अब जब देश चुनाव के मुहाने पर खड़ा है, तारीखें आ चुकी हैं, और उम्मीदवार भी तकरीबन आते जा रहे हैं, तब कांग्रेस के लोग अनर्गल बातें कहकर पार्टी को नुकसान पहुंचाने का सिलसिला चलाए हुए हैं। इस बार मानो दिग्विजय सिंह, मणिशंकर अय्यर, और शशि थरूर कहीं आगे न बढ़ जाएं इसलिए सैम पित्रोदा ने पुलवामा के आतंकी हमले को लेकर एक ऐसी गंभीर तर्कसंगत और बेमौके की बात कह दी है कि जिससे पार्टी को नुकसान छोड़ और कुछ नहीं होगा। भारत पर होने वाले आतंकी हमलों की सजा पूरे पाकिस्तान को नहीं दी जानी चाहिए, यह एक तर्कसंगत और न्यायसंगत बात हो सकती है। लेकिन चुनाव के मौके पर बिना किसी बहस के खुद होकर ऐसी चर्चा छेडऩा और ऐसी बात कहना जिसका विरोधी दल तुरंत ही एक जायज या नाजायज फायदा उठा लें, कहां की समझदारी है?
कांग्रेस पार्टी के यह बेहतर होगा कि वह पाकिस्तान के साथ रिश्तों को लेकर अपने अधिकृत प्रवक्ताओं को ही बोलने की इजाजत देती, और बाकी नेताओं से कहती कि वे अपने दायरे की बात करें। ऐसा करते हुए कांगे्रस अपने प्रवक्ताओं को एक छोटा प्रशिक्षण दिला सकती थी कि भारत की जनभावनाओं को नुकसान पहुंचाए बिना किस तरह सच बोला जा सकता है। यह बात किसी बेईमानी की नहीं है, गांधी भी यही कह गए थे कि सच कहो, लेकिन कड़वा मत कहो। अब भारत में इस चुनावी माहौल में जब भाजपा ने पूरी हवा को एक ऐसी आक्रामक राष्ट्रवाद में केसरी कर रखा है कि अक्षय कुमार की फिल्म भी इस तौले गए मौके पर आकर भी इस माहौल से कम ही केसरी दिख रही है, तब बाकी पार्टियों को राष्ट्रवाद के इस खतरे को समझना चाहिए जो कि चुनाव के रूख को पूरी तरह मोड़ सकता है। आज इस देश में सबसे अफसोस की बात यह है कि पांच बरस की मोदी सरकार अपने पिछले चुनावी घोषणापत्र से लेकर पिछले बरसों में नोटबंदी और जीएसटी सरीखे बहुत से फैसलों का चुनाव में जिक्र भी करने की हालत में नहीं है। और ऐसे में अगर नए ढूंढे गए सर्जिकल स्ट्राइक जैसे नारों में कांग्रेस और बाकी भाजपा-विरोधी उलझकर रह जाते हैं, बिन मौके की अटपटी बात कहते हैं, तो इससे मोदी को नफा छोड़ और कुछ नहीं है।
मनमोहन सिंह सरीखे सबसे कम बोलने वाले, और सबसे समझदारी से बोलने वाले प्रधानमंत्री ने भी एक बार बिना जरूरत यह कहा था कि देश के साधनों पर पहला हक मुस्लिमों का है। किसी प्रधानमंत्री को ऐसा कहने की कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि सरकार के हाथ में किसी समुदाय के कल्याण के लिए कार्यक्रम बनाना रहता ही है। फिर भी वे ऐसा कह बैठे, और इसका कांग्रेस के खिलाफ भरपूर इस्तेमाल भी हुआ। दूसरी तरफ भाजपा और उससे जुड़े हुए लोग भी ऐसी भरपूर बातें करते हैं, लेकिन उनके पास उसकी भरपाई के लिए अपने दूसरी भावनात्मक और राष्ट्रवादी नारे हैं। कांग्रेस अगर आने वाले दिनों में बयानबाजी में ऐसी ही लापरवाह रहेगी, तो वह उसका खासा दाम चुकाएगी। कम बोलना कोई कमजोरी नहीं रहती, और सैम पित्रोदा जैसे लोग जो कि तकरीबन तमाम वक्त देश के बाहर ही रहे हैं, उन्हें कम ही बोलना चाहिए, और बाकी लोगों को भी। सैम की कही बात पर हाथों-हाथ भाजपाध्यक्ष अमित शाह ने प्रेस कांफे्रंस भी ले ली है, और कांग्रेस के पास जनभावना के अनुकूल इसका कोई जवाब मुश्किल होगा।