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कश्मीर पर दावा, और कश्मीरियों से नफरत साथ नहीं चल सकते

हिमाचल प्रदेश के कामकाज में, वहां की अर्थव्यवस्था में कश्मीरी मजदूरों का बड़ा हाथ है। शिमला जैसे इस पर्यटन केंद्र में कश्मीरी कुली सैलानियों का बोझ ढोते हैं। सीआरपीएफ पर आतंकी हमले के बाद देश भर में जगह-जगह कश्मीरियों को मारकर भगाया जा रहा है, और कश्मीरी मजदूर हिमाचल छोड़कर भी जा रहे हैं।
कश्मीर के आतंकी हमले के बाद देश में कुछ ऐसे तनाव का माहौल बना हुआ है कि जैसे कश्मीर के हर इंसान सीआरपीएफ पर हमले में शामिल रहे हों। कश्मीर के मुस्लिम लोगों से एक नफरत बहुत से लोग इसलिए करते हैं कि वे मुस्लिम हैं। बहुत से लोग कश्मीरियों से इसलिए नफरत करते हैं कि वे जनमत संग्रह के एक ऐतिहासिक वायदे की याद दिलाते हैं, और उस पर भरोसा रखते हैं कि कश्मीर को लेकर यह तय करना उनका हक है कि वे हिन्दुस्तान के साथ रहें, पाकिस्तान के साथ रहें, या कश्मीर को एक आजाद मुल्क बनाएं। इस ऐतिहासिक दस्तावेज की अनदेखी करके कश्मीर पर अपना दावा करने वाले बाकी हिन्दुस्तानी कश्मीरियों पर कोई दावा नहीं करते। वे कश्मीर को जमीन के एक टुकड़े की तरह चाहते हैं, वहां के इंसानों के बिना। और इसीलिए पिछले चार दिनों से हवा में ये फतवे भी तैर रहे हैं कि कश्मीर में फौज को भेजकर सबको निपटा दिया जाए। जो लोग जंग और एक नस्ल के खात्मे की ऐसी बातें कर रहे हैं, वे इस बात को अनदेखा कर रहे हैं कि पिछले तकरीबन पांच बरस से भाजपा कश्मीर की सरकार में भागीदार रही, या फिर राज्यपाल के शासन में वह दिल्ली से कश्मीर पर राज कर ही रही है। इसके बावजूद अगर वहां हिंसा आसमान पर पहुंच रही है, मोदी सरकार आने के पहले के बरसों के मुकाबले बाद के बरसों में कई गुना बढ़ गई है, तो इसके पीछे की ठोस वजहों को देखने की जरूरत है। 
पिछले पांच बरस का हिन्दुस्तान देखें तो किसी न किसी बहाने देश के बहुत से प्रदेशों में कश्मीरी छात्रों को स्थानीय गैर-मुस्लिम हिंसा का सामना करना पड़ा, और उन्हें कश्मीर वापिस भेजने के फतवे पिछले चार दिनों में जिस तरह लाठियों के साथ भीड़ की हिंसा के साथ कई प्रदेशों में गूंजे हैं वे देखते ही बनते हैं। फिर सड़कों की हिंसा से परे सोशल मीडिया पर कश्मीरियों के खिलाफ जो आग उगली जा रही हैं, वह भी कश्मीरियों का दिल तोडऩे वाली है। शायद यही सरहद पार के उन आतंकियों का मकसद भी है जो कि कश्मीरियों को गुस्से से भरना चाहते हैं, हिन्दुस्तान के खिलाफ नफरत से भरना चाहते हैं, और इसके बाद उनके हाथों हिंसा करवाना चाहते हैं। कश्मीर के एक भूतपूर्व मुख्यमंत्री, नौजवान उमर अब्दुल्ला ने कल ट्विटर पर ऐसी एक बात लिखी भी है कि देश भर में कश्मीरियों को पीटकर लोग आतंकियों के ही मंसूबे पूरे कर रहे हैं। और अब तक शायद केन्द्र सरकार के जिम्मेदार और जवाबदेह मंत्रियों की ओर से ऐसी हिंसा के खिलाफ कोई बात नहीं कही गई है, न ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से। जबकि प्रधानमंत्री ने सीआरपीएफ पर आतंकी हमले के बाद से लगातार बदले की बात कही है, हिसाब चुकता करने की बात कही है, सजा देने की बात कही है, सुरक्षा बलों को खुली छूट देने की बात कही है, लेकिन किन बेकसूरों के साथ कोई हिंसा नहीं की जानी चाहिए उस बारे में कुछ नहीं कहा है। सवाल यह उठता है कि जब देश ऐसी विशाल और जलती-सुलगती भावनाओं के सैलाब में घिरा हुआ है, डूबा हुआ है, तब कुछ बातों का न कहा जाना, कुछ और बातों को कहने से अधिक कहने वाला भी हो जाता है। इसलिए देश भर में बिखरी हुई बड़ी-बड़ी पार्टियां अगर कार्यकर्ताओं, समर्थकों, और सहयोगी संगठनों के विशाल ढांचे के बावजूद अमन का कोई फतवा नहीं देती हैं, तो फिर ऐसी चुप्पी को वे सारे समर्थक-संगठन मौन-सहमति का फतवा मान लेते हैं। 
जो लोग कश्मीर को एक जमीन की शक्ल में पाकिस्तानी सरहद पर हिन्दुस्तान की हिफाजत के लिए साथ रखना चाहते हैं, हिन्दुस्तान बनाए रखना चाहते हैं, उन्हें यह भी समझना होगा कि बिना कश्मीरी कोई कश्मीर नहीं हो सकता। और जिस अंदाज में फतवे जारी हो रहे हैं, गद्दारी की तोहमतें लग रही हैं, बेकसूरों को मारा और भगाया जा रहा है, उससे हिन्दुस्तान का ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो रहा है। छत्तीसगढ़ की मिसाल दें तो जिस बस्तर में आदिवासियों के बीच नक्सली दशकों से हिंसा कर रहे हैं, और कश्मीर से भी बड़े हमले सीआरपीएफ पर करके एक अकेले हमले में पौन सौ लोगों को मार चुके हैं, क्या वहां के आदिवासियों को देश भर से मार-मारकर भगाया जा सकता है? क्या उन आदिवासियों में से हर किसी को नक्सलियों से मिला हुआ बताया जा सकता है? क्या उन्हें बस्तर के बाहर बाकी छत्तीसगढ़ से भी मारकर भगाया जा सकता है? क्या बस्तर में फौज भेजकर नक्सल-सफाए के नाम पर आदिवासी-सफाया किया जा सकता है? आज हिन्दुस्तान के आधा दर्जन राज्यों में नक्सल हिंसा है, और क्या इन तमाम राज्यों के ऐसे तमाम इलाकों में स्थानीय लोगों को खत्म किया जा सकता है? 
जो लोग आज देश भर में जगह-जगह कश्मीरियों को मारकर भगाने में लगे हैं, जो रात-दिन जागकर ओवरटाईम करके सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने में लगे हैं, उन तमाम लोगों को यह समझने की जरूरत है कि ज्वालामुखी से निकलकर बहते हुए लावे को रोकना मुमकिन नहीं होता। अगर किसी प्रदेश का होने की वजह से बाकी प्रदेशों से उनको मारकर भगाना है, तो फिर मुम्बई में शिवसेना और राज ठाकरे क्या गलत करते हैं? तो फिर कुछ उत्तर-पूर्वी राज्यों में हिन्दीभाषियों पर हिंसा में क्या गलत है? जब कभी किसी बेकसूर पर तोहमत लगती है, और उस पर हमला होता है, तो उससे आगे चलकर एक मुजरिम के खड़े होने, एक आतंकी बनने, एक नक्सली बनने का खतरा भी खड़ा हो जाता है। इसलिए जिन्हें कश्मीर चाहिए, उन्हें यह भी चाहिए कि वे कश्मीरियों को खत्म करने की न सोचें। 
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