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भाजपा के घोषणापत्र में भी गरीबों को रियायतें-तोहफें

कांग्रेस के बाद अब भाजपा का चुनाव घोषणापत्र भी आ गया है, और उसमें भाजपा की पहले की एक महत्वपूर्ण घोषणा जारी रखी गई है जिसके तहत किसानों को हर बरस छह हजार रुपये दिए जाएंगे। इसके अलावा भाजपा ने छोटे किसानों और छोटे व्यापारियों के लिए पेंशन की घोषणा भी की है। दूसरी तरफ लोगों को अभी कांग्रेस घोषणापत्र की सुर्खी याद है कि देश के बीस फीसदी गरीब परिवारों को छह हजार रुपये महीने दिए जाएंगे। कांगे्रस ने विधानसभा चुनावों में कर्जमाफी की घोषणा की थी, और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में अधिकतर कर्ज माफ हो भी गया है। इसलिए कांग्रेस से किसानों को यह उम्मीद भी हो सकती है कि उसकी सरकार केंद्र में रहेगी तो किसानी का कर्ज माफ होते चलेगा। लेकिन भाजपा ने छोटे किसानों और छोटे दुकानदारों को पेंशन देने की जो घोषणा की है, उसके दायरे में भी तकरीबन ऐसी ही बड़ी संख्या फायदा पाएगी, और दोनों ही पार्टियों ने अपने अर्थशास्त्रियों के साथ बैठकर यह हिसाब जरूर लगाया होगा कि कितने फीसदी आबादी उनकी रियायतों और उनके तोहफों का फायदा पाएगी।
जब अपने-अपने गठबंधन या सहयोगी दलों के साथ मिलकर सत्ता पर पहुंचना ही सबसे बड़ा मुद्दा हो, तो फिर घोषणापत्र से परे भी हर किस्म की नैतिक-अनैतिक कोशिश आम बात है। वह चल भी रही है। लेकिन देश के आने वाले बरसों को जो बात पूरी तरह प्रभावित करेगी, वह सरकारी खजाने से जनता को दिए जाने वाले तोहफों की है। इस मामले में कांगे्रस और भाजपा के पैमाने अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन दोनों ही पार्टियों ने बुनियादी रूप से यह मान लिया है कि आबादी के एक बड़े हिस्से को आर्थिक उपहार दिए बिना चुनाव जीतने का और कोई जरिया नहीं है। छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव के वक्त जब राज्य की भाजपा केंद्र के अपने संगठन के सामने धान-बोनस देने के लिए गिड़गिड़ाती रही, और दिल्ली ने उसे पूरी तरह खारिज ही कर दिया, तो चुनाव पर उसका भी बड़ा असर पड़ा। इसलिए इस बार के देश के चुनावी घोषणापत्र में भाजपा ने कुछ अलग पैमानों पर किसानों के लिए रियायतें रखी हैं, और छोटे दुकानदारों का एक बड़ा तबका शामिल किया है।
यह समझना अभी थोड़ा सा मुश्किल है कि किसानों और छोटे दुकानदारों की शिनाख्त के पैमाने किस तरह तय होंगे, और यही हाल कांग्रेस की सरकार बनने पर उसके सामने भी रहेगा कि सबसे गरीब बीस फीसदी लोग कैसे छांटे जाएंगे। इसके अलावा एक बड़ी बात यह भी है कि इन बड़े-बड़े तबकों से परे कई ऐसे छोटे-छोटे तबके भी होंगे जो न किसान होंगे, न व्यापारी होंगे, लेकिन जो मदद के जरूरतमंद होंगे, और उनके लिए भाजपा के घोषणापत्र में तो कोई पैमाना नहीं है, कांग्रेस के घोषणापत्र में बिना तबकों के एक बड़ा पैमाना सबसे गरीब बीस फीसदी का रखा गया है। अब यह तो आने वाले चुनाव के नतीजों के बाद अटकल का सामान रहेगा कि नतीजों का कितना फीसदी किस वजह से किसके पक्ष या विपक्ष में गया है। दरअसल भारतीय चुनावी नतीजे अगर किसी सुनामी की तरह किसी एक पार्टी के ही पक्ष में न चले जाएं, तो अलग-अलग प्रदेशों में बिखरी पार्टियों और गठबंधनों के असर का हिसाब लगाना बहुत बड़ी पहेली रहता है। यह भी समझना कुछ मुश्किल है कि मतदान शुरू होने के दो दिन पहले आए इस घोषणापत्र का कितना विश्लेषण जनता तक पहुंच पाएगा क्योंकि कुछ घंटों के बाद चुनाव प्रचार का पहला दौर बंद भी होने जा रहा है। फिलहाल जनता का जो तबका घोषणापत्रों को गंभीरता से लेता है, उसे कांग्रेस और भाजपा दोनों के इस बार के घोषणापत्र की आपस में तुलना तो करनी ही चाहिए, साथ-साथ इन्हीं पार्टियों के घोषणापत्र से भी उनके ताजा दस्तावेज मिलान करने चाहिए। 
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