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अकबर ने पूछा कैसे मरा 'विजय', वन मंत्री पहुंचे कानन जू

[TODAY छत्तीसगढ़] / प्रदेश के वन मंत्री मोहम्मद अकबर सोमवार को बिलासपुर प्रवास पर रहे। उन्होंने इस दौरान कानन पेंडारी जुलाजिकल पार्क पहुंचकर वहां के हालात देखे और अफसरों से जरूरी जानकारियां जुटाईं ।प्रदेश के वन मंत्री ने सफेद बाघ विजय की मौत को लेकर काफी गंभीरता दिखाई। उन्होंने अफसरों से सिलसिलेवार सवाल किये, मौत की वजह से लेकर जांच रिपोर्ट तक की जानकारी लेने वाले वन मंत्री ने स्पस्ट कर दिया है अफसर समय रहते अपनी कार्यशैली में बदलाव ले आएं। सफ़ेद बाघ की मौत के मामले को गंभीरता से लेते हुए वन मंत्री ने कानन पेंडारी के अन्य जानवरों के संबंध में भी जानकारी ली। उन्होंने जांच में शामिल डॉक्टरों की टीम से भी सवाल-जवाब किया। वन मंत्री ने पोस्टमार्डम की रिपोर्ट भी तलब की।  
गौरतलब है कि पिछले माह 27 दिसंबर को कानन पेंडारी में सफेद बाघ विजय की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत का मामला सामने आया था। वन विभाग के चिकित्सक और अफसरों ने विजय की मौत सांप के काटने से होना बताया । कानन में सफेद बाघ की मौत की वजह भले ही अफसर सर्पदंश बता रहे हों लेकिन वन्यजीव जानकार मौत के कारणों नहीं उतार पा रहें हैं।  मामले में कानन प्रबंधन की लापरवाहियों की बात भी सामने आई है, इधर आज जब राज्य के वन मंत्री ने चिकित्सकों से साँप काटने और बाघ की मौत को लेकर सवाल किया तो चिकित्सक सकते में आ गए, वन मंत्री के समक्ष चिकित्सक विजय की मौत का कोई ठोस कारण नहीं बता सके । गौरतलब है कि इससे पहले मामले को दबाने के लिए बिलासपुर वन मंडल के डीएफओ संदीप बलगा ने बताया था कि जब सफेद बाघ का पोस्टमार्टम किया गया था तो उसके शरीर में जहर पाया गया था। इस दौरान मोहम्मद अकबर ने जानने का प्रयास किया कि क्या बाघ के शरीर पर सांप काटने के निशान पाए गये है। डाॅक्टरों ने बताया कि चूंकि  बाघ के शरीर पर बाल होने के कारण सर्पदंश के निशान नहीं दिखे। लेकिन पीएम के दौरान बाघ के हृदय में कालापन पाया गया। मुंह से झाग भी निकला है। इस प्रकार के लक्षण कोबरा के दंश से होता है। डॉक्टरों से पूछताछ के बाद मोहम्मद अकबर ने पत्रकारों से बताया कि बाघ के अंगों को जांच के लिए बरेली भेजा गया है। विस्तृत रिपोर्ट आने के बाद  बाघ की मृत्यु के कारणों की वास्तविक जानकारी सबके सामने आ जाएगी। 
आपको याद दिला दें कि शायद 2007 के बाद कानन पेंडारी के निरीक्षण को लेकर किसी मंत्री ने वहां रुख किया है। मतलब पुरे 12 बरस बाद कोई मंत्री जानवरों की सेहत और उनके रखरखाव को देखने कानन आया। तत्कालीन भाजपा सरकार में वन मंत्री और अफसरों के पास इतना वक्त ही नहीं था की वे विभागीय जिम्मेदारियों को पूरा कर पाते। एक दशक बाद विभागीय मंत्री की कानन में हुई दस्तक से प्रशासनिक अमला सकते में हैं। ऐसा माना जा रहा है की विजय की मौत के मामले में सही तथ्य पर कुछ अफसरों, कर्मियों पर कारवाही की गाज गिर सकती है। 


  
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