Slider

जो कचरा फेंक रहा वही कहता है कि 'यहां कचरा फेंकना सख्त मना है '

 किसी शायर ने क्या खूब लिखा है - 

" पूछा हाल शहर का तो मुस्कुरा के बोलें, लोग तो जिंदा हैं ज़मीरों का पता नहीं " 

 TODAY छत्तीसगढ़  / सच ही तो है, आज ज़िंदा कौमों में ज़मीरों के जीवित होने का पता लगा पाना बड़ा मुश्किल काम है। पिछले दो दशक में बिलासपुर शहर की तासीर और तक़दीर को बदलता हुआ देखने वाले जानते है कब किसने, किसके लिए, क्यूँ और कैसे शहर की दशा-दिशा बदल दी। सत्ता के गलियारे में चली इशारों की हवा का झोंका जब-जब प्रशासनिक चेहरों पर लगा तब तब बदलाव की एक तख़्ती शहर के किसी छोर में ठोंक दी गई। नगर निगम बिलासपुर आयुक्त के हवाले से लगी ये पट्टिका भी कुछ उसी ओर इशारा करती है।     

ऊपर लगी तस्वीर बिलासपुर शहर के राजकिशोर नगर स्थित छठ घाट इलाके को स्वच्छ रखने की वकालत करती है, साथ ही आदेशित भी करती है कि 'यहाँ कचरा फेंकना मना है, कचरा फेंकते पाए जाने पर दंडात्मक कार्रवाई के साथ-साथ अर्थदंड भी लगाया जाएगा। ' आपको बता दें कि नगर निगम बिलासपुर ने शहर के कइयों ऐसे इलाके हैं जिन्हें कचरे के ढेर में बदल दिया था, छठघाट के पास का इलाका भी उसी भीड़ का हिस्सा है। कुछ साल पहले तक नगर निगम बिलासपुर ने शहर भर के कचरे को अरपा नदी के तट पर भी डाला है। उसका नतीज़ा रहा कि अरपा की जैव विविधता नष्ट हुई, पानी प्रदूषण के मापदंडों को लांघकर बाहर आ गया। चूँकि नगर निगम के पास शहर भर से निकलने वाले करीब 160 टन से अधिक कचरे को नष्ट करने की कोई योजना नहीं थी। नतीजा अरपा नदी तट [तोरवा / छठघाट राजकिशोर नगर ] पर कचरे का पहाड़ लग गया । आलम ये रहा कि प्रदूषित अरपा के पानी का ऑक्सीजन लेबल कम हो गया, पुरे इलाके में हवा के माध्यम से फैले प्रदूषण और दुर्गन्ध ने इलाके में रहने वालों की ज़िंदगी बेहाल कर दी। आपको बता दें कि साल 2015 में पर्यावरण संरक्षण मंडल ने अपनी रिपोर्ट में यहां के पानी को बेहद प्रदूषित घोषित कर दिया था । 

कभी बिलासपुर शहर की सबसे बड़ी समस्या साफ सफाई की हुआ करती थी, अब तुलनात्मक बहुत कम है। मगर आज भी कइयों इलाकों में लोगों को प्रतिदिन कचरा नहीं उठने की शिकायत रहती है। बिलासपुर के तोरवा पुल के पास और स्मृति वन के पीछे कचरे का जो पहाड़ नज़र आता रहा है उस पहाड़ के निर्माण में किसी और का नहीं बल्कि नगर निगम का ही हाथ रहा है। अब उसी इलाके में नगर आयुक्त के आदेशानुसार सरकारी फरमान की नुमाईंदगी करती एक काले रंग की तख्ती दिखाई पड़ती है। 'यहाँ कचरा फेंकना सख्त मना है।'  

आपको ये भी बताते चलें की तोरवा पुल के आस-पास और छठघाट के इर्द-गिर्द की सरकारी ज़मीनों पर कुछ कोयला और भू-माफियों की नज़र सालों से रही है। कइयों बार अलग-अलग कार्यक्रम के माध्यम से सरकारी जमीन को हथियाने का खेल चलता रहा, कुछ काबिज़ है और कुछ अब भी वृक्षारोपण के माध्यम से अपनी दावेदारी किये हुए हैं। कुल मिलाकर कचरे की आड़ में कभी सत्ता ने जनता तो कभी सामाजिक ठेकेदार बनकर कोयला और भू-माफियाओं ने शासन-प्रशासन की आँख में कचरा झोंकने की कोशिश की है। खेल बड़ा है, जो शहर की बेहतरी के लिए बोलना नहीं जानते वे खामोशी से देखते रहें और 'यहाँ कचरा ना फेंके' 

© all rights reserved TODAY छत्तीसगढ़ 2018
todaychhattisgarhtcg@gmail.com