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मां की तांत्रिक-हत्या के पीछे की सोच देश के माहौल से भी

छत्तीसगढ़ में दो दिन पहले एक खबर आई कि एक तांत्रिक क्रिया करने के लिए बेटे ने मां को मार डाला, और उसके बदन के टुकड़े करके उसका खून पीते रहा। दूसरी तरफ तकरीबन हर हफ्ते अंधश्रद्धा खत्म करने के लिए अपने अकेले के दम पर लगातार एक मुहिम छेडऩे वाले डॉ. दिनेश मिश्रा गांव-गांव जाते हैं, और लोगों को मन से अंधविश्वास हटाने का खतरा उठाते हैं। ऐसे ही लोग देश भर में जगह-जगह धर्मान्ध, अंधविश्वासियों की हिंसा के शिकार भी होते हैं, और ऐसे खतरे के बावजूद वे अपने खर्च से इस मुहिम में लगे रहते हैं। 
अब सवाल यह है कि लोगों की सोच में जो अंधविश्वास कूट-कूटकर भरा जा रहा है, और नेहरू की साख चौपट करने की कोशिश में, देश को एक झूठे पौराणिक गौरव के नशे में डुबाने के लिए जिस तरह वैज्ञानिकता को खत्म किया जा रहा है, उसका ऐसा नतीजा होना ही था। और अंधविश्वास के चलते ऐसा कत्ल तो फिर भी दिख जाता है, कत्ल जैसी वारदात से कम हिंसक अंधविश्वास तो सामने भी नहीं आता। जब देश के सबसे बड़े विज्ञान-जलसे में बड़े-बड़े वैज्ञानिक और प्रोफेसर, वाइस चांसलर और अँतरिक्ष विज्ञानी, पुराण को विज्ञान बताते हुए कौरवों को टेस्ट ट्यूब बेबी विज्ञान का सुबूत बताते हैं, गुरुत्वाकर्षण शक्ति के सिद्धांत को खारिज करते हैं, तो पूरे देश की सोच एक अंधेरे गड्ढे में जाना तय हो जाती है। 
आज यह देश पुराणों को इतिहास मानने लगा है, और एक नामौजूद भूतकाल को अपना गौरवशाली भविष्य साबित करने पर उतारू हो गया है। आज जब देश में समझदारी की बात करना, तर्क और न्याय की बात करना, वैज्ञानिक सोच की बात करना, राष्ट्रद्रोह और देश के साथ गद्दारी करार दी जा रही है, तो ऐसे में बेटे अगर मां को मारकर किसी साधना को पूरा करने का सपना देख रहे हैं, तो इसमें कोई हैरानी नहीं है। आजाद हिन्दुस्तान में लगातार समाज सुधारकों ने अंधविश्वास को खत्म करने के लिए लगातार लड़ाई लड़ी थी, नेहरू सरीखे नेताओं ने धर्मान्ध लोगों की नाराजगी झेलने की कीमत पर भी वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दिया था, उन तमाम कोशिशों पर पिछले चार बरस में पानी फेर दिया गया है, और समाज में कट्टरता को देशप्रेम साबित किया जा रहा है। 
यह बात समझने की जरूरत है कि जब लोगों की सोच अवैज्ञानिक होने लगती है, तो कुछ बरसों में ही पटरी से उतरी हुई इस गाड़ी को वापिस पटरी पर पहुंचने में कई पीढिय़ां भी लग सकती हैं। हिन्दुस्तान एक बहुत खतरनाक दौर से गुजर रहा है जिसमें लोगों की सोच को खत्म करना एक चुनावी मकसद रह गया दिखता है। वोटों की खातिर इस तरह की हिंसा, इस तरह की हरकत को बढ़ावा देने के लिए ऐसी हिंसा के फतवे नहीं देने पड़ते, महज लोगों की सोच को अवैज्ञानिक बनाना होता है। नेहरू ने जिस मेहनत से हिन्दुस्तानी समाज को आधुनिक और प्रगतिशील बनाया था, उसका यह बेहाल, पांच बरस की सरकार जाने के बाद भी रातोंरात सुधर नहीं पाएगा।
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