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नहीं रहे अमर सिंह ... विवादों के महारथी कभी फिट और हिट थे हर जगह

TODAY छत्तीसगढ़  /  लंबे समय से बीमार चल रहे समाजवादी पार्टी  के वरिष्ठ नेता अमर सिंह का शनिवार को निधन हो गया. उन्होंने 64 साल की उम्र में सिंगापुर में अंतिम सांस ली. अमर सिंह के सियासी सफर में ऊपर चढ़ने और नीचे गिरने की कहानी दो दशकों के दौरान लिखी गई. एक दौर में वो समाजवादी पार्टी के सबसे असरदार नेता थे, उनकी तूती बोलती थी लेकिन हाशिए पर भी डाले जाते रहे. फिर भी समाजवादी पार्टी की कमान अखिलेश के हाथों में जाने के बाद उन्हें सपा से किनारा करना पड़ा. इसके बाद वो धीरे धीरे पूरी तरह महत्वहीन हो चुके थे.

O राजनैतिक उतार-चढ़ाव
कुछ सालों से उनकी गंभीर बीमारी और राजनीतिक रूप से ऊपर-नीचे होने की चर्चाएं चलती रही थीं. समाजवादी पार्टी में आकर उन्हें सियासी ताकत मिली, एक बार निकाला गया. वो वापस लौटे. हालांकि इसके बाद वो फिर ऊपर चढ़ते लगे लेकिन उसके बाद वे हाशिये पर ही रहे. हालांकि पिछले कुछ सालों में समाजवादी पार्टी से अदावत के दिनों में उन्होंने कांग्रेस से लेकर तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी तक से नजदीकी बढ़ाने की कोशिश में जरूर रहे लेकिन हर जगह के दरवाजे उनके लिए करीब करीब बंद रहे.

O कभी मुलायम के खामसखास थे अमर सिंह
एक जमाना था जबकि समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह उन पर बहुत भरोसा करते थे लेकिन पार्टी की बागडोर अखिलेश के हाथों में आने के साथ ही अमर को दूध में मक्खी की तरह बाहर का रास्ता देखना पड़ा. एक जमाना था जब मुलायम उन पर बहुत भरोसा करते थे. उन्हें पार्टी के लिए उपयुक्त माना जाता था. नेटवर्किंग से लेकर तमाम अहम जिम्मेदारियों का दारोमदार उनके कंधों पर था.

O ऐसे बढ़ा प्रभाव
90 के दशक के आखिर में अमर सिंह को उत्तर प्रदेश में शुगर लॉबी का असरदार आदमी माना जाता था. इसी सिलसिले में उनकी तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम से करीबी बढ़ी. वर्ष 1996 के आसपास वो समाजवादी पार्टी में शामिल हुए. फिर जल्दी ही पार्टी के महासचिव बना दिये गए. वो ताकतवर होते गए. कहा जाने लगा था कि मुलायम कोई भी काम बगैर उनके पूछे नहीं करते थे.

O कहा जाता था अमर के लिए कुछ भी असंभव नहीं
एक समय ये भी कहा जाने लगा था कि राजनीति में अमर सिंह के लिए कोई भी काम असंभव नहीं. 2008 में भारत की न्यूक्लियर डील के दौरान वामपंथी दलों ने समर्थन वापस लेकर मनमोहन सिंह सरकार को अल्पमत में ला दिया. तब अमर सिंह ने ही समाजवादी सांसदों के साथ साथ कई निर्दलीय सांसदों को भी सरकार के पाले में ला खड़ा किया. संसद में नोटों की गड्ढी लहराने का मामला भी सामने आया. इस मामले में अमर सिंह को तिहाड़ जेल भी जाना पड़ा.

O कार्यशैली से नाराज हुए विरोधी
ये भी सही है कि अमर सिंह की कार्यशैली ने पार्टी में ही ताकतवर लोगों को नाराज कर दिया. एक समय में समाजवादी पार्टी में अमर सिंह की हैसियत ऐसी थी कि उनके चलते आज़म ख़ान, बेनी प्रसाद वर्मा जैसे मुलायम के नज़दीकी नाराज़ होकर पार्टी छोड़ गए. नतीजा ये हुआ कि मुलायम को उनके खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी. वर्ष 2010 में पार्टी से निकाल दिया गया.

O अमर का करिश्मा
समाजवादी पार्टी को आधुनिक और चमक दमक वाली राजनीतिक पार्टी में तब्दील करने वाले अमर सिंह ही थे. चाहे वो जया प्रदा को सांसद बनाना हो, या फिर जया बच्चन को राज्य सभा में लाना हो, या फिर संजय दत्त को पार्टी में शामिल करवाना रहा हो, या उत्तर प्रदेश के लिए शीर्ष कारोबारियों को एक मंच पर लाना हो, ये सब अमर सिंह का ही करिश्मा था.

O कांग्रेस में जाने की कोशिश
हालांकि समाजवादी पार्टी से वर्ष 2010 में निकाले जाने के बाद के दिन उनके लिए मुश्किल भरे रहे. उन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप थे. जिसके चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा. तब अमर सिंह ने कांग्रेस में जाने की कोशिश की. उन्होंने तब राहुल गांधी से लेकर सोनिया की काफी तारीफ की लेकिन कांग्रेस के दरवाजे नहीं खुले. उन्होंने निराशा में राजनीति से संन्यास लेने की भी घोषणा की.

O खुद की पार्टी भी बनाई
वर्ष 2012 में अमर सिंह ने अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी बनाई. इसका नाम था राष्ट्रीय लोक मंच. उन्होंने अपनी नई पार्टी के साथ 2012 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में शिरकत की लेकिन उनके तकरीबन सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई. 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने राष्ट्रीय लोक दल का साथ पकड़ा. लेकिन लोकसभा चुनावों में बुरी तरह हारे. इस बीच उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने की कोशिश की लेकिन दाल नहीं गली. आख़िर में उन्हें ठिकाना उसी पार्टी में मिला जिसने उन्हें छह साल पहले निकाला था.

O छह साल बाद समाजवादी पार्टी में फिर लौटे
वर्ष 2016 में समाजवादी पार्टी में वो फिर लौटे. राज्य सभा के लिए चुने गये. लेकिन जल्दी ही फिर उनके लिए मुश्किल भरे दिन आने वाले थे. एक साल बाद बाद ही समाजवादी पार्टी में जबरदस्त उठापटक के बाद अखिलेश पार्टी के सुप्रीमो बन गए. अमर सिंह फिर किनारे हो गए.

O फिर नहीं लौट सका उनका प्रभाव
हालांकि उन्होंने तब अखिलेश के खिलाफ जमकर बयानबाजी की. फिर नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के समर्थन में जमकर बयान दिए. उन्होंने इस दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अपनी पैतृक संपत्ति दान में देने की भी घोषणा की. शायद अमर मानकर चल रहे थे कि भाजपा में उनका प्रवेश हो पाएगा लेकिन ऐसा नहीं हो सका. पिछले दो सालों से अमर सिंह करीब करीब भारतीय राजनीति से नदारद हो चुके हैं.

O उनका वो टेप
लेकिन ये सही है कि दो दशक का अमर सिंह का सियासी सफर हमेशा विवादों के साथ ही चलता रहा. कुछ साल पहले मीडिया के सामने वो टेप भी आया जिसने अमर सिंह को और विवादों में ला दिया.

O अमिताभ बच्चन को उबारा था
अमर सिंह बॉलीवुड के स्टार कलाकारों के साथ उठते बैठते थे. देश के शीर्षस्थ कारोबारियों के साथ नज़र आते थे. बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन से उनके घरेलू संबंध थे. हालांकि बाद में बच्चन परिवार के साथ जब उनकी खटकी तो उन्होंने बच्चन परिवार पर हमले भी किए. हालांकि ये बात सही है कि जिन दिनों अमिताभ बच्चन की एबीसीएल कंपनी कर्जे में डूब गई थी. वो अपने करियर के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे थे. तब अमर सिंह उनकी मदद के लिए आगे आए थे. बॉलीवुड, कारोबार और सियासत के कॉकटेल कहे जाने वाले अमर सिंह पर परिवारों को तोड़ने का भी आरोप लगा. समाजवादी पार्टी में जब गृह कलह की स्थिति आई तो उन्हें बार-बार बाहरी व्यक्ति कहा गया था.
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