छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार के एक बरस पूरे होने पर एक सीमित जगह में इस कार्यकाल पर लिखना थोड़ा मुश्किल इसलिए है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरकारी काम में ओवरटाईम करते दिखते हैं, और पन्द्रह बरस के विपक्षी तेवरों को उन्होंने ज्यों का त्यों बरकरार रखा है, और अब हमले करने को राज्य सरकार नहीं है, तो उन्होंने मोदी सरकार, भाजपा, और आरएसएस पर सबसे तीखे हमले करने वाले कांगे्रसी मुख्यमंत्री का खिताब बड़ी मेहनत से कमा लिया है। लेकिन यह सालगिरह पूरी कांगे्रस सरकार की है, और मुख्यमंत्री से परे भी राज्य स्तर पर समूचे कामकाज का एक मूल्यांकन किया ही जाना चाहिए।
भूपेश सरकार ने चुनावी घोषणापत्र के मुताबिक धान की खरीदी का एक राष्ट्रीय रिकॉर्ड-दाम बनाकर, और किसानीकर्जमाफी करके प्रदेश में एक ऐसा माहौल खड़ा किया है जिसके चलते मुख्यमंत्री अभी दो दिन पहले यह दावा करते दिखे कि इस एक बरस में प्रदेश में एक भी किसान ने आत्महत्या नहीं की है। इसके साथ-साथ एक बात जो उन्होंने बार-बार दुहराई है कि छत्तीसगढ़ में कर्जमाफी, फसल के बढ़े हुए दाम, धान बोनस, और वनोपज के अधिक दामों से अर्थव्यवस्था पटरी पर है, और बाजार में मंदी का असर इस प्रदेश में नहीं हुआ है। यह सरकार की एक बड़ी लागत से हुआ है। किसानकर्जमाफी से लेकर फसल के बढ़े दाम तक सरकार पर जो बोझ पड़ा है उसका आगे चलकर क्या असर होगा यह तो वक्त बताएगा, लेकिन यह बात भी जगजाहिर रही है कि राज्य में रमन सरकार भी विधानसभा के पहले यही करनी चाहती थी, लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने इसकी साफ मनाही कर दी थी। भूपेश बघेल प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष की हैसियत से पिछले बरसों में पार्टी संगठन को जिस मजबूती से चला रहे थे, और उन्होंने विधानसभा चुनाव का पूरा अभियान जितने योजनाबद्ध और संगठित तरीके से चलाया था, उससे वे देश में किसी भी राज्य के चुनाव में हाल के बरसों का कांगे्रस का सबसे कामयाब नतीजा ला सके थे। उसका असर यह हुआ कि वे छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री बनने के बाद से राजनीतिक, सामाजिक, सरकार, और संगठन के मोर्चो पर एक बेधड़क नेता की तरह काम कर रहे हैं, और शपथ के पहले उनके सामने जो बड़ी चुनौतियां थीं वे धीरे-धीरे खत्म हो गई दिखती हैं।
यह एक बरस छत्तीसगढ़ में खालिस छत्तिसगढ़ी जुबान, संस्कृति, और रीति-रिवाज का साल रहा, और भूपेश बघेल ने व्यक्तिगत रूप से छत्तिसगढ़ी जनजीवन के इन पहलुओं को इतना मजबूत किया, जितना कि पहले कभी नहीं किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि जब पूरा देश एक बहुत ही आक्रामक हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद में झुलस रहा है, जिसका निशाना देश के दूसरे तबके हैं, तब छत्तीसगढ़ का यह सांस्कृतिक-क्षेत्रवाद किसी दूसरे प्रदेश के खिलाफ नहीं है, अपने पूरे इलाके को लेकर है, और इसने प्रदेश को हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद का नाम लिए बिना उसके मुकाबले आत्मगौरव का एक बड़ा मुद्दा दिया है। यह मुद्दा लोकसभा चुनाव में मोदी की सुनामी के सामने खड़ा नहीं हो पाया, लेकिन वह वक्त तकरीबन पूरे देश के एक सैलाब में बह जाने का था।
भूपेश बघेल सरकार का यह कार्यकाल बस्तर के नक्सल मोर्चे पर आदिवासियों के साथ हिंसा, हत्या-बलात्कार में कमी के लिए भी गिना जाएगा, और आदिवासियों के मुद्दों पर कुछ नई कोशिशों के शुरू होने के लिए भी। लंबे समय से उलझे हुए जटिल आदिवासी मुद्दे इस एक बरस में सुलझ को नहीं पाए हैं, लेकिन उसकी कार्रवाई शुरू हुई है। आदिवासी इलाकों को अब कम पुलिस-हिंसा झेलनी पड़ रही है, और वनोपज का बेहतर दाम मिल रहा है, कारखानों के लिए ली गई लेकिन इस्तेमाल नहीं हुई जमीन को वापिस पाने की एक उम्मीद भी आदिवासियों में बंधी है। छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों को मिले बढ़े हुए ओबीसी आरक्षण पर अदालत से चाहे रोक लगी हो, लेकिन वह एक बड़ा राजनीतिक फैसला तो है ही, जो कि आगे की अदालतों में लड़ा जाएगा। लोगों का मानना है कि भूपेश बघेल भाजपा के खिलाफ एक बहुत आक्रामक लड़ाई लडऩे के साथ-साथ किसान, खेतिहर मजदूर, और वनोपज-आश्रित आदिवासियों की जिंदगी को ऊपर लाने का एक न्यूनतम-चुनावी काम कर चुके हैं, और अब वे बाकी के फैसलों में मर्जी की छूट का राजनीतिक-हक रखते हैं।
यह एक साल पिछले सरकार के कुछ नेताओं और कुछ अफसरों पर मामले-मुकदमे का साल भी रहा, और विपक्ष में रहते हुए जो नेता सत्ता पर गंभीर आरोप लगाते हैं, उन्हें सत्ता में आने पर उन आरोपों की जांच करवानी भी चाहिए। यह बात हम देश-प्रदेश के सभी नेताओं और सरकारों को लेकर बोलते आए हैं। भूपेश बघेल ने खुद भी अपने परिवार सहित बहुत सी जांच झेली हैं, और अब वे विपक्ष में रहते अपने लगाए आरोपों की जांच करवा भी रहे हैं। इस एक बरस में मुख्यमंत्री के स्तर पर लिए गए तबादलों के कई फैसले तेजी से बदले गए, और धीरे-धीरे यह सिलसिला काबू में आया है। आने वाले चार बरस प्रदेश में कांगे्रस सरकार को अपने घोषणापत्र के बाकी मुद्दों को लागू करने के लिए मिलने वाले हैं। छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार का पहला साल विधानसभा चुनाव के बाद के लोकसभा चुनाव, और म्युनिसिपल-पंचायत चुनाव से भरा हुआ रहा है, इसलिए सत्तारूढ़ पार्टी और सरकार का ध्यान भी बंटा हुआ रहा है, लेकिन भूपेश सरकार ने पहले साल में घोषणापत्र के प्रमुख और बुनियादी मुद्दों को तेजी से लागू किया है। पन्द्रह बरस के विपक्ष के बाद कांगे्रस सरकार में है, पिछले सरकार के तीन बरस के कार्यकाल में सरकार का ढांचा बहुत जम चुका था, जमा हुआ था, उसमें बड़ा फेरबदल स्वाभाविक ही था, और पहले साल में वह भी सब देखा है। आगे देखना है कि यह सरकार किस ओर, किस रफ्तार से, कितना आगे बढ़ सकती है, बढ़ती है।