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अंतागढ़ की खरीद-बिक्री का दूध-पानी थोड़ा जल्दी साबित होना बेहतर होगा

छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार ने आते ही जिस रफ्तार से पुराने कानूनी और गैरकानूनी मामलों की जांच शुरू करने का फैसला लिया है, या चल रही जांच में नए पहलू जोडऩा तय किया है, उससे प्रदेश की राजनीति में एक हड़कंप मच गया है। भूपेश बघेल पिछले पन्द्रह बरस से लगातार विपक्ष में चले आ रहे थे और कई किस्म के मुकदमों का सामना भी कर रहे थे, और जांच भी झेल रहे थे। कांगे्रस की अगुवाई करते हुए उन्होंने रमन सिंह सरकार पर भ्रष्टाचार और दूसरे किस्म के अपराधों की कई तोहमतें लगाई थीं, और अब उन सबकी जांच का उनका फैसला जायज इसलिए है कि अगर वे जांच और मुकदमे के लायक आरोप नहीं थे तो उन्हें लगाना लगता था। और अगर वे सही थे तो फिर उनकी जांच करवाना आज की सरकार का न सिर्फ अधिकार है, बल्कि उसकी जिम्मेदारी भी है। मजे की बात यह है कि भाजपा की तरफ से छत्तीसगढ़ के प्रभारी बनाए गए एक नेता डॉ. अनिल जैन ने कल उस सीडी कांड की जांच छत्तीसगढ़ के बाहर की एजेंसी से करवाने की मांग की है जिसे भूपेश बघेल के खिलाफ सीबीआई ही कर रही है, और अदालत में चालान भी पेश कर दिया है। अब अपनी ही मोदी सरकार की मातहत सीबीआई की जांच से भी अगर भाजपा को तसल्ली नहीं है, तो उसमें भूपेश बघेल सरकार कर भी क्या सकती है।
अंतागढ़ टेप कांड नाम से कुख्यात कांग्रेस-उम्मीदवार की खरीद-बिक्री का मामला जांच से गुजर रहा है, और उस मामले में बिकने के आरोप में कांगे्रस के एक घोषित उम्मीदवार को आरोपी बनाया गया है, इस बिक्री में बिचौलिया बताए गए उस वक्त कांगे्रस में रहे अमित जोगी को भी आरोपी बनाया गया है, और उम्मीदवार को खरीदने के आरोप में पिछले मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के दामाद डॉ. पुनीत गुप्ता पर भी जुर्म दर्ज हुआ है। यह पूरा सिलसिला इसलिए भी जांच के लायक था कि उम्मीदवार की खरीदी-बिक्री को लेकर टेलीफोन कॉल रिकॉर्डिंग के इतने सुबूत पहले कभी नहीं जुटे थे। और इस खरीद-बिक्री के मानो नतीजे के रूप में कांगे्रस के घोषित उम्मीदवार ने नाम वापिस लिया था। इन बरसों में भूपेश बघेल लगातार हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इसकी जांच की लड़ाई लड़ते आए हैं, और अब राज्य की पुलिस इस मामले में जुर्म दर्ज कर चुकी है। इन कॉल रिकॉर्डिंग्स में जिन लोगों की आवाजें बताई जाती हैं, उनको छत्तीसगढ़ के लोग बरसों से सुनते भी आ रहे हैं, और जांच से परे भी आम जनता की सामान्य समझबूझ में इन आवाजों की शिनाख्त में कोई दुविधा नहीं है। इसलिए प्रदेश के लोकतंत्र के हित में यह जरूरी है कि अगर ऐसी खुली खरीद-बिक्री हुई है, तो वह अदालत तक पहुंचकर एक बार साबित हो ही जाए। लोकतंत्र को जब मंडी में खरीदने लायक सामान बना दिया गया है, तो उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई जरूरी है। इस जांच से, जैसा कि जांच के घेरे में आए अमित जोगी ने भी कहा है, दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
मिलावटी दूध की जांच को लेकर कही जाने वाली यह बात आज की सरकारी व्यवस्था में कुछ दिक्कत की इसलिए साबित होती है कि सरकार का जो अमला मिलावट पकडऩे के लिए है, वह ऐसे काम में बरसों लगा देता है, और उसके बाद उसे अदालत में साबित करने में एक पूरी जिंदगी लग जाती है। लोग जवानी में की गई मिलावट के लिए मरने के करीब पहुंचकर सजा पाते हैं। यह बहुत बेइंसाफी रहती है, इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि अंतागढ़ की खरीद-बिक्री का दूध-पानी थोड़ा जल्दी साबित हो जाए।
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