[TODAY छत्तीसगढ़ ] / सत्यप्रकाश पांडेय / छत्तीसगढ़ की अनोखी संस्कृति हमेशा से लोगों को अचंभित करने के साथ-साथ आकर्षित करने वाली रही है । ऐसी ही एक अनोखी संस्कृति और परम्परा राज्य के बलौदा बाजार जिले में स्थित ग्राम बोरसी में देखने को मिलती है । यहां विजयादशमी यानि दशहरा देश के दूसरे प्रान्तों से एकदम अलग मनाया जाता है । यहां विजयादशमी पर रावण जलता नही बल्कि पूजा जाता है । छत्तीसगढ़ में और भी कई स्थान ऐसे हैं जहां ये उत्सव बेहद अलग अंदाज में मनाया जाता है ।
भाटापारा विधानसभा का हिस्सा ग्राम बोरसी अपनी अनोखी परंपरा के लिए अलग पहचान रखता है । यहां विजयादशमी पर ग्रामीण रावण का दहन नही बल्कि उसकी पूजा करते है । गाँव में रावण की मूर्ति बनी हुई है जिसके समक्ष ग्रामीण बड़ी ही आस्था से शीश नवाकर सुख समृद्धि का आशीर्वाद मांगते है ।
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| ग्राम बोरसी [बलौदा बाज़ार] में रावण की मूर्ति जिसे बड़ी ही आस्था के साथ पूजा जाता है। |
राजधानी रायपुर से लगे धरसींवा क्षेत्र के ग्राम मोहदी में रावण ग्रामीणों के लिए आस्था का प्रतीक बना हुआ है। जहाँ रावण की मूर्ति की विशेष पूजा-अर्चना कर गाँव में अमन-चैन की मन्नतें माँगी जाती है। करीब आठ दशक से ज्यादा का समय बीत गया, ग्रामीण सामूहिक रूप से रावण की पूजा करते आ रहें हैं । ग्राम मोहदी के 70 वर्षीय बुजुर्ग दुखुराम साहू ने कहा कि प्रतिवर्ष दशहरा पर्व पर रावण की सामूहिक पूजा की जाती है। उसने जब से होश संभाला है तब से अपने पूर्वजों को भी रावण महाराज की प्रतिमा का पूजन करते और मनौती माँगते ही देखा है। गाँव के अन्य बुजुर्ग सुनहरलाल वर्मा (68) बताते हैं कि रावण प्रतिमा की पूजन से अब तक गाँव में शांति है। संकट के समय गाँव लोग नारियल चढ़ाते हैं और मत्था टेककर मनौती माँगते हैं। रावण महाराज हर मनोकामना पूरी करते हैं। मोहदी में अकोली मार्ग तिराहे पर उत्तर दिशा मुखी रावण प्रतिमा को प्रति वर्ष पेंटिंग की जाती है।
एक और बुजुर्ग की माने तो रावण महाराज उनके हर संकट का निवारण करते हैं। गाँव की महिलाएँ गर्भवती होने पर अपने परिजनों के साथ यहाँ आकर रावण प्रतिमा की पूजा कर सब कुछ ठीक-ठाक होने की कामना करती हैं। यहाँ तक कि राजनीतिक लोग भी चुनाव के समय यहाँ आकर माथा टेकते हैं। नेताओं की मनोकामना पूर्ण होने का प्रमाण वह स्वयं है। इसलिए रावण महाराज की प्रतिमा अटूट श्रद्धा का केन्द्र का बना है।
विजयादशमी के दिन अगर आप छत्तीसगढ़ के मुंगेली ज़िले में दशहरा मना रहे हैं तो यहां आपको रावण जलता नहीं पिटता दिखेगा। यहां मिट्टी के रावण का पुतला बनाकर उसे पीट-पीटकर नष्ट किया जाता है। इस परंपरा के पीछे यहां के लोगों का तर्क ये है कि अहंकार को पीट-पीटकर ही नष्ट किया जाता है। दरअसल, मुंगेली के मालगुजार गोवर्धन परिवार के पूर्वजों के द्वारा कई सालों से मिट्टी के रावण को पीटकर विजयादशमी मनाने की परंपरा रही है और आज भी मुंगेली में ये रीवाज़ जारी है। लोग जब रावण को नष्ट कर देते हैं तो रावण की मिट्टी अपने घर ले जाते हैं। मान्यता के अनुसार घर के पूजा स्थान, धान की कोठरी और घर की तिजोरी जैसे स्थानों में रावण की मिट्टी रखने से धन-धान्य में बढ़ोतरी होती है।
इसी तरह छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में भी दशहरे के दिन मिट्टी का रावण बनाया जाता है। मिट्टी के बने रावण की नाभी में रंग डालकर रामलीला के मंचन के बाद मट्टी के रावण को वहीं नष्ट किया जाता है। लेकिन इस अनूठी परंपरा के पीछे तर्क जानकर आप कहेंगे कि दशहरा मनाओ तो ऐसे। रावण दहन में विस्फोट होने से प्रकृति को नुकसान पहुंचता है साथ ही लकड़ियों का भी बहुत इस्तेमाल होता है।
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