Slider

आने वाला वक्त बताएगा कि यह खींचतान देश को किस सदी में छोड़ेगी ..

उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद में चल रहे अर्धकुंभ से एक खबर है कि वहां साधुओं के एक अखाड़े से निकाले गए एक साधू को शाही स्नान से रोका जा रहा है। उसने अदालत तक दौड़ लगाई, तो हाईकोर्ट ने भी फैसला दिया कि उसे सरकारी सुविधाओं वाले शाही स्नान की इजाजत नहीं दी जा सकती। यह निष्कासित साधू सोने से लदा रहने की वजह से सुर्खियों और तस्वीरों में रहते आया है, और कुंभ की दूसरी खबरें बताती है कि वहां पहुंचे कई साधुओं के पास दो-दो करोड़ रूपए तक की गाडिय़ां हैं। अब यह समझ नहीं आता कि एक साधू का शाही शब्द से क्या लेना-देना होना चाहिए जो कि राजपाठ और संपन्न ऐशोआराम बताने वाला शब्द है। दूसरी बात यह कि जो लोग संन्यास ले चुके हैं, सांसारिकता से दूर होकर ईश्वर की आराधना में लगे होने का दावा करते हंै, उनके अखाड़े क्यों होना चाहिए, क्योंकि अखाड़े तो पहलवानों के होते हैं, कुश्ती के लिए होते हैं। फिर साधू जिस तरह लाखों की घडिय़ां, दसियों लाख का सोना पहनते हैं, तो क्या यह बोझ लेकर ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है? 
ऐसे बहुत से विरोधाभास धर्म के मामले में सामने आते हैं जहां धर्म की वजह से थोपे गए ब्रम्हचर्य से परेशान पादरी कहीं ननों से बलात्कार करते हैं, तो कहीं बच्चों से। बच्चों से बलात्कार करने वाले पादरियों के मामले लाखों में है, और दुनिया भर में दसियों हजार पादरी ऐसे मामले झेल रहे हैं। अभी-अभी पोप ने खुद यह मंजूर किया है कि बहुत से पादरी ननों से सेक्स-संबंध बनाते हैं, और फिर उसे छुपाने के लिए उनका गर्भपात भी कराते हैं। पश्चिमी देशों में पादरियों के पकड़ाने के बाद भी वैटिकन सदियों से इस जुर्म को अनदेखा करते रहा, और हाल में बढ़ते हुए सामाजिक दबाव की वजह से पोप ने यह मानना शुरू किया है कि चर्च यौन शोषण का अपराधी है, और बच्चों से लेकर ननों तक से बलात्कार किया जाता है, यह आम बात है। हाल के बरसों में आसाराम से लेकर राम-रहीम तक, और दूसरे अनगिनत हिन्दू बाबा होने का दावा करने वाले लोगों को बलात्कार में पकड़ा गया है, और सजा भी हो चुकी है। 
कुंभ में साधुओं के अखाड़ों और शाही स्नान पर अंधाधुंध सरकारी खर्च होता है, और पाखंडी भीड़ के ऐसे जलसे के झगड़े निपटाने में अदालत भी अपना समय देती है। यह सिलसिला कई पहलुओं से खतरनाक दिखता है। जिन साधुओं को सांसारिकता छोड़ ईश्वर की साधना करनी चाहिए, वे नंगे बदन अपने गुप्तांगों से तरह-तरह के करिश्मे दिखाकर नुमाइश का सामान बने रहते हैं। वे गैरकानूनी कहे जाने वाले नशे में डूबे रहते हैं, अपने मठों या अखाड़ों में अंधाधुंध दौलत इक_ी करते हैं, हथियार लेकर चलते हैं, गहनों का शौक करते हैं, और नागा साधू भी कहलाते हैं। यह पूरा सिलसिला घोर पाखंड और विरोधाभासों से भरा हुआ है, लेकिन देश में बढ़ती हुई धर्मान्धता के बहाव में यह पाखंड और आगे बढ़ते चल रहा है। इस पर सरकारी खर्च भी बढ़ते जा रहा है, और हालत यह है कि कुंभ के नाम पर जुटने वाली भीड़ की वजह से इलाहाबाद शहर में कई महीनों के लिए शादियों पर रोक लगा दी गई है। 
धर्मनिरपेक्षता का यह मतलब नहीं होता कि सरकार तमाम धर्मों की बराबरी से चापलूसी करे, और उन पर जनता का पैसा बर्बाद करे। धर्मनिरपेक्षता का मतलब तो यह होना चाहिए कि सरकार धर्म पर खर्च न करे, और धर्मों को अपने हिसाब से चलने दे, उनका सार्वजनिक आकार विकराल न होने दे। इंसान की जिंदगी में आज की तमाम दिक्कतों के चलते हुए धर्म की जगह न सिर्फ सीमित होनी चाहिए, बल्कि उसे निजी आस्था तक सीमित रखने की सोच सरकार की होनी चाहिए। लेकिन देखादेखी यह बढ़ावा बढ़ते चल रहा है, और धर्म को सरकारी खर्च के लायक सामान मान लिया गया है। आज हिन्दुस्तान की जनता का अनुपातहीन समय, सरकार की अनुपातहीन ऊर्जा धार्मिक पाखंडों और विवादों को निपटाने या सजाने में लग रहे हैं। यह सिलसिला इसलिए खत्म नहीं हो सकता कि नेहरू की लोकतांत्रिक-वैज्ञानिक सोच को सोच-समझकर खत्म करते-करते आज भारत की राजनीति ऐसे मुहाने पर पहुंच गई है जहां मानो दम तोड़ते जख्मी को ले जाती एम्बुलेंस का डीजल निकालकर किसी नागा साधू की गाड़ी में डाला जा रहा हो, कि वह शाही स्नान का महूरत न चूक जाए। यह सिलसिला देश की इस इक्कीसवीं सदी को अठारहवीं सदी की ओर खींचते जा रहा है, और यह आने वाला वक्त बताएगा कि यह खींचतान देश को किस सदी में छोड़ेगी।
© all rights reserved TODAY छत्तीसगढ़ 2018
todaychhattisgarhtcg@gmail.com