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भय्यूजी महाराज की बदकिस्मत कि आज मनोहर कहानियां नहीं

मध्यप्रदेश में बसे हुए, और हिन्दू संगठनों, पार्टियों के बीच खासे लोकप्रिय रहे आध्यात्मिक गुरू कहे जाने वाले भय्यूजी महाराज का अंत जिस तरह हुआ है उसने संत और गुरू नाम की नस्लों के बारे में लोगों को एक बार फिर सोचने का मौका दिया है। आध्यात्म और धर्म, संतई और गुरुडम के नाम पर अथाह दौलत इकठ्ठी करना, वैध-अवैध संबंध रखना, ब्लैकमेल करना या ब्लैकमेल होना, और आखिर में अपने ही कर्मों से घिरकर आत्महत्या कर लेना! जिसकी खुद की ऐसी दुर्गति हुई हो उनको बड़े-बड़े राजनीतिक दल और बड़े-बड़े नेता मध्यस्थता करने के लिए सम्मान देते आए हैं। लेकिन हाल के बरसों में बापू कहा जाने वाला आसाराम, बाबा कहा जाने वाला रामपाल, बाबा कहा जाने वाला राम-रहीम, और महाराज कहे जाने वाले भय्यूजी की जो कहानियां सामने आई हैं उनसे आस्थावान लोगों की अक्ल थोड़ी सी तो लौटनी चाहिए, लेकिन हो सकता है कि न भी लौटे, और वे अब तक न पकड़ाए, अब तक जेल न गए किसी और चोगाधारी से अपनी तबाही का सामान जुटाते रहें।
धर्म और आध्यात्म के नाम पर होने वाली जालसाजी और धोखाधड़ी बड़ी भयानक है। लोग ईश्वर, गुरू, या संत कहे जाने वाले पर ऐसी अंधश्रद्धा रखने लगते हैं कि आस्था के ऐसे केन्द्रों का तबाह होना आसान होने लगता है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में ऐसी ही आस्था की एक दुकान बड़ी करते-करते एक आदमी के हाथ इतने लंबे हो गए कि उसने विश्वविद्यालय खोल लिया, और उसके पैरों पर बड़े-बड़े अफसर, जज, और मंत्री पड़े दिखते थे। आस्था के ऐसे बुलबुले फूटने में वक्त लगाते हैं, लेकिन अमूमन फूट ही जाते हैं। इस बीच वे मध्यस्थता के नाम पर कई किस्म की दलाली करते हैं। जिनके नाम पर विश्वविद्यालय चलता है उनकी दलाली का हाल यह है कि सबसे बुरे मुजरिमों को अदालतों से छुड़वाने के लिए वे जज के साथ मध्यस्थता कर लेते हैं, और पुलिस के आला अफसरों के साथ मध्यस्थता करते हैं ताकि अदालत तक पहुंचने वाला केस ही कमजोर हो जाए। ऐसी भी चर्चा है कि वे मध्यप्रदेश में अपने ठिकाने से मुजरिमों को बंदूकें भाड़े पर देते हैं, और अपने पैरों पर पड़े मंत्रियों से सरकारी कामकाज में जुर्म की दलाली भी करते हैं। 
यह देश किस्मत पर भरोसा करने वाले भाग्यवादियों से भरा हुआ है, और वे अपने काम पर भरोसा करने के बजाय इस तरह के पाखंडों पर भरोसा करते हैं जो कि उनके घर की महिलाओं की इज्जत लूटते हैं, बच्चों का देह शोषण करते हैं, दलाली, भ्रष्टाचार, और जुर्म से अरबपति-खरबपति हो जाते हैं, और लोगों के दिल-दिमाग को गुलाम भी बनाकर रखते हैं। अंधविश्वास रखने वाले लोग किसी न किसी पाखंड की तलाश में रहते हैं ताकि अपनी सब दिक्कतों को उस पर डाल देने, और उनके हल हो जाने की खुशफहमी में जिंदा रह सकें। आत्मविश्वास की कमी, कोशिशों की कमी, और भाग्यवादी होना, ऐसी तमाम बातों को लेकर लोग ऐसे कमजोर दिल-दिमाग के होने लगते हैं कि फीस देकर एक निर्मल बाबा के पास चले जाते हैं, और उसका बताया इलाज करने के लिए बाहर आकर बुधवार को काली बकरी को मीठी चटनी वाला गुपचुप खिलाकर अपने भाग्य के उदय का इंतजार भी करते हैं। अनगिनत ऐसे लोग रहते हैं जो अपने नाबालिग बच्चों की देह भी ऐसे पाखंडियों के हवाले कर देते हैं, यह जानते हुए कि उनके साथ बलात्कार हो रहा है, और वे इसे स्वर्ग तक पहुंचने की राह मान लेते हैं। 
दिक्कत यह है कि हिन्दुस्तानियों की सोच से वैज्ञानिक समझबूझ को तो सोच-समझकर भारी कोशिशों से मिटाया गया है, उनकी अपनी सामान्य समझबूझ और प्राकृतिक तर्कशक्ति भी पाखंडियों के आभामंडल में खो चुकी है। जिनकी उम्र मेहनत करने की है वे घंटों तक रोज ईश्वर के सामने बैठे रहते हैं, उसी ईश्वर के सामने जो कि बच्चियों से बलात्कार को देखता हुआ चुप बैठे रहता है, और जिसे अपने को सर्वज्ञ, सर्वत्र, और सर्वशक्तिमान कहलाने में भी कोई शर्म नहीं आती है। जिन लोगों का जी ऐसे ईश्वरों से नहीं भरता है, वे उसके जीते-जागते दलाल या एजेंट ढूंढ लेते हैं, और अपने मन की कमजोरियों को इन दलालों के साये में आत्मविश्वास में बदलने की खुशफहमी पाल लेते हैं। हर समझदार इंसान की यह जिम्मेदारी है कि अपने आसपास के ऐसे नासमझ अंधविश्वासियों को बार-बार याद दिलाए कि उनकी आस्था के केन्द्र किस तरह बलात्कारी हैं, भ्रष्ट हैं, और अरबपति-खरबपति होते हुए भी आसपास के गरीब भक्तों को किस तरह लूटते हैं। जो बेवकूफ लोग हजारों की टिकट खरीदकर किसी बाबा से यह सुनने जाते हैं कि भूरे चावलों की खीर बनाकर इतवार को उसे काले कुत्ते को खिलाने से भाग्योदय हो जाएगा, उन बेवकूफों की मदद करना समाज के बाकी लोगों की जिम्मेदारी है, खीर और कुत्ते से नहीं, उन्हें अक्ल देकर। फिलहाल लोग भय्यूजी महाराज जैसे चर्चित आदमी के सेक्स और ब्लैकमेल की कहानियों को पढ़कर, मजा लेकर उनकी खुदकुशी पर अफसोस जाहिर कर सकते हैं। दिक्कत यह है कि ऐसी पूरी कहानी को छापने के लिए एक वक्त की बड़ी मशहूर अपराध-पत्रिका मनोहर कहानियां आज शायद निकलती नहीं है। 

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