, लिटिल ग्रेब, प्लोवर  समेत अन्य प्रजाति के सैकड़ों पक्षी स्थानीय प्रवास पर कोपरा पहुंचे है।  ओस्प्रे  [Osprey] एक ऐसा बाज जो मछली का शिकार करता है, मछली पकड़ने में माहिर ये बाज पिछले साल से कोपरा में देखा जा रहा है।
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