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बिजूका बनाने की तैयारी में लगीं रहीं एनसीपी, शिवसेना, कांग्रेस, और चिडिय़ा चुग गई खेत...

आज सुबह-सुबह जब महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडनवीस के फिर मुख्यमंत्री बन जाने की खबर आई, तो लोगों ने बाकी खबर के पहले तारीख देखी कि आज कहीं अप्रैल फूल का दिन तो नहीं है। इसके बाद अजित पवार के उप मुख्यमंत्री बनने की बात पढ़ी, तो शरद पवार को कोसना चालू कर दिया कि उन्होंने शिवसेना और कांगे्रस दोनों को धोखा दे दिया। फिर कुछ घंटे गुजरे और पवार ने यह साफ किया कि भतीजे अजित पवार से न उनकी पार्टी सहमत है, और न ही परिवार, तो लोगों को यह तय करते नहीं बना कि शरद पवार ने देश को रात में धोखा दिया, या अब धोखा दे रहे हैं, या फिर भतीजे से धोखा खाए हुए हैं। जो भी हो, महाराष्ट्र में फिलहाल तो भाजपा के पिछले मुख्यमंत्री फडनवीस मुख्यमंत्री बन चुके हैं, और अब विधानसभा में बहुमत साबित करने का अकेला जरिया उनके पास यही है कि एनसीपी के विधायकों का इतना बहुमत शरद पवार के खिलाफ जाकर अजित पवार का साथ दे कि विधानसभा में विश्वासमत पाया जा सके। आज इस वक्त जो लोग केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को इस एक और कामयाबी के लिए वाहवाही दे रहे हैं, उनका मानना है कि शाह है तो मुमकिन है। 

अब बिना किसी पसंद-नापसंद के महाराष्ट्र की राजनीति को देखें तो आज सुबह के इस शपथग्रहण के पहले तक शिवसेना, एनसीपी, और कांगे्रस का जो गठबंधन आजकल में महाराष्ट्र में सरकार बनाते दिख रहा था, और जिसने औपचारिक रूप से पिछले दिनों में बार-बार इस फैसले की घोषणा भी की थी, वह गठबंधन एक पूरी तरह से अनैतिक और अप्राकृतिक गठबंधन था, ठीक वैसा ही जैसा कि आज सुबह भाजपा-अजित पवार की शक्ल में सत्ता पर आया है। अभी फडनवीस की वह ट्वीट सोशल मीडिया पर तैर ही रही है जिसमें उन्होंने अजित पवार के भ्रष्टाचार के किस्से गिनाते हुए कड़ी कार्रवाई का वायदा किया था। अब पुलिस और हवालाती अगल-बगल की दो कुर्सियों पर बैठे हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह माथे पर धर्मनिपरेक्षता का गुदना गुदाई हुई कांग्रेस पार्टी देश की एक सबसे साम्प्रदायिक पार्टी शिवसेना के साथ भागीदारी को तैयार थी। अब यह तो केंद्र सरकार के मातहत, उसके एक विभाग की तरह काम करने वाले राजभवन की मेहरबानी है कि वह किस अनैतिक गठबंधन को न्यौता दे, और दो अलग-अलग नस्लों के प्राणियों को एक विचित्र संतान पैदा करने को बढ़ावा दे।

इस मौके पर राजभवन की संवैधानिक भूमिका की असंवैधानिक बातों को लेकर काफी कुछ कहा जा सकता है, लेकिन राजभवन का बेजा इस्तेमाल तो इंदिरा के वक्त से चले आ रहा है जब राज्यपाल अंग्रेज सरकार के एक एजेंट की तरह बर्ताव करते हुए लंदन का एजेंडा लादते थे। राजभवन नाम की संवैधानिक संस्था का कुल जमा इस्तेमाल असंवैधानिक मौकापरस्ती को बढ़ावा देने का बना हुआ है, और आंकड़ों और चिट्ठियों की हकीकत सामने आने के बाद यह समझ आएगा कि महाराष्ट्र का राजभवन में अगर आज सुबह-सुबह अनैतिक काम किया है, तो वह किस दर्जे का अनैतिक है? फिलहाल जब हम इन लाइनों को लिख रहे हैं, मुंबई में एनसीपी, कांग्रेस, शिवसेना की प्रेस कांफ्रेंस जारी है, और उद्धव ठाकरे उसमें कह रहे हैं कि महाराष्ट्र पर फर्जिकल स्ट्राइक की गई है, पवार कह रहे हैं कि उन्हें शपथग्रहण का सुबह पता लगा है, और यह फैसला अजित पवार का है जिनके साथ दस-बारह विधायक ही रहेंगे। और कांग्रेस इन दोनों के साथ बनी हुई है।

दूसरी तरफ कांगे्रस के अभिषेक मनु सिंघवी जैसे बहुत से लोग हैं जो सोशल मीडिया पर इन तीनों पार्टियों की अंतहीन बैठकों को इस नुकसान के लिए जिम्मेदार मान रहे हैं कि वक्त पर फैसला नहीं लिया गया तो ऐसी नौबत आई। कांग्रेस और एनसीपी जनता के बीच मखौल का सामान भी बन गए हैं कि वे हफ्ते भर बैठक-बैठक खेलते रहे, और भाजपा गोल मारकर चली गई। इन तीनों पार्टियों ने जब एक अप्राकृतिक और अनैतिक गठबंधन बनाना तय कर ही लिया था, तो राजनीति की मांग यही थी कि वे तेजी से दावा करते। जब चिडिय़ा खेत चुग गई, तब तक ये तीनों मिलकर खेत में खड़ा करने के लिए बिजूके की कद-काठी, उसके कपड़े, उसके सिर के लिए हंडी तय करते रहे। अब ये तीनों पार्टियां मिलकर खेत में बाकी पराली को जलाकर ठंड में हाथ ताप सकती हैं, या फिर एक आखिरी कोशिश कर सकती हैं कि विधानसभा में फडनवीस-अजित पवार बहुमत साबित न कर सकें। [दैनिक 'छत्तीसगढ़' का संपादकीय, 23 नवम्बर]
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