बीती शाम भारत के अगले आम चुनाव के मुनादी हो गई है, और देश में सबसे चर्चित दो पार्टियों, कांग्रेस और भाजपा के कई महीनों से चले आ रहे चुनाव अभियान के साथ-साथ अब राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर पर हो रहे गठबंधन भी साफ होंगे, और चुनाव के मुद्दे भी। चुनाव के मुद्दे राष्ट्रीय स्तर पर भी रहेंगे, और हर प्रदेश के अपने कुछ ऐसे स्थानीय मुद्दे भी रहेंगे जो कि राष्ट्रीय सरकार बनाते वक्त भी मतदाता को प्रभावित करते हैं। ऐसा भी नहीं है कि इनमें से अधिकतर मुद्दे पिछले महीनों में अलग-अलग सामने नहीं आ चुके हैं, लेकिन यह समझने की जरूरत है कि अब चुनाव तक के बाकी दिनों में मतदाताओं के पास नेताओं और पार्टियों को सुनने, समझने, और अपना दिमाग बनाने का वक्त सीमित रहेगा, और उसके चारों ओर से बातों का ऐसा हमला होगा कि वह एक किस्म से अरूचि का शिकार भी हो जाएगा, और उस बीच उसे प्रभावित करने के लिए सीमित शब्दों में, सीमित और सबसे अधिक प्रभावित करने वाली बातों को किस तरह से सामने रखा जा सकता है, इस पर डांवाडोल मतदाताओं का फैसला कुछ हद तक टिका रहेगा।
पिछले बरसों में, या पिछले कई दशकों में भारत में यह देखने में आया है कि वोटरों की जिंदगी के असल मुद्दे किनारे धरे रह जाते हैं, और वे कभी भावनाओं में बह जाते हैं, कभी वे किसी सहानुभूति की लहर का शिकार होकर वोट डालते हैं, और कभी वे गैरकरिश्माई काम करने वाले लेकिन करिश्माई व्यक्तित्व के नेता को जिताने के लिए टूट पड़ते हैं। अभी भाजपा अपने नेता नरेन्द्र मोदी को लेकर ऐसे ही करिश्मे की उम्मीद पर टिकी हुई है। दूसरी तरफ देश की दूसरी पार्टियां हैं जो कि परंपरागत रूप से भाजपा और मोदी के खिलाफ हैं, और वे मोदी की बातों के खोखलेपन को उजागर करने में लगी हुई हैं, और वोटरों की करिश्मे से चकाचौंध आंखों को अपने नजरिए से हकीकत दिखाने में भी लगी हुई हैं। ऐसे में देखना यह है कि करिश्मे की धारणा को जारी रखने में भाजपा कामयाब रहती है, उसके साथी दल कामयाब रहते हैं, या मोदीविरोधी लोग और पार्टियां कामयाब रहते हैं।
इस बीच पिछले दो महीने से देश में चली आ रही राष्ट्रवाद की एक अभूतपूर्व लहर की एक अभूतपूर्व ऊंचाई को देखकर राजनीतिक विश्लेषक परेशान हैं कि इससे सराबोर वोटरों के दिल-दिमाग को तथ्य और तर्क से कैसे और कितना प्रभावित किया जा सकेगा? जब सरहद पर दुश्मन का एक खूब बड़ा, खूब ऊंचा पुतला बनाकर खड़ा कर दिया गया है, तो लोगों को उसे मारना अपनी देशभक्ति के लिए जरूरी लग रहा है। अब मोदीविरोधी पार्टियों के सामने यह भी चुनौती है कि इस लहर, या इस आभासी-लहर से वे कैसे पार पा सकेंगे? आज हालत यह है कि पिछले दो-तीन बरस में, या कि पांच बरस पहले के ऐसे ही आम चुनाव के वक्त से अब तक मोदी के जो वायदे सामने आए, मोदी की जो कस्में दिखीं, मोदी के जो फैसले लोगों पर लदे, उन सब का क्या हासिल हुआ, यह पूरा सिलसिला ही आज बड़ी कोशिश करके, एक योजना के तहत, भुला दिया गया है। आज नोटबंदी के नफे की कोई चर्चा भी नहीं हो रही जबकि उसे आजाद हिन्दुस्तान के सबसे अधिक सनसनीखेज और रहस्यमय सस्पेंस की तरह मोदी मंत्रिमंडल पर थोपा गया था, और देश पर भी। लेकिन आज बरसों हो गए, लोगों ने मोदी के मुंह से नोटबंदी का नाम भी नहीं सुना है। पिछले महीनों में जो लगातार चुनाव प्रचार चला है, उसमें भी नोटबंदी जैसा बड़ा, चर्चित, और विवादास्पद फैसला सहूलियत के साथ भुला दिया गया है।
लेकिन यह जिम्मेदारी विपक्ष की बनती है कि वह मोदी के ऐसे अनगिनत अधूरे, और नुकसानदेह फैसलों को लेकर जनता के सामने बातों को भरोसेमंद तरीके से रखे। हमारा तजुर्बा पिछले कई बरसों का यह रहा है कि कांग्रेस पार्टी जब कभी ऐसी किसी ऐतिहासिक और गंभीर जिम्मेदारी के सामने खड़ी रहती है, उसके कुछ बड़बोले नेता कोई न कोई ऐसी गैरजिम्मेदाराना बात कह बैठते हैं, ऐसे विवादास्पद शब्द इस्तेमाल कर लेते हैं, मोदी को कुछ ऐसी गालियां दे देते हैं, कि हिन्दुस्तानी जिंदगी के असल मुद्दे गायब ही हो जाते हैं। दिक्कत यह रहती है कि देश भर में बिखरी हुई पार्टी के अनगिनत नेता कब कहां क्या बोल बैठें, इसका कोई ठिकाना नहीं रहता है। भारतीय जनता पार्टी तो अपने सांसदों की जूतमपैजार तक को सहूलियत के साथ अनदेखा कर देती है, लेकिन कांग्रेस के नेताओं के अटपटे बयानों को देश के साथ गद्दारी साबित करने में उसे महारथ हासिल है। ऐसी नौबत में मोदी को हराने की नीयत रखने वाले लोगों को लंबी तैयारी करनी चाहिए थी, जो कि दिख नहीें रही है। आज अगर इस चुनाव में जनता मोदी को खारिज करती है, तो वह मोदीविरोधियों की जीत नहीं होगी, खुद मोदी की अपने आपकी छवि से हार होगी। आने वाले दिन बहुत दिलचस्प होंगे, और यह महज राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी नहीं होगी, बल्कि मीडिया और सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों की जिम्मेदारी भी होगी कि वे देश के लोगों को असल मुद्दों को याद दिलाएं, और इस जिम्मेदारी का अहसास कराएं कि उन्हें फैसला इन मुद्दों पर लेना चाहिए।