देश के एक प्रमुख उद्योगपति राहुल बजाज ने एक मीडिया संस्थान के कार्यक्रम में गृहमंत्री अमित शाह, और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण की मौजूदगी में माईक पर सार्वजनिक रूप से जब कहा कि देश के उद्योगपतियों में डर का माहौल है और वे केन्द्र सरकार से सवाल करने का हौसला नहीं जुटा पाते तो देश के मीडिया ने बड़े पैमाने पर उनके इस हौसले की तारीफ की। राहुल बजाज ने यह भी कहा कि देश में जिस तरह लिंचिंग हो रही है, जिस तरह से प्रज्ञा ठाकुर गोडसे की तारीफ में बयान दे रही है, वह भी ठीक नहीं है। उनकी कही बातें बहुत खुलासे से छपी हैं, इसलिए उन सबको यहां दुहराने का कोई मतलब नहीं है, लेकिन राहुल बजाज के इस हौसले की सोशल मीडिया पर भी जमकर तारीफ हो रही है। इस तारीफ के सिलसिले में जिस तरह से लोगों ने उनके परिवार की तारीफ की है, उससे पता लगता है कि संपन्नता ही सब कुछ नहीं होती, किसी औद्योगिक घराने का आकार ही सब कुछ नहीं होता, एक सामाजिक साख भी होती है जो कि महत्वपूर्ण होती है। राहुल बजाज के परिवार के जमनालाल बजाज महात्मा गांधी के साथ लंबे समय तक जुड़े रहे, वे अंग्रेजों के वक्त भी उद्योगपति थे, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने में पीछे नहीं हटे, गांधी का पूरा साथ दिया, और देश के लिए उन्होंने जितने किस्म के त्याग किए, उन सबको लोग सोशल मीडिया पर बड़े खुलासे से लिख रहे हैं। किसी उद्योगपति की तारीफ में लोग इस तरह उतरें, और खासकर ऐसे लोग उतरें जो कि आमतौर पर वामपंथी विचारधारा के हैं, या उदार पूंजीवाद के विरोधी हैं, तो यह बात भी सोचने पर मजबूर करती हैं। लोगों ने जमनालाल बजाज की तारीफ करते हुए, उनके सामाजिक सरोकार की तारीफ करते हुए जितनी यादें ताजा की हैं, और ऐसे ही सामाजिक योगदान के लिए टाटा और बिड़ला को भी याद किया है, उन्हें दूसरे कारोबारियों से अलग गिना है, वह भी सोचने लायक बात है।
लेकिन इसके साथ-साथ अभी-अभी दो और बातें हुई हैं। लोकप्रिय टीवी कार्यक्रम केबीसी में अमिताभ बच्चन के सामने बैठीं विप्रो कंपनी के सामाजिक संस्थान, विप्रो फाऊंडेशन की सुधा मूर्ति ने बताया कि वे टाटा की एक कंपनी में काम करती थीं, और जब वे नौकरी छोड़ रही थी तो जेआरडी टाटा ने उनसे वजह पूछी, जब उन्होंने बताया कि उनके पति नारायण मूर्ति एक नई कंपनी शुरू कर रहे हैं और उनके साथ रहने के लिए उन्हें दूसरे शहर जाना पड़ रहा है, तो जेआरडी टाटा ने यह नसीहत दी थी कि जब उनकी कंपनी खूब कमा ले, तो समाज को वापिस देना शुरू कर दे। उन्होंने सुधा मूर्ति को सुझाया था कि उद्योगपति अपने कारोबार के महज ट्रस्टी रहें, वे जिस समाज से कमाते हैं, उसी समाज को उन्हें वापिस करना चाहिए। सुधा मूर्ति ने यह बात याद रखी, और आज उनके पति की कंपनी अपनी कमाई का एक बहुत बड़ा हिस्सा समाजसेवा मेें लगा रही है, और पति-पत्नी दोनों एक बहुत ही किफायत की जिंदगी जीते हैं, देश के सबसे संपन्न परिवारों में से एक होने के बाद भी सुधा मूर्ति ने पूरी जिंदगी में मेकअप तक नहीं किया, गहने नहीं पहने, और पूरी सादगी से रहती हैं। उनके पति भी इस बात के लिए जाने जाते हैं कि वे विमान में इकॉनॉमी क्लास में सफर करते हैं, और अपनी दौलत को समाजसेवा में लगाते हैं।
इसके साथ-साथ अभी एक खबर और आई है जिसे मिलाकर ही हम आज इस विषय पर यहां लिख रहे हैं। कश्मीर के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक अब गोवा के राज्यपाल हैं, और उन्होंने वहां पर अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के उद्घाटन के मौके पर मंच से, माईक पर, कैमरों के सामने खुलकर कहा कि इस देश में ऐसे दौलतमंद लोग हैं जो अपने लिए 14-14 मंजिलों का मकान बनाते हैं जिनमें एक मंजिल पर नौकर, और एक मंजिल पर कुत्ते रहते हैं, लेकिन वे देश के लिए शहीद होने वाले सैनिकों के कल्याण के लिए एक पैसा भी नहीं देंते। राज्यपाल ने खुलकर बड़ी तेजाबी जुबान में कहा कि ऐसे अरबपतियों को वे सड़े हुए आलुओं के बोरे से अधिक कुछ नहीं मानते जिनका कोई सामाजिक योगदान नहीं रहता। उनके भाषण का वीडियो चारों तरफ फैल रहा है, और यह जाहिर है कि 14 मंजिला मकान से उनका साफ-साफ इशारा मुकेश अंबानी की तरफ था।
आज देश में उद्योगपतियों को लेकर जिस तरह की नफरत फैली हुई है, वे जितने बड़े पैमाने की बैंक जालसाजी में लगे हुए हैं, जनता को लूट रहे हैं, खदानों के लिए आदिवासियों को बेदखल कर रहे, जंगलों को खत्म कर रहे हैं, पर्यावरण का नाश कर रहे हैं, वैसे में देश कुछ पुराने उद्योगपतियों को भी याद कर रहा है जिन्होंने कमाई का एक बड़ा हिस्सा समाज के लिए लगाया था, और आज के कुछ बड़े उद्योगपतियों को भी याद कर रहा है जो अपनी आधी कमाई या आधी दौलत समाज के लिए लगा रहे हैं।
[ दैनिक 'छत्तीसगढ़' का संपादकीय 02 दिसंबर ]